फटाफट (25 नई पोस्ट):

Tuesday, April 13, 2010

प्यार का बढ़ना तापमान के बढ़ने जैसा नहीं है


ओम आर्य अपनी ख़ास शैली के लिए कविताप्रेमियों के बीच सक्रिय है। इनकी एक कविता पिछले साल हिन्द-युग्म पर प्रकाशित हुई थी। आज हम इनकी एक नई कविता प्रकाशित कर रहे हैं, जिसने मार्च माह की प्रतियोगिता में छठवाँ स्थान बनाया है।

पुरस्कृत कविताः चाँद के उस तरफ बर्फ जमा है

इसमें कोई अतिरंजन या रोमांटिसिज्म नहीं है
जब मैं कह रहा हूँ
कि आजकल रोज जुड़ रहा है थोड़ा-थोड़ा प्यार
हमारे बीच
पहले से जमा होते प्यार में

रोज बढ़ रहा है प्यार
रोज खिल रहे हैं गुलदाउदी, गेंदा और गुलाब
हमारे बीच

मगर फिक्र की बात है कि
उससे ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है
बाहर तापमान
महीना मार्च का और पारा चालीस के पार

बढ़ते प्यार के साथ
यह एक अलग सा अनुभव है मेरे लिए
जिसमें कुछ सपने रोज हो रहे हैं पूरे
और बन रहें हैं रोज कुछ नए

उगने से पकने तक की
प्रक्रिया पूरी करके
बहुत खुश हैं सपने
इसके ठीक उलट बढ़ते तापमान में
जल रहें हैं सपने
झुलस रहे हैं गुलदाउदी, गेंदा और गुलाब।

आप तो जानते हीं हैं
कि प्यार का बढ़ना
तापमान या आर्थिक विकास दर के बढ़ने जैसा नहीं होता
जो हर बार बढ़ने के साथ बढ़ा देता है
पृथ्वी पे असमानताएँ
उन सपनों कों जलाकर
जो नहीं सोते वातानुकूलित घरों में

यह अब रहस्य नहीं है किसी के लिए
कि दरअसल धरती उनका उपनिवेश तब तक है
जब तक तापमान एक सीमा से परे नहीं है
और अगला उपनिवेश चाँद होगा
क्यूँकि उन्हें पता चल गया है कि
चाँद के उस तरफ बर्फ जमा है.


पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

8 कविताप्रेमियों का कहना है :

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

ekj alagt tarah ki rachna...shukra hai ki pyaar ke badhne se prithwi par asamantayen nahi failateen .. :)

Unknown का कहना है कि -

प्यार की तुलना तापमान से, एक नया प्रयोग, बधाई एवं धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

Renu goel का कहना है कि -

om ji aapki kavitayen aapke blog par hamesha padhti rahi hoon , bahut achcha likhte hain aap .. ek aur behatareen rachna ke liye aur uske puruskrat hone ke liye badhai sweekaar karen

M VERMA का कहना है कि -

ओम आर्य को पढना
कभी कभी तापमान बढा देता है
कभी तो तापमान शून्य से भी नीचे कर देता है

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

आदमी को शीतलता और जलन दोनों होती है इस प्यार में तो कहना ही होगा की प्यार और तापमान में समानता है...ओम जी को पहले से भी पढ़ता रहता हूँ...बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति...बधाई ओम जी

bhawna का कहना है कि -

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति...बधाई ओम जी

अपूर्व का कहना है कि -

भई सपनों की इस फ़स्ल की पैदावार बढ़ाने के लिये भी जल्द ही बायोटेक्नॉलाजी कोई नया तरीका सुझायेगी..कुछ नये जीन्स जो सपनो को हीट-प्रूफ़ बना दें..मगर ऐसे सपने वही अफ़ोर्ड कर पायेंगे जिन्हे सपनों की कोई जरूरत नही है..!कविता मे सपने किसी मिनरल से भी आते हैं..
और यह पंक्तियाँ कविता के सीक्वेल की जरूरत पर बल देती हैं..
क्यूँकि उन्हें पता चल गया है कि
चाँद के उस तरफ बर्फ जमा है.

..चाँद के उस पार ऑयल भी होगा या नही?..खैर जल्द पता चल जायेगा..एक्टिविटीज बढ़ रही हैं उधर!

ismita का कहना है कि -

nayi tarah ki baat kahi hai...kavita bahut achhi lagi....aur apoorva bhaiya ki tippani bhi bahut achhi lagi....

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)