वह भी मार्च का कोई आज सा ही वक्त रहा होगा
जब पेड़ पलाश के सुर्ख फूलों से लद रहे होंगे
गेहूँ की पकती बालियाँ पछुआ हवाओं से सरगोशी कर रही होंगी
और चैत्र का स्निग्ध चाँद
उनींदी हरी वादियों को चांदनी की शुभ्र चादर से ढक रहा होगा
जब कोयल की प्यासी कूक
रात के दिल में किसी मीठे दर्द सी आहिस्ता से उतर रही होगी
और ऐसे बावरे बसंत में
तुमने शहादत की उँगली में
अपने नाम की अंगूठी पहना दी भगत?
तुम शहीद हो गये?
मैं हैरान होता हूँ
मुझे समझ नही आता है भगत!
जलियावाले बाग की जाफ़रानी मिट्टी में ऐसा क्या था भगत
कि तुमने सारे मुल्क में सरफ़रोशों के फ़स्ल उगा दी?
तुममें पढ़ने की इतनी लगन थी
मगर तुम्हें आइ सी एस पास कर
हाथों में हुकूमत का डंडा घुमाना गवारा न हुआ
तुम अपने शब्दों को जादुई छड़ी की तरह
जनता के सर पर घुमा सकते थे
मगर तुमने सफ़ेद, लाल, काली टोपियों की सियासत नही की
तुमने मिनिस्टर बनने का इंतजार भी नहीं किया
हाँ, तुमने जिंदगी से इतनी मुहब्बत की
कि जिंदगी को मुल्क के ऊपर निसार कर दिया!
भगत
तुम एक नये मुल्क का ख्वाब देखते थे
जिसमें कि चिड़ियों की मासूम परवाज को
क्रूर बाज की नजर ना लगे
जहाँ भूख किसी को भेड़िया न बनाये
और जहाँ पानी शेर और बकरी की प्यास में फ़र्क न करे
तुमने एक सपने के लिये शहादत दी थी, भगत!
और आज,
तुम्हारी शहादत के उनासी बरस बाद भी
मुल्क उसी कोल्हू के बैल की तरह चक्कर काट रहा है
जहाँ लगाम पकड़ने वाले हाथ भर बदल गये हैं
आज
जहाँ नेताओं की गरदन पर पड़े नोटों के एक हार की कीमत
वोट देने वाले मजदूर की
सात सौ सालों की कमाई से भी ज्यादा होती है
और जब क्रिकेट-फ़ील्ड पर उद्योगपतियों के मुर्गों की लड़ाई के तमाशे
टीवी पर बहुराष्ट्रीय चिप्स और शीतल पेयों के साथ
सर्व किये जा रहे होते हैं
तब तुम्हारा मुल्क मुँह-अंधेरे उठ कर
थके कंधों पर उम्मीदों का हल लिये
बंजर खेतों में भूख की फ़स्ल उगाने निकल जाता है
तब किसी लेबर चौराहे की सुबह
चमचम कारों के शोर के बीच
तुम्हारे मुल्क की आँखों में रोटी का सपना
एक उधड़े इश्तहार की तरह चिपका होता है
और शहर की जगमग फ़्लडलाइटों तले अंधेरे में
उसी मुल्क के खाली पेट से उसकी तंद्रिल आँखें
सारी रात भूखी बिल्लियों की तरह लड़ती रहती हैं!
और तरक्की के जिस चाँद की खातिर तुमने
कालकोठरी के अँधेरों को हमेशा के लिये गले से लगा लिया था
वह चाँद अब भी मुल्क के बहुत छोटे से हिस्से मे निकलता है
जबकि बाकी वतन की किस्मत के आस्माँ पे
अमावस की रात कभी खत्म नहीं होती.
आज जब तुम्हारा मुल्क
भूख में अपना ही बदन बेदर्दी से चबा रहा है
तुम्हारे वतन के हर हिस्से से खून टपक रहा है भगत!
