प्रतियोगिता की 8वीं कविता का रचनाकार भी कविता जगत की नई सम्भावना है। 3 मई 1976 में जन्मे मृत्युंजय साधक प्रसिद्ध भोजपुरी टीवी-चैनल 'हमार टीवी' में बतौर सहायक-निर्माता (असिस्टेंट प्रोड्यूसर) काम कर रहे हैं। सरस्वती साहित्य वाटिका, खजनी, गोरखपुर द्वारा सरस्वती प्रतिभा सम्मान से सम्मानित कवि साधक की कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। इन्होंने आकाशवाणी-दूरदर्शन पर अपनी कविताओं का पाठ भी किया है।
पुरस्कृत कविता- गुल्लक क्या फूटी
सपनों की क्या बात करें, जब सारे सपने झूठे हैं
अपनों की क्या बात करें, जब सारे अपने रुठे हैं।
तुमने भी तो दर्द को मेरे अपना दर्द बनाया है
मुझसे तो पूछा होता, वो खट्टे हैं या मीठे हैं।
मां की आखों में हर बच्चा सूरज भी है चंदा भी
भले वो दुनिया के नजरों में काले और कलूटे हैं।
बिटिया की आंखो में हरदम एक उदासी रहती है
पैसों की खातिर कितने ही रिश्ते उसके टूटे हैं।
मदिरालय ने मां की चूड़ी, कंगन भी हैं पी डाले
गुल्लक क्या फूटी, गुल्लक के साथ भाग्य भी फूटे हैं
प्रेम के रस में ऐसी ताकत कैसे साधक बतलाऊँ
शबरी से कब कहा राम ने बेर सभी ये जूठे हैं।
प्रथम चरण मिला स्थान- तीसरा
द्वितीय चरण मिला स्थान- आठवाँ
पुरस्कार और सम्मान- मुहम्मद अहसन की ओर से इनके कविता-संग्रह 'नीम का पेड़' की एक प्रति।
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
सपने और अपनें आज की दुनिया में सब हमारे विपरीत ही हो जाते है..
बहुत बढ़िया रचना..बधाई..
prabhavi rachna hai. Mratunjay ji ko badhai. yahaan bhi aayen http://gubaar-e-dil.blogspot.com
प्रभावशाली रचना है .बधाई ..
प्रभावशाली कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई !
achhi achna .badhai
भावपूर्ण कविता ..बिटिया की आँख में उदासी की जगह मुस्कुराता जीवन नजर आये ...दशहरे की बहुत शुभकामनायें ..!!
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