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Wednesday, April 14, 2010

लूट लिया जिसने दिल को --gazal by shyam skha



यूँ तो वो चितचोर न था
दिल पे मेरा ही जोर न था

लूट लिया जिसने दिल को
वो मामूली चोर न था

अँखियाँ बरसीं, मन भीगा
नाचा मन का मोर न था

दिल का शीशा टूट गया
और कहीं कुछ शोर न था

दुख को देखा दूर तलक
दुख का कोई छोर न था

भरी दुपहरी सूरज गुम
बादल भी घनघोर न था

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5 कविताप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

वाह श्यामजी क्या खूब लिखा दिल को छू लेने वाली गजल पढ़कर आनंद आया
अप्पकी गजल का हमें इंतजार रहता है, बहुत बहुत बधाई धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

amita का कहना है कि -

लूट लिया जिसने दिल को
वो मामूली चोर न था

bahut sunder .....

Anonymous का कहना है कि -

दिल का शीशा टूट गया
और कहीं कुछ शोर न था
बहुत खूबसूरत गज़ल के लिए बधाईयां!

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

दुख को देखा दूर तलक
दुख का कोई छोर न था

भरी दुपहरी सूरज गुम
बादल भी घनघोर न था

:)

अरुणेश मिश्र का कहना है कि -

प्रशंसनीय ।

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