देख कर लोग मुझे रश्क किया करते हैं .
क्या पता उनको छुपे गम मुझमें रहते हैं .
जी लिया है लगता जिंदगी ने हमको बहुत,
हर घड़ी को अब हम बोझ समझ सहते हैं .
जिसको भी अपना समझ दिल में बसाया हमने,
चेहरा खुद का दिखाने से भी वह डरते हैं .
कितने आंसू हैं बहाए अपनों की खातिर,
अब तो आंखों से दो आंसू भी नही बहते हैं .
घाव इतने हैं दिये उसने हमें छलनी किया,
शान से फिर भी देखो अपना हमें कहते हैं .
राम हर युग में नही पैदा हैं होते लेकिन,
हर गली कूचे में रावण तो यहां रहते हैं .
कवि कुलवंत सिंह
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
राम हर युग में नही पैदा हैं होते लेकिन,
हर गली कूचे में रावण तो यहां रहते हैं .
Behatreen..kulwanr ji bahut badhayi..
राम हर युग में नही पैदा हैं होते लेकिन,
हर गली कूचे में रावण तो यहां रहते हैं .
रावण भी हम हैं, और हमीं हैं राम
जो अंतररावण को मारे, वही कहलाये श्रीराम.
सुन्दर रचना.
राम हर युग में नही पैदा हैं होते लेकिन,
हर गली कूचे में रावण तो यहां रहते हैं .
बहुत खूब लिखा है. बेहतरीन
राम हर युग में नही पैदा हैं होते लेकिन,
हर गली कूचे में रावण तो यहां रहते हैं .
बढिया रचना .बल्ले बल्ले
राम हर युग में नही पैदा हैं होते लेकिन,
हर गली कूचे में रावण तो यहां रहते हैं ...
बहुत सही ...
आपकी रचनाये पढ़ कर भी लोग रश्क किया करें बहुत शुभकामनायें ...!!
घाव इतने हैं दिये उसने हमें छलनी किया,
शान से फिर भी देखो अपना हमें कहते हैं .
वाह कुलवन्त जी ! बहुत शानदार !
achchhi rachna badhai!
क्या पता उनके छुपे गम मुझ्में रहते हैं...वाह! बहुत खूब रचना.बधाई।
घाव इतने हैं दिये उसने हमें छलनी किया,
शान से फिर भी देखो अपना हमें कहते हैं .
राम हर युग में नही पैदा हैं होते लेकिन,
हर गली कूचे में रावण तो यहां रहते हैं
बहुत ही सुन्दर पंकतिया बहुत बहुत बधाई एवं धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
राम हर युग में नही पैदा हैं होते लेकिन,
हर गली कूचे में रावण तो यहां रहते हैं
क्या बात कही है कितनी सच्चाई है
बहुत सुंदर
सादर
रचना
कुलवंत जी मं खुन्ग्गा यह ग़ज़ल मुझे साधारण सी लगी
बस यह शे'र ठीक लगा.
जी लिया है लगता जिंदगी ने हमको बहुत,
हर घड़ी को अब हम बोझ समझ सहते हैं .
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