हिन्द-युग्म के अत्यधिक सक्रिय पाठक विनोद कुमार पांडेय एक अच्छे कवि भी हैं। वाराणसी( उत्तर प्रदेश) में जन्मे और वर्तमान में नोएडा (उत्तर प्रदेश) को अपनी कार्यस्थली बना चुके विनोद की एक कविता ने अक्टूबर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में सातवाँ स्थान बनाया है। प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा वाराणसी से संपन्न करने के पश्चात नोएडा के एक प्रसिद्ध इंजीनियरिंग कॉलेज से एम.सी.ए. करने के बाद नोएडा में ही पिछले 1.5 साल से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी मे सॉफ़्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्य कर रहे हैं। खुद को गैर पेशेवर कहने वाले विनोद को ऐसा लगता है कि शायद साहित्य की जननी काशी की धरती पर पले-बढ़े होने के नाते साहित्य और हिन्दी से एक भावनात्मक रिश्ता जुड़ा हुआ प्रतीत होता है। लिखने और पढ़ने में सक्रियता 2 साल से,पिछले 6 माह से ब्लॉग पर सक्रिय,हास्य कविता और व्यंग में विशेष लेखन रूचि,अब तक 50 से ज़्यादा कविताएँ और ग़ज़लों का लेखन। हाल ही में एक हास्य व्यंग 'चाँद पानी पानी हो गया' एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में भी प्रकाशित हुआ और बहुत पसंद किया गया। फिर भी इसे अभी लेखनी की शुरूआत कहते हैं और उम्मीद करता हैं कि भविष्य में हिन्दी और साहित्य के लिए हमेशा समर्पित रहेंगे। लोगों का मनोरंजन करना और साथ ही साथ अपनी रचनाओं के द्वारा कुछ अच्छे सार्थक बातों का प्रवाह करना भी इनका एक खास उद्देश्य होता है।
पुरस्कृत कविता- चाँद और मैं
रात के आगोश में,
सितारों को छेड़ता,चाँद,
और ज़मीं पर मैं,
अपने मानवीय अस्तित्व का वहन करता हुआ,
दोनों उलझ पड़े,बातों की गहमा-गहमी में,
बादलों की परतों से,
आँखमिचौली खेलता हुआ,
चाँद आशातीत होकर मुझसे कहा,
कितनी खूबसूरत है,यह धरा,
और कितने प्यारे हो,तुम इंसान लोग,
काश,मैं भी इंसानों के बीच होता,
बादलों के साथ बरसों गुज़ारें हमनें,
कुछ पल नदी,झरनों एवम् पर्वतों के साथ भी बिताता,
शीतलता और निर्मलता मेरे अभिन्न अंग हैं,
शांति,प्रेम और भावनाओं का प्रदर्शन,
मानव से सीख लेता,मैं,
अभी तक आसमान,बादल,तारे हमारे हैं,
फिर संपूर्ण ब्रह्मांड का दिल जीत लेता,मैं,
बस इतना कहा चाँद ने,
और हँसी निकल पड़ी मुझे,
सोचा,हाय रे इंसानी फ़ितरत,
चाँद भी इसके झाँसे में आ गया,
थोड़ी देर सोचता ठहरा रहा,
फिर चाँद से मैने बोला,
चाँद तुम बड़े भोले और नादान हो,
प्रेम,भावनाएँ यहाँ सब दिखावा है,
रात के अंधेरे का छलावा है,
कभी फुरसत मिले तो दिन में आना,
और मानवीय कृत्यों का साक्षात सबूत पाना,
अभी सो रहे हैं,
इसलिए शांति के उपासक प्रतीत हो रहे हैं,
इंसान ही इंसान की नींदे उड़ाते है,
फिर खुद चैन की नींद सोते है,
हे चाँद,वास्तव में इंसान तो पत्थर के बने होते हैं,
सूरज से पूछना,
इंसानों की चाल-ढाल,रूप-रंग,
चालाकी,एहसानफरामोशी के ढंग,
तुम्हारी शीतलता और निर्मलता सलामत रहे,
शुक्र है खुदा का,तुम दिन में नही आते,
अन्यथा इंसानी फ़ितरत देख कर,
तुम भी सूरज की भाँति आग में जल जाते,
पुरस्कार- रामदास अकेला की ओर से इनके ही कविता-संग्रह 'आईने बोलते हैं' की एक प्रति।
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24 कविताप्रेमियों का कहना है :
अति सुन्दर अभिव्यक्ति । बधाई ।
बधाई और सातवें से पहले नंबर पर आने के लिए आशीर्वाद।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है । शुभकामनायें
रात के अंधेरे का छलावा है,
कभी फुरसत मिले तो दिन में आना,
और मानवीय कृत्यों का साक्षात सबूत पाना,
अभी सो रहे हैं,
इसलिए शांति के उपासक प्रतीत हो रहे हैं,
वाह ! क्या बात है। इंसान की फ़ितरत को कितने गहरे भाव के साथ उकेरा है। विनोद जी बहुत-बहुत बधाई!
बहुत बहुत अच्छा, कविता की तारीफ़ के लिए मेरे शब्दकोष में फिलहाल यही मिला. सच कहू तो पिछले लगभग एक महीने में हिंदी युग्म पर मैंने जितनी भी कवितायेँ पढ़ी हैं उनमें सबसे ऊपर.
