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Friday, November 13, 2009

ज़रा सी गुफ्तगू कुछ देर बस इतवार करता है


प्रतियोगिता की छठवीं कविता एक ग़ज़ल है, जिसके रचनाकार रवीन्द्र शर्मा "रवि" पहली बार हमारी प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं। पंजाब के गुरदासपुर जिले के पस्नावाल गाँव में जन्मे किन्तु राजधानी दिल्ली में पले बढे रवींद्र शर्मा 'रवि 'प्रकृति को अपना पहला प्रेम मानते हैं। शहरी जीवन को बहुत नज़दीक से देखा और भोगा, किन्तु यहाँ के बनावटीपन के प्रति घृणा कभी गयी नहीं। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित कॉलेज श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कामर्स से बी॰ कॉम॰ (आनर्स ) करने के उपरांत एक राष्ट्रीय कृत बैंक में उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत।

विद्यार्थी जीवन में प्राथमिक विद्यालय में ही भाषण कला में निपुण होने के कारण "नेहरु "नाम से संबोधित किया जाने लगे। सन् १९६९ में महात्मा गाँधी कि जन्मशती के दौरान अंतर विद्यालय भाषण प्रतियोगिता में दिल्ली में प्रथम पुरस्कार एवं कई अन्य पुरस्कार जीते। सन् १९७९ में नागरिक परिषद् दिल्ली द्बारा विज्ञान भवन में आयोजित आशु लेख प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाये। उसी वर्ष महाविद्यालय द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ट साहित्यकार के रूप में सन्मानित काव्य संग्रह "अंधेरों के खिलाफ", "हस्ताक्षर समय के वक्ष पर", क्षितिज कि दहलीज पर और "परिचय-राग" में कवितायें प्रकाशित। समाचार पत्र पंजाब केसरी में लगभग १२ कहानियों का प्रकाशन। इसके अतिरिक्त नवभारत टाईम्स आदि अनेक समाचार पत्रों में रचनाओं को स्थान मिला। राजधानी के लगभग सभी प्रतिष्टित मुशायरों, कवि सम्मेलनों, काव्य गोष्ठियों में लगातार काव्यपाठ। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से कविताओ का प्रसारण। दिल्ली की साहित्यिक संस्थाओं "परिचय साहित्य परिषद्", "डेल्ही सोसाइटी ऑफ़ औथोर्स", हल्का ए तशनागाना अ अदब", पोएट्स ऑफ़ डेल्ही", "आनंदम", "कवितायन","उदभव" इत्यादि से सम्बद्ध।
रवींद्र शर्मा "रवि" को इस बात का गर्व है कि उन्होंने पर्यावरण पर मंडरा रहे खतरे के बारे में तब लिखना शुरू कर दिया था जब कोई इसकी बात भी नहीं करता था। रवींद्र शर्मा "रवि " का मानना है कि उनकी कविता गाँव और शहर कि हवा के घर्षण से उपजी ऊर्जा है।

पुरस्कृत कविता

उड़ानों के लिए खुद को बहुत तय्यार करता है
ज़मी पर है मगर वो आसमां से प्यार करता है

ये कैसा दौर है इस दौर की तहजीब कैसी है
जिसे भी देखिये वो पीठ पर ही वार करता है

गुज़र जाते हैं बाकी दिन हमारे बदहवासी में
ज़रा सी गुफ्तगू कुछ देर बस इतवार करता है

तुम्हारे आंसुओं को देखना मोती कहेगा वो
सियासतदान है वो दर्द का व्यापार करता है

हवस के दौर में बेकार हैं अब प्यार के किस्से
घडा लेकर भला अब कौन दरिया पार करता है


पुरस्कार- रामदास अकेला की ओर से इनके ही कविता-संग्रह 'आईने बोलते हैं' की एक प्रति।

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20 कविताप्रेमियों का कहना है :

SURINDER RATTI का कहना है कि -

Ravinder Ji,
bahut sunder panktiyaan hain, achche bhaav hain, badhaai ..
उड़ानों के लिए खुद को बहुत तय्यार करता है
ज़मी पर है मगर वो आसमां से प्यार करता है

ये कैसा दौर है इस दौर की तहजीब कैसी है
जिसे भी देखिये वो पीठ पर ही वार करता है
Surinder

