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Monday, April 12, 2010

रुस्तम सौ, सोहराब हज़ारों रखती है.


आँखों में असबाब हज़ारों रखती है,
वो लड़की जो ख्वाब हज़ारों रखती है....

रोती है, जब चाँद सिकुड़ता थोड़ा भी,
पर खुद हीं आफ़ताब हज़ारों रखती है....

क्या जाने, क्यों होठों पे सौ रंग भरे,
जब उन में गुलाब हज़ारों रखती है..

मैं क्या हूँ! वो नाज़नीं अपने कदमों में
रुस्तम सौ, सोहराब हज़ारों रखती है..

वैसे तो गुमसुम रहती है लेकिन वो
हर आहट में आदाब हज़ारों रखती है..

-विश्व दीपक

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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

likhna tha dedicated to" NEELAM JI .

koi baat nahi hm samjh gaye ,baht badhiya ,aur kyoun n ho bhala apni taarif kise achchi nahi lagti ????????????????????/////

Asha Joglekar का कहना है कि -

बेहतरीन !

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

hmm..achha hai ..nice one

Unknown का कहना है कि -

एक सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई एवं धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

रोती है, जब चाँद सिकुड़ता थोड़ा भी,
पर खुद हीं आफ़ताब हज़ारों रखती है....

विश्व जी एक खूबसूरत ग़ज़ल..हर लाइन लाज़वाब...बधाई

Akhilesh का कहना है कि -

vichaar ho to kuch bhi likho behter ho jata hai.

kai bhagte vicharo ko keech kar sadhane ki kala hai aapme

badhayee

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