फरवरी माह की यूनिकवि प्रतियोगिता की दूसरी कविता इस प्रतियोगिता में पहली बार हिस्सा ले रहे अतुल चतुर्वेदी की है। 31 जुलाई 1965 को मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) में जन्मे अतुल ’राजस्थान में समकालीन हिन्दी व्यंग्य’ विषय पर शोधरत कर रहे हैं। हिन्दी व्याख्याता के पद पर राजसेवा में कार्यरत अतुल का एक कविता संग्रह (एक टुकड़ा धूप- 1998) तथा दो व्यंग्य संग्रह (गणतंत्र बनाम चेंपा-2005, घोषणाओं का वसंत- 2009) प्रकाशित हैं। राजस्थान पत्रिका, दैनिक नवज्योति, साहित्य अमृत, जनसत्ता, अहा! जिन्दगी, नई दुनिया सण्डे, दैनिक भास्कर, आजकल, इतवारी पत्रिका, नवभारत टाइम्स, ब्लिटज, सरिता, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, अमर उजाला, वर्तमान साहित्य, मधुमती, वागर्थ, इन्टरनेट पत्रिका अनुभूति एवं अभिव्यक्ति आदि पत्र-पत्रिकाओं में अनेक व्यंग्य एवं कई कविताएँ तथा आलेख निरंतर प्रकाशित। आकाशवाणी केन्द्र-कोटा, आकाशवाणी केन्द्र-जयपुर, जयपुर दूरदर्शन से निरन्तर प्रसारण। प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था ‘‘काव्य मधुबन’’ के अध्यक्ष, विकल्प, भारतेन्दु समिति, राजस्थान साहित्य अकादमी के प्रतिनिधि व्यंग्य संग्रह ‘‘रेत के रंग’’ में शामिल। शिक्षा विभाग राजस्थान के काव्य संकलनों 1997, 1998 में शामिल। मदर इण्डिया अकेडमी द्वारा श्रेष्ठ युवा साहित्यकार के रूप में तथा डॉ0 रतन लाल शर्मा स्मृति सम्मान-03 से सम्मानित।
पुरस्कृत कविताः आने वाले दिनों में
नहीं गाया जाएगा कोई कोरस
बंदिश कोई नहीं सुनेगा ध्रुपद की
ठहर कर निहारेगा नहीं शिल्प-सौन्दर्य
शहर के सबसे खूबसूरत किले का
ये सब गुजरे जमाने की बातें होंगी
आने वाले दिनों में
पढे़ नहीं जायेंगे उपन्यास
महाकाव्य बाँचे नहीं जायेंगे
किताबें सिर्फ शोभा पायेंगी
प्रबंधन और वास्तु की
जबकि ढेर सारी अशांति बिखरी होगी
हमारे विचारों और शब्दों में
आने वाले दिनों में
बचेगी नहीं जगह बुजुर्गों और पौधों को
जगह नींद को भी नहीं बची होगी
और निर्मल हँसी तो दिखेगी कभी-कभी बारिश-सी
अटे पड़े होंगे घर भौतिक संसाधनों से
पटी पड़ी होंगी गलियां धूर्त्ताओं से
चप्पे-चप्पे पर नंगा फलदार चाकू लिए
दुर्घटनाएं टहल रही होंगी
तब ऐसे दिनों में
स्वप्न कहाँ कुचले पड़े होंगे
कहाँ पड़े होंगे कहकहे
किस्से, ठहाके कहाँ पड़े होंगे
आने वाले दिनों में
बचेगा भी आदमी
या रोबोट ही बचेंगे
कुछ बचेगा भी
या सब क्षरित हो जाएगा
जैसे झर रहा है प्लास्टर दादा जी की बैठक का
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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2 कविताप्रेमियों का कहना है :
पढ़ने में अच्छी कविता..........
किंतु किसी श्राप सी मालूम होती है...थोड़ा तो सकारात्मक हो जाएं।
एक सशक्त चिंता |
बधाई |
अवनीश तिवारी
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