दोहा गाथा सनातन : ३५
उल्लाला रचना सहज
उल्लाला रचना सहज, चरण समाहित चार.
तेरह मात्रा सभी में, दो पद लिए निखार..
तेरह मात्री दो पदी, मात्रा बंधन मुक्त.
उल्लाला लिखना 'सलिल' , भाव सरित उन्मुक्त..
उल्लाला छंद में दो पदों में चार चरण होते हैं.
हर चरण में तेरह मात्राएँ होती हैं.
पदों के अंत में लघु-गुरु मात्रा-बंधन न होने से इनकी रचना सरल होती है.
उदाहरण:
१.
राष्ट्र-हितैषी धन्य हैं, निर्वाहा औचत्य को.
नमन करुँ उनको सदा, उनके शुचि साहित्य को..
२.
पूज्य पिता को खो दिया, मैं अनाथ हूँ नाथ अब.
सूनी लगती सृष्टि यह, जगमग कहते जिसे सब..-सलिल
३.
कौन किसी का है सगा, पल में देते छोड़ क्यों?
हम माटी के खिलौने, हरि रच देते तोड़ क्यों??
आप उल्लाला रचें और मैं कल २२ सितम्बर को प्रातः ३.४० पर अपने पूज्य पिताश्री के निधन से उपजे शोक को पचाने का प्रयास करता हूँ.
विलंब हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ.
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
आदरणीय गुरु जी आप के पिता जी के लिए विन्रम श्रद्धाजंली प्रेषित करती हूँ. भगवान उन्हें शान्ति दे
आपके दु:ख में हम भी साथ हैं। भगवान दिवंगत आत्मा को शांति दें और आपको इस अपूरनीय क्षति को सहने की शक्ति।
इस दुःख में हम आपको ढांढस बंधाने और आपके पिता श्री की आत्मा शांति के सिवा और क्या कह सकते हैं। इतनी पीड़ा के बाद भी आपकी सक्रियता और रचनात्मकता को साधुवाद !
ishvar shrdhhey pitaji ki aatma ko shanti prdan kre .
आदरणीय गुरु जी,
अभी कुछ देर पहले आपके पिता जी के निधन के बारे में जाना, पढ़कर अत्यंत दुख हुआ. दुख कम नहीं हो पाता है किन्तु उसे कम करने की कोशिश की जा सकती है. आपको मैं धैर्य ही बंधा सकती हूँ और आपके साथ सच्ची संवेदना की अनुभूति है मेरे मन में. ईश्वर आपके पिताजी की आत्मा को शांति दे ऐसी प्रार्थना करती हूँ. काल के निर्मम हाथों से आज तक कोई नहीं बच सका है. यह सोचकर आप अपने मन को धीरज दीजिये.
खोकर पूज्य पिता को, हैं दुख से आप अधीर
मन मेरे है वेदना, जान के आपकी पीर.
दूर चले जाते बहुत, है जिनसे मोह अपार
करे नियति परिहास यह, जग फिर लगता निस्सार.
समय चक्र बढ़ता आगे, है यह जीवन का मूल
बेबस हो काया जभी, बन जाती है तब धूल.
नाते-रिश्ते बनें फिर, दें बीच धार में छोड़
अस्थिर है जीवन बड़ा, ना जग से नाता जोड़.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
वे
आसमान की
छाया थे.
वे
बरगद सी
दृढ़ काया थे.
थे-
पूर्वजन्म के
पुण्य फलित
वे,
अनुशासन
मन भाया थे.
नव
स्वार्थवृत्ति लख
लगता है
भवितव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
वे
हर को नर का
वन्दन थे.
वे
ऊर्जामय
स्पंदन थे.
थे
संकल्पों के
धनी-धुनी-
वे
आशा का
नंदन वन थे.
युग
परवशता पर
दृढ़ प्रहार.
गंतव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
वे
शिव-स्तुति
का उच्चारण.
वे राम-नाम
भव-भय तारण.
वे शांति-पति
वे कर्मव्रती.
वे
शुभ मूल्यों के
पारायण.
परसेवा के
अपनेपन के
मंतव्य हमारे
नहीं रहे.
पितृव्य हमारे
नहीं रहे....
*
आचार्य जी
आपसे दूरभाष पर भी बात हुई, लेकिन हमें दोहे की कक्षा के माध्यम से ही आपका सान्निध्य प्राप्त हुआ था अत: हम सभी आपके विद्यार्थी आपके पारिवारिक अभाव को अनुभव करते हैं। प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि वे आपको शक्ति प्रदान करें और उनके समस्त गुणों को आपके अन्दर समाहित करें। सभी परिवारजनों को भी हमारी संवेदना से अवगत करावें। ओऽम् शान्ति, शान्ति, शान्ति।
गुरु जी को समर्पित -
दिल आज हुआ है दुखी ,
सुनकर दुखद समाचार .
जब -जब अपने बिछुड़ते ,
चक्षु से होती बरसात .
गुरु जी,
आपका ह्रदय अपने पिता के अभाव से कितना व्यथित है और उनके लिये कितना बिलख रहा है यह आपके शब्दों की अभिव्यक्ति से ही प्रतीत हो रहा है. संसार की कोई भी वस्तु माता-पिता के अभाव को पूरा नहीं कर पाती है यह दुख मैं भी जानती हूँ. आपके दुःख में हम सभी संवेदनशील हैं और प्रार्थना करते हैं की ईश्वर आपको व सभी परिवारी जनों को पिता के अभाव को झेलने की शक्ति प्रदान करें व पिता श्री की आत्मा को शांति प्राप्त हो.
आचार्य जी,
इस दु:खद अवसर पर हम सब आपके साथ हैं। पीड़ा में निकला आपका एक-एक शब्द दिल में न जाने कितने टीसों को जन्म दे रहा है। भगवान आपके पिताश्री की दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे।
-विश्व दीपक
आचार्य जी,
आपके पूज्य पिता की आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं. आपके दर्द की अनुभूति आपके शब्दों के द्वारा अनुभव कर रहे हैं. इस कठिन समय में हमारी संवेदनाएं आपके साथ हैं.
शोक की घडी में भी आपने अपने कर्तव्य को निभाते हुए, हम सब के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है. आपकी कर्तव्य भावना को कोटिशः नमन.
आपके पिताजी का बारे में सुनकर दुःख हुआ. श्रधान्जली.
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