प्रतियोगिता की तीसरी कविता के रचनाकार ओम आर्य का जन्म बिहार के एक छोटे से जिले सीतामढ़ी में हुआ और स्कूली शिक्षा वहीं सम्पन्न हुई। बाद में स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद ग्रामीण विकास में प्रबंधन तक की शिक्षा जयपुर के भारतीय ग्रामीण प्रबंधन संस्थान से हासिल की। अभी जयपुर में हीं एक गैर सरकारी संगठन में कार्यरत हैं। कविता लिखने की प्रेरणा अपने बड़े भाई 'बसंत आर्य' से मिली। ब्लॉगजगत के अलावा कहीं भी प्रकाशित नहीं हैं।
पुरस्कृत कविता- दुःख की एक बड़ी लकीर
कहीं भी
कोई जगह नहीं है
जिसे दश्त कहा जा सके
और जहाँ
फिरा जा सके मारा-मारा
बेरोक-टोक
समय की आखिरी साँस तक।
कहीं कोई जमीन भी नहीं
जिस पर टूट कर,
भरभरा कर,
गिर जाया जाए,
मिट्टी हो जाया जाए
और कोई उठानेवाला न हो
और हो भी तो रहने दे पड़ा,
उठाये हीं ना
छोड़ दे ये देह
और रूह भी साथ न दे
ऐसी परिस्थिति में
ले जाया जाए मुझे
जहाँ अनंत दुःख हो
और अकेले भोगना हो
मैं बस इतना चाहता हूँ कि
तुमसे अलग होने का जो दुःख है
उस के बाजू में
किसी और दुःख की
एक बड़ी लकीर खींच दूँ।
प्रथम चरण मिला स्थान- पहला
द्वितीय चरण मिला स्थान- तीसरा
पुरस्कार और सम्मान- मुहम्मद अहसन की ओर से इनके कविता-संग्रह 'नीम का पेड़' की एक प्रति।
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
ओम आर्य जी की कवितायें अक्सर विरह वेदना लिये होती हैं अपने मौन के घर मे बैठ कर संवेदनाओं को शब्द देना इन्हें खूब आता है बहुत सुन्दर रचना है ओम जी को बधाई और हिन्दयुगuम कgा आभार्
पीडा की मार्मिक अभिव्यक्ति लगी .तीसरे स्थान के लिए बधाई .
Bahut Badhiya Om ji, bahut bahut badhayi...waise aapki kavitaon ki tareef jitani bhi ki jaye kam hi hai..mai to pahale se hi aapka fan ban chuka hoon...
badhayi..om ji..
शायद दर्द से दर्द का इलाज
लकीर के आगे बड़ी लकीर खीचंने का प्रयोग अच्छा लगा।
ओम साहब..जब भी आपकी कोई नयी रचना पढ़ता हूँ..तो लगता है कि यह आपकी अभिव्यक्ति की इंतहाँ है..और फिर..हर बार आप उससे भी बड़ी लकीर खींच देते हैं..और यह भी बताइये कि किस दर्द की गोदाम से लाते हैं आप यह अक्षय दुःख?..कोई भी तारीफ़ आपकी इस कविता के लिये बहुत कम होगी..बस!!!!!
बहुत सुन्दर रचना बहुत-२ बधाई!
aap ko tise sthan ki badhai likhte rahiye .
rachana
कितने सरल शब्दों में अपने दुःख को हल्का कर लिया आपने | सच है एक दुःख के सामने बड़ी लकीर खींच दो दुःख कम हो जायेगा | अत्यंत मार्मिक कविता के लिए बधाई |
कितने सरल शब्दों में अपने दुःख को हल्का कर लिया आपने | सच है एक दुःख के सामने बड़ी लकीर खींच दो दुःख कम हो जायेगा | अत्यंत मार्मिक कविता के लिए बधाई |
sukh ke bad ke khalipan ko bhrne ke liye shashvat dukh hi sukun deta hai
isliye dukh ke aage aur bdi lkeer khichdi hai .
bahut sundar abhivykti
omji ko badhai
आखिरी की चार पंक्तियाँ.. वाह...
तुमसे अलग होने का जो दुःख है
उस के बाजू में
किसी और दुःख की
एक बड़ी लकीर खींच दूँ।
आपकी बात बिलकुल दुरुस्त है
मार्मिक अभिव्यक्ति ...!!
अपने दुःख को छोटा करने का यह अच्छा तरीका बताया, एक अच्छी कविता के लिए बहुत बहुत बधाई, धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
दर्द को शब्दों में समेट लाने की आपकी कोशिश सफल हुई.
बधाई ओम जी.
Om Ji....
Bahut hi marmik kavita hai aapki... puri kavita padte padte aakhir me to aankho ke kono me paani bhar aaya.... in short aapki kavita ne dil chhu liya.....
Badhai swikar karen....
ओम जी,
दिल से बधाईयाँ। आपकी रच्नायें तो मौन के खाली घर पर पढ़ ही लेता हूँ आज हिन्द-युग्म के मंच पर आपको सम्मानित होते देख बहुत खुशी हुई।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
katya/silp sab accha hai
antim panktiyo mein to kavi chamtkrit ker deta hai.
Badhayee swikaar kere.
बहुत ही सुन्दर शब्दों का प्रयोग है, दर्द की अदभुत अभिव्यक्ति है!ओम जी बधाई!
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