कुछ बहुत गहरा
बहुत अलग
बहुत ख़ास
एहसास है वो
जो तुमसे जुड़ा है...
ये वो फ़िक्र नहीं
जो एक दोस्त के लिए
महसूस होती है,
न ही ये वो प्यार है,
"शादी" जिसका अंतिम पड़ाव
माना जाता है
नहीं, इस परिधि में भी
नहीं समेट पाती मैं
इस रिश्ते को
तुम्हें पाने की कभी
ख्वाहिश नहीं हुई,
शायद इसलिए...
क्योंकि कभी लगा ही नहीं
तुम दूर हो,
चाहा की तुम्हें भुला दूं
पर भूलूँ भी तो क्या !
तुम्हें कभी
याद ही नहीं किया मैंने...
बहुत सोचा
ये क्या रिश्ता है
तुम्हारा मुझसे...
की जानना चाहती हूँ
"तुम कैसे हो ?"
दुआ करती हूँ
"तुम खुश रहो ?"
अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाने की
तम्मना नहीं तुम्हें...
अपना ही हिस्सा बना बैठी हूँ !
आस-पास की कई नज़रें
सवाल करती हैं मुझसे...
क्या कहूँ ,
क्या नाम दूँ,
मैं नाम तलाश रही हूँ...
ऐसा कुछ सूझता ही नहीं...
जिससे बाँध सकूं तुम्हें
किसी अदने से रिश्ते में...
कवयित्री- स्मिता पाण्डेय
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
kaafi 'touching' kavita hai...idhar bhi dekhiyega..फेमिनिस्ट
गुलज़ार साहब ने लिखा है कि "सिर्फ़ अहसास है ये, रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार हीं रहने दो, कोई नाम न दो"।
आपकी इस कविता में अगर "रही" को "रहा" कर दूँ तो शायद मेरी कहानी बन जाए।
आप बहुत बढिया लिखती हैं, इस अहसास, इस हुनर और इस जुनून को कभी कम नहीं होने दीजिएगा।
-विश्व दीपक
भावपूर्ण सुंदर रचना -
"अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाने की
तम्मना नहीं तुम्हें...
अपना ही हिस्सा बना बैठी हूँ!"
- बधाई एवं शुभकामनाएं.
एहसास की सुंदर अभिव्यक्ति...शब्दों और भावनाओं को एक सुंदर दिशा दी है आपने...बधाई स्वीकारे..
तुम्हें पाने की कभी
ख्वाहिश नहीं हुई,
शायद इसलिए...
क्योंकि कभी लगा ही नहीं
तुम दूर हो,
चाहा की तुम्हें भुला दूं
पर भूलूँ भी तो क्या !
तुम्हें कभी
याद ही नहीं किया मैंने...
बहुत सुंदर शब्दों से पिरोया है आपनी भावनाओ को
बहुत-बहुत बधाई
ati sundar
बहुत गहरी...रूह को छूती हुई कविता..शुभकामनायें
एक बेहतरीन और दिल से महसूस कीए जाने वाली कविता..रिश्तों को प्रचिलित सामाजिक चश्मों से अलग हट कर देखने की कवायद को स्वर देती..
..यह अनूठी नजर ही किसी कविता को इतना पठनीय बनाती है...
गज़ब की कविता है
मैं नाम तलाश रही हूँ...
ऐसा कुछ सूझता ही नहीं...
जिससे बाँध सकूं तुम्हें
किसी अदने से रिश्ते में...
रिश्तो को एक नाम चाहिये.
बद या बदनाम चाहिये
भाव प्रवण अभिव्यक्ति
Wah wah...bahut achcha hai..ye lines to dil ki kalam se likha hai...Ishwar aapko isis tarah dard bhara sukh batate rhne k a hausla de...
एक बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी कविता, बधाइयाँ !!
अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाने की
तम्मना नहीं तुम्हें...
अपना ही हिस्सा बना बैठी हूँ !
सुंदर भाव
मैं नाम तलाश रही हूँ...
ऐसा कुछ सूझता ही नहीं...
जिससे बाँध सकूं तुम्हें
किसी अदने से रिश्ते में...
स्मिता जी भावों को शब्दों में पिरो के आप ने अमर कर दिया है
बधाई
रचना
बच्चे...
आज काफी दिन बाद आया हिंद युग्म पर..
और आज काफी दिन बाद तम्हें पढ़ना बेहद सुकून दायक लगा..
खुश रहो....नन्ही गुलजार..
bahut achhi rachna......badhai...
la-jabaab....
तुम्हें पाने की कभी
ख्वाहिश नहीं हुई,
शायद इसलिए...
क्योंकि कभी लगा ही नहीं
तुम दूर हो,
चाहा की तुम्हें भुला दूं
पर भूलूँ भी तो क्या !
तुम्हें कभी
याद ही नहीं किया मैंने
स्मिता आपको पढना हमेशा अच्छा है और हर कविता मन को छू जाती है
kya kahu lagta hai ki aapne mere manobhavon ko bhi shabd de diya hai..
i tied too much to find ur orkut profile or id..but cant..u can contact me...my blog is ..
http://tajinindia.blogspot.com// pls..
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