मार्च 2010 की यूनिकवि प्रतियोगिता की दूसरी कविता अतुल चतुर्वेदी की है। अतुल चतुर्वेदी की कविता ने फरवरी महीने की प्रतियोगिता में भी दूसरा स्थान बनाया था।
पुरस्कृत कविताः खुद्दार किसान का अन्तर्द्वन्द्व
मैंने नहीं मांगी तुमसे दया
दिशा या दृष्टि नहीं मांगी
नहीं चाहा चलना
तुम्हारे सुझाए रास्तों पर
तुम्हारे उपदेशों को भी नहीं सुनना चाहता था मैं
मुझे चिढ़ थी
अनुकरणों से
उदाहरणों से
मैं बोना चाहता था
स्वयं के पसीने का बीज
उद्यम की धरती उर्वरा बनाना चाहता था
मुझे नहीं चाहिए थीं नगदी फसलें
मैं तो ज्वार-बाजरा उगाना चाहता था
मुझे नहीं फिराने थे
सहायता के ट्रैक्टर
मुझे तो पुरुषार्थ के हल चलाने थे
मुझे इंतजार नहीं था मेघों का
मैं स्वयं श्रम का जल बन
पसरना चाहता था
फसलों की नसों में
मिट्टी में
तुम्हारी आँखों में
सच पूछो तो मुझे आज भी नफरत है
ऋण लेने से
और जिंदगी से गहरा प्यार है
लेकिन यही है मुसीबत है इन दिनों
कि किसान जीवन ऋण बिना सधता नही
और खाली पेट प्यार पनपता नही
मैं दोनों में से किसे साधूँ
जिंदगी से अपने प्यार को
या तिल-तिल बढ़ते उधार को
खुलकर चिल्लाऊँ
या मुँह ढाँप सो जाऊँ
नए मुआवजे की प्रतीक्षा में
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
4 कविताप्रेमियों का कहना है :
लेकिन यही है मुसीबत है इन दिनों
कि किसान जीवन ऋण बिना सधता नही
और खाली पेट प्यार पनपता नही
--आह! किसान के दर्द को बखूबी अभिव्यक्त किया है इस कविता ने...
बेहद सुन्दर रचना
सुन्दर विचार एवं रचना धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
बेहद सशक्त कविता है!!
मगर बाढ़-सूखे और सरकारी उपेक्षा के मारे हिंदुस्तानी किसान की छीजती जा रही खुद्दारी के बीच कितना आत्मबल बचा है यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है..और आपकी कविता इसी ओर निशाना साधती है..
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)