मैं नहीं जानता
कि वतनपरस्ती का वह कौन-सा सपना था
जिसने तुम्हारी आँखों से
हुस्नो-इश्क, शौको-शोहरत के सपनों को
घर-बदर कर दिया
और बदले में तुमने अपनी नींद
आजादी के नाम गिरवी रख दी थी।
मुझे समझ नहीं आता भगत
क्योंकि हमारी नींदों पर अब
ई एम आई की किश्तों का कब्जा है
और अपने क्षणिक सुखों का भाड़ा चुकाने के लिये
हम अपनी सोचों का सौदा कर चुके हैं।
और आज फिर उसी मौसम में
जब कि पेड़ों पर सुर्ख पलाशों की आग लगी हुई है
गेहूँ की पकी बालियाँ खेतों में अपने सर कटा देने को तैयार खड़ी हैं
और हरी जख्मी वादियों पर
चाँदनी श्वेत कफ़न-सी बिछ रही है
बावरा बसंत फिर शहादत माँगता है
मगर महीने की तीस तारीख का इंतजार करते हुए
मुझे तेइस तारीख याद नहीं रहती है
मुझे तुम्हारी शहादत नहीं याद रहती है
क्योंकि हम अपने मुल्क के सबसे नालायक बेटे हैं
क्योंकि हम भागांवाला* नही हैं, भगत!
(भागांवाला-सौभाग्यशाली, भगत सिंह के बचपन का नाम)
कवि-अपूर्व शुक्ल
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
मानव धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
राष्ट्र धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
पुत्र धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
बन्धु धर्म पराकाष्ठा
...........भगत गुरु सुखदेव !
भगत गुरु सुखदेव भजो तुम
...........भगत गुरु सुखदेव !
परिभाषा है जागृति की
...........भगत गुरु सुखदेव !
परिभाषा है क्रांति की
...........भगत गुरु सुखदेव !
परिभाषा संग्राम की
...........भगत गुरु सुखदेव !
परिभाषा बलिदान की
...........भगत गुरु सुखदेव !
भगत गुरु सुखदेव भजो तुम
...........भगत गुरु सुखदेव !
प्रतारितों का त्राण है
...........भगत गुरु सुखदेव !
ज्वलित क्रांति का प्राण है
...........भगत गुरु सुखदेव !
स्वतंत्रता की आन है
...........भगत गुरु सुखदेव !
अमर-अमिट बलिदान है
...........भगत गुरु सुखदेव !
भगत गुरु सुखदेव भजो तुम
...........भगत गुरु सुखदेव !
-प्रकाश 'पंकज'
http://pankaj-patra.blogspot.com
bahut khoob
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तुमने शहादत की उँगली में
अपने नाम की अंगूठी पहना दी भगत?
तुम शहीद हो गये?
मैं हैरान होता हूँ
मुझे समझ नही आता है भगत!
जलियावाले बाग की जाफ़रानी मिट्टी में ऐसा क्या था भगत
कि तुमने सारे मुल्क में सरफ़रोशों के फ़स्ल उगा दी?
kya baat kahi mitr!!!!
aaj bhi ek sawaal:
जलियावाले बाग की जाफ़रानी मिट्टी में ऐसा क्या था भगत
कि तुमने सारे मुल्क में सरफ़रोशों के फ़स्ल उगा दी?
Mitti thi pawan or fasal ugane wale ka hriday tha samarpit. bas or kya chahiye tha.
श्रद्धांजली में समसामयिक स्थिति दर्शाती बेहद सटीक व्यंग्य रचना........बधाई अपूर्व जी।
पंकज जी के कमेन्ट के बाद कुछ नहीं रह जाता कहने को...
मगर महीने की तीस तारीख का इंतजार करते हुए
मुझे तेइस तारीख याद नहीं रहती है
क्या कहें...
बहुत उम्दा रचना....बधाई
और ऐसे बावरे बसंत में
तुमने शहादत की उँगली में
अपने नाम की अंगूठी पहना दी भगत?
तुम शहीद हो गये?
मैं हैरान होता हूँ
मुझे समझ नही आता है भगत!