इतनी सुंदर, सच्ची, भावनाओं और सन्देश से ओ़त प्रो़त कविता लिखने के लिए ढेर सारी शुभ कामनाएं और बधाई.
विनोद जी,
इतनी सुंदर रचना लिखने के लिए बधाई.
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ..... एक बेहतरीन कविता
apni baat acche dhang se kahi hai sahab, badhayee ho.
apni baat acche dhang se kahi hai sahab, badhayee ho.
बहुत सुन्दर सच्ची, अभिव्यक्ति बधाई ।
पुरानी कहानी जैसे लगी | यदि विषय अच्छा होता तो विधा की कमी छिप भी जाती |
कुल मिलाकर - कमजोर रचना | जबकि विनोदजी के पास अच्छे शब्द हैं , आपकी अन्य रचनाओं की प्रतीक्षा में ...
अवनीश
बेहतरीन रचना
भाव बेहद करीबी और सुन्दर
मैं तिवारी जी की बातों से सहमत नहीं हो सकता। आपकी इस कविता में निराधार स्वप्नशीलता और हवाई उत्साह न होकर सामाजिक बेचैनियां और सामाजिक वर्चस्वों के प्रति गुस्सा, क्षोभ और असहमति का इज़हार बड़ी सशक्तता के साथ प्रकट होता है। काफी संतुष्टि प्रदान कर गई यह कविता।
आदरणीय अवनीश जी, मैं आपके विचार का तहे दिल स्वागत करता हूँ सच्चाई यही है की अभी हम अपने साहित्यिक रचना के आरंभिक दौर में है और बस कुछ शब्दों और भावनाओं के मिले जुले स्वरूप से कविता प्रस्तुत कर देता हूँ,,परंतु वास्तव एक रचना तब जा कर सार्थक होती है जब उसे पढ़ने वाला हर एक पाठक संतुष्ठ हो..मैं आगे से इस बात का ज़रूर ध्यान दूँगा और जैसा आपने कहा अपने शब्द कोष का और बढ़िया अभिव्यक्ति में समावेश करने की कोशिश करूँगा..
बहुत बहुत धन्यवाद..नमस्कार!!!
मुझे ठीक से याद तो नहीं आ रहा पर हिन्दीयुग्म पर किसी कवि की एक रचना प्रकाशित हुयी थी
जिसका आखिरी अल्फाज़ शायद कुछ यूँ था
"बात नई नहीं है लेकिन
मेरा अंदाज़-ए-बयां देखो "
तिवारी जी से बिलकुल असहमत होते हुए ......
विनोद जी आपकी ये रचना मुझे बहुत पसंद आई
रात की शीतलता और दिन की भड़काऊ फितरत....यही तो चला आ रहा है
उम्दा रचना
Vinod Ji,
इंसान ही इंसान की नींदे उड़ाते है,
फिर खुद चैन की नींद सोते है,
हे चाँद,वास्तव में इंसान तो पत्थर के बने होते हैं,
सूरज से पूछना,
इंसानों की चाल-ढाल,रूप-रंग,
चालाकी,एहसानफरामोशी के ढंग,
Chand aur Suraj ke Madhyam se insaani kartuton ko badi khubsurti se pesh kiya..badhai ...
Surinder
bahut sundar...
hamare bhi hindi kavitaoon ko yuva peede ke hridyee mein uchit sthan delvanee ki ichaa
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do login and post!!
मैं विनोदजी की एक नए रचनाकार के रूप में तारीफ़ करते हुए स्वागत भी करता हूँ हिंद युग्म पर |
किसी की आलोचना करना उदेश्य नहीं है | समयाभाव के कारण कुछ ही मिनटों में रचना पढ़कर प्रतिक्रया देना होता है , इसलिए गलती हो सकती है |
दुबार पढा फिर भी कविता जैसे नहीं लग रही मुझे | यदि कविता के अधिक से अधिक तत्त्व हों तो मजा आता है |
कोई एक pattern follow up होना चाहिए था | लेकिन विनोदजी से और रचनाएं मिलेंगी |
सस्नेह
अवनीश
शीतलता और निर्मलता मेरे अभिन्न अंग हैं,
शांति,प्रेम और भावनाओं का प्रदर्शन,
मानव से सीख लेता,मैं,
अभी तक आसमान,बादल,तारे हमारे हैं,
फिर संपूर्ण ब्रह्मांड का दिल जीत लेता,मैं,
yahaan tak to kavita .........
phir yahaan se u turn ,
aapki kavita ,aapke anubhav sir aankhon par .
[itna aasan nahi hai maanav ka prastar banna,
itna mushkil bhi nahi hai chaand si fitrat paana ]
आपकी कविता का भावपक्ष बड़ा सशक्त लगा मुझे..और एक प्रचिलित विषय को बहुत अलग कोण से उठाया है आपने..आपकी साफ़गोई और सुधार करते रहने की आकाँक्षा भी स्वागत योग्य है..बाकी एक अच्छा कवि पूरे जीवन भर कुछ न कुछ सीखता तो रहता ही है...
प्रशंसक तो बहुत मिलते हैं लेकिन आलोचक मुश्किल से मिलते हैं
आलोचना वही करता है जो लेखक से अच्छे लेखन की उम्मीद लगा बैठता है
आप इस मामले में भी भाग्यशाली निकले...
बधाई..
Hi,
good going vinod...aldbst!
very congratulations for being on 7th position...ur poems describes d real impact of feelings...all d best for ur bright future..
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