Dr. Shreesh K. Pathak का कहना है कि -

बेहतरीन वाकई

राकेश कौशिक का कहना है कि -

छोटी मगर बहुत ही सटीक और सार्थक प्रस्तुति लगता है गागर में सागर भर दिया. बधाई

राकेश कौशिक का कहना है कि -

पांच शेरों में शर्मा जी ने कह डाली जो सच्चाई
मेरे जैसा कई पन्ने यहाँ बेकार करता है

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

आज के दौर और लोगों के बदलते व्यवहार पर बहुत बढ़िया रचना प्रस्तुत की आपने..
हर एक पंक्ति एक संदेश दे रही है बशर्ते लोगो इसे समझ सके जिससे आप के सुंदर विचारों को एक सार्थकता मिल सकें

लाज़वाब रचना..बहुत बहुत बधाई

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

वाह !!! बेहतरीन रचना |
बधाई |

अवनीश तिवारी

neelam का कहना है कि -

तुम्हारे आंसुओं को देखना मोती कहेगा वो
सियासतदान है वो दर्द का व्यापार करता है

उड़ानों के लिए खुद को बहुत तय्यार करता है
ज़मी पर है मगर वो आसमां से प्यार करता है

waaakkkkkkkkkkkaaaaaiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii laajwaab

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

उड़ानों के लिए खुद को बहुत तय्यार करता है
ज़मी पर है मगर वो आसमां से प्यार करता है..

बहुत खूब

निर्मला कपिला का कहना है कि -

ये कैसा दौर है इस दौर की तहजीब कैसी है
जिसे भी देखिये वो पीठ पर ही वार करता है
लाजवाब गज़ल है शर्मा जी को बहुत बहुत बधाई

M VERMA का कहना है कि -

ज़मी पर है मगर वो आसमां से प्यार करता है
बेहतरीन्

Asha Joglekar का कहना है कि -

तुम्हारे आंसुओं को देखना मोती कहेगा वो
सियासतदान है वो दर्द का व्यापार करता है ।
बहुत पसंद आया ।

मनोज कुमार का कहना है कि -

ये कैसा दौर है इस दौर की तहजीब कैसी है
जिसे भी देखिये वो पीठ पर ही वार करता है
बहुत खूब। कटु यथार्थ।

वाणी गीत का कहना है कि -

ज़मी पर है मगर वो आसमां से प्यार करता है

अच्छा ही है ...
आसमान में उड़ते हुए भी यह ना भूलना की आखिर तो पाँव जमी पर ही टिकने है ...!!

अपूर्व का कहना है कि -

बेमिसाल ग़ज़ल..सारे के सारे ही शेर खूबसूरत और गहरे तक मार करने वाले..

घडा लेकर भला अब कौन दरिया पार करता है

..ऐसी उम्दा ग़ज़लें हिंद-युग्म के गौरव को और बढ़ाती हैं..बधाई इतनी खूबसूरत रचना के लिये !!

शारदा अरोरा का कहना है कि -

सारे ही शेर हकीकत बयान करते हुए |
खास कर ये तो दिल को ही छू गए .....

तुम्हारे आंसुओं को देखना मोती कहेगा वो
सियासतदान है वो दर्द का व्यापार करता है

हवस के दौर में बेकार हैं अब प्यार के किस्से
घडा लेकर भला अब कौन दरिया पार करता है

और क्या सब को ही विशवास के उसी घूँट की प्यास नहीं है ?

श्याम जुनेजा का कहना है कि -

hmare samay ki tasweer ka sahi aks kheencha hai aapney ... bahut hi pyari gazal

KK Mishra of Manhan का कहना है कि -

क्या बात है श्रीमान जी आप की लेखनी को मेरी शुभकामनायें

Akhilesh का कहना है कि -

aapne yahi gazal sayad anandan mein sunayyee thi , Hindyugm khabar par report chapi thi jisme itvaar wale sher ka jikra tha , tabhi se khoj raha tha aap ko , aaj puri gajal padne ko mil gayee.

badhayee swikare.

rachana का कहना है कि -

तुम्हारे आंसुओं को देखना मोती कहेगा वो
सियासतदान है वो दर्द का व्यापार करता है

हवस के दौर में बेकार हैं अब प्यार के किस्से
घडा लेकर भला अब कौन दरिया पार करता है
bahut khoob
kamal
saader
rachana

raybanoutlet001 का कहना है कि -

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