जलियावाले बाग की जाफ़रानी मिट्टी में ऐसा क्या था भगत
कि तुमने सारे मुल्क में सरफ़रोशों के फ़स्ल उगा दी?
बावरा बसंत फिर शहादत माँगता है
मगर महीने की तीस तारीख का इंतजार करते हुए
मुझे तेइस तारीख याद नहीं रहती है
मुझे तुम्हारी शहादत नहीं याद रहती है
क्योंकि हम अपने मुल्क के सबसे नालायक बेटे हैं
क्योंकि हम भागांवाला* नही हैं, भगत!
बहुत खूब लिखा है शब्द नही हैं क्या कहूँ.
इतनी समर्थ रचना की प्रशंसा के लिए आज पहली बार लगा की मेरे शब्द असमर्थ हो गए..........!!
उस महानतम शहीद के लिए शायद इस से उत्तम काव्यांजली नहीं हो सकती थी .
माँ सरस्वती की अपूर्व संतान को मेरा प्रणाम !!
तुमने रुला दिया यार ..............
bahut he acchi kavita
aaj desh ko bhagat singh jee ki jaroorat hai..
hamari sarkar shaheedo k liye kuch nahi karti kum se kum unke naam se currency to chala sakti hai...
na jane kitne he log honge is desh mei jinhe 23 march k baare mei pata bhi nahi hoga...
kehne ko to bahut kuch hai..par kya kaha ja sakta hai...
अपूर्व जी.....शब्द,भाव, विषय सब कुछ लाज़वाब....जान फूँक देते है कविता में....नमन् करता हूँ देश के इस महान सपूत को और आपको भी जो इस शानदार रचना को हम सब तक प्रस्तुत किए.. बहुत बहुत आभार
भगत सिंह - हिंदुस्तान के सबसे साहसी पुत्र - पर कोई भी चर्चा बेमानी होगी , अगरचे कि उन आधारभूत सिध्दान्तो कि बात की जाय , जिनके लिया उन्होंने अप्रतिम क़ुरबानी दी. वैसे समय जब पुरे परिवेश मैं " वैष्णव जन तो तेने ......." की अनुगूँज थी , भगत सिंह ने " मैं नास्तिक क्यूँ हूँ " लिखने का अद्वितीय दुस्साहस किया. मानवतावाद और साम्यवाद की भारतीय मानस पटल पर पहली बार इतना वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखा.
कर दिया मधु और सौरभ
दान सारा एक दिन.
किन्तु रोता कौन है.
तेरे लिए दानी सुमन.
दोस्त वो शायद पहली बार और अब तक अंतिम बार था जब मैंने जलियावालां में सच की (Oh my God ! सच की. how interesting !!) गोलियों के निशान देखे थे...
वो कोई ओफ़िशिअल ट्रिप था, बड़े मज़े किये थे, हाँ... हाँ... और स्वर्ण मंदिर भी देखा था....
BTW: भगत सिंह की जहाँ तक बात है, मुझे आइस एज - २ में वो बात याद आ रही है...
" लड़ना बहादुरी नहीं बेवकूफी है, मेम्थ्स इसलिए लुप्त हो रहे हैं क्यूंकि वो बहादुर हैं. उसे लड़ना नहीं बल्कि भागना चाहिए. अपन डरपोक हैं एकदम फट्टू !!"
sahajwala ki bhagat singh par pustak padi hi thi ki apporva apne naye vakya vinyaso ke saath kavita mein vivechak ho uthe hai.
bhagat singh ko janna ho ko kai gadya rachnaye hai per agar bhagat ko mahsoos kerna hai to aapko apoorva ki kavita ke saath baithna hi padega.
bhagat singh par film dekhni ho par aap andhe ho to apporva ki kavita pade. Naman ... Dono ko.
hamai bhagat singh ki tarah veer aur sahasi hona chahiyai.
hamai bhagat singh ki tarah veer aur sahasi hona chahiyai.
Bhagat hamare liye hero tha hero h or hero rahega. Jai Hind Jai Bhagat
Best poem on shaheed bhagat singh
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