ओम आर्य अपनी ख़ास शैली के लिए कविताप्रेमियों के बीच सक्रिय है। इनकी एक कविता पिछले साल हिन्द-युग्म पर प्रकाशित हुई थी। आज हम इनकी एक नई कविता प्रकाशित कर रहे हैं, जिसने मार्च माह की प्रतियोगिता में छठवाँ स्थान बनाया है।
पुरस्कृत कविताः चाँद के उस तरफ बर्फ जमा है
इसमें कोई अतिरंजन या रोमांटिसिज्म नहीं है
जब मैं कह रहा हूँ
कि आजकल रोज जुड़ रहा है थोड़ा-थोड़ा प्यार
हमारे बीच
पहले से जमा होते प्यार में
रोज बढ़ रहा है प्यार
रोज खिल रहे हैं गुलदाउदी, गेंदा और गुलाब
हमारे बीच
मगर फिक्र की बात है कि
उससे ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है
बाहर तापमान
महीना मार्च का और पारा चालीस के पार
बढ़ते प्यार के साथ
यह एक अलग सा अनुभव है मेरे लिए
जिसमें कुछ सपने रोज हो रहे हैं पूरे
और बन रहें हैं रोज कुछ नए
उगने से पकने तक की
प्रक्रिया पूरी करके
बहुत खुश हैं सपने
इसके ठीक उलट बढ़ते तापमान में
जल रहें हैं सपने
झुलस रहे हैं गुलदाउदी, गेंदा और गुलाब।
आप तो जानते हीं हैं
कि प्यार का बढ़ना
तापमान या आर्थिक विकास दर के बढ़ने जैसा नहीं होता
जो हर बार बढ़ने के साथ बढ़ा देता है
पृथ्वी पे असमानताएँ
उन सपनों कों जलाकर
जो नहीं सोते वातानुकूलित घरों में
यह अब रहस्य नहीं है किसी के लिए
कि दरअसल धरती उनका उपनिवेश तब तक है
जब तक तापमान एक सीमा से परे नहीं है
और अगला उपनिवेश चाँद होगा
क्यूँकि उन्हें पता चल गया है कि
चाँद के उस तरफ बर्फ जमा है.
पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
ekj alagt tarah ki rachna...shukra hai ki pyaar ke badhne se prithwi par asamantayen nahi failateen .. :)
प्यार की तुलना तापमान से, एक नया प्रयोग, बधाई एवं धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
om ji aapki kavitayen aapke blog par hamesha padhti rahi hoon , bahut achcha likhte hain aap .. ek aur behatareen rachna ke liye aur uske puruskrat hone ke liye badhai sweekaar karen
ओम आर्य को पढना
कभी कभी तापमान बढा देता है
कभी तो तापमान शून्य से भी नीचे कर देता है
आदमी को शीतलता और जलन दोनों होती है इस प्यार में तो कहना ही होगा की प्यार और तापमान में समानता है...ओम जी को पहले से भी पढ़ता रहता हूँ...बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति...बधाई ओम जी
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति...बधाई ओम जी
भई सपनों की इस फ़स्ल की पैदावार बढ़ाने के लिये भी जल्द ही बायोटेक्नॉलाजी कोई नया तरीका सुझायेगी..कुछ नये जीन्स जो सपनो को हीट-प्रूफ़ बना दें..मगर ऐसे सपने वही अफ़ोर्ड कर पायेंगे जिन्हे सपनों की कोई जरूरत नही है..!कविता मे सपने किसी मिनरल से भी आते हैं..
और यह पंक्तियाँ कविता के सीक्वेल की जरूरत पर बल देती हैं..
क्यूँकि उन्हें पता चल गया है कि
चाँद के उस तरफ बर्फ जमा है.
..चाँद के उस पार ऑयल भी होगा या नही?..खैर जल्द पता चल जायेगा..एक्टिविटीज बढ़ रही हैं उधर!
nayi tarah ki baat kahi hai...kavita bahut achhi lagi....aur apoorva bhaiya ki tippani bhi bahut achhi lagi....
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