भावना सक्सेना की दो कविताएँ हिन्द-युग्म पर प्रकाशित हो चुकी है। आज हम इन्हीं की एक नई रचना प्रकाशित कर रहे हैं, जिसने मार्च माह की प्रतियोगिता में पाँचवाँ स्थान बनाया है।
पुरस्कृत कविता
हाथ से फोड़े
अमरूद के स्वाद-सा
जुबाँ पर
संदूक के कोने में
छिपी चवन्नी-सा भी है,
डिबिया में बंद
जुगनू-सा चमकता
जेब में कंचे-सा
खनकता भी है।
पहली फुहार पे उठी
सौंधी महक-सा
तृप्त बालक की आँख-सा
दमकता भी है
सघन नीम-सा
ठंडाता जेठ में
माघ में बरोसे-सा
गरमाता भी है
बंद मुट्ठी-सा
करीब है दिल के
छुटपन की शरारत-सा
मगर, खटकता भी है
कहें क्या
क्या नाम दें
क्या पुकारें इसको
ये जो रिश्ता
उग आया
हरी दूब-सा है।
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
11 कविताप्रेमियों का कहना है :
ये जो रिश्ता
उग आया
हरी दूब-सा है।
हरी दूब-सा रिश्ता उर्वर जमीन पर ही उगता है
कई पहलू समेटे रिश्ते का आंकलन
इस हरी दूब से रिश्ते का कितना मीठा वर्णन ।
अमरुद..
चवन्नी ..कंचे...जुगनू..
क्या बात है...
शानदार...
अमरुद..
चवन्नी ..कंचे...जुगनू..
क्या बात है...
शानदार...
रिश्ते के सुन्दर वर्णन के लिए बहुत बहुत, बधाई एवं धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
ye kaisa rishta hai jo chamakta bhi hai khanakta bhi hai , jo damakta bhi hai aur khatakta bhi hai ... anokha hai ye rishta magar tazgi liye hai ye rishta , doob ki komal , taazi ghaas sa ...
हरी दूब सा रिश्ता ...भावना जी बहुत सुंदर भाव...रचना बढ़िया लगी...बधाई
सभी को बहुत बहुत धन्यवाद।
कहें क्या
क्या नाम दें
क्या पुकारें इसको
ये जो रिश्ता
उग आया
हरी दूब-सा है।
sunder ati sunder
rachana
kya massomiyat, kya taazgi.......WAH!
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)