अक्टूबर 2009 की यूनिकवि प्रतियोगिता के 11वें स्थान की कविता की रचयित्री यह मानती हैं कि ये फरीदाबाद (हरियाणा) के लोगो की भीड़ में खुद को तलाशती एक रूह हैं, जिसने 5 जनवरी, 1969 में रोहतक (हरियाणा) की धरती पर कदम रखा और सुनीता (अनामिका) नाम से जानी जाने लगीं। इनका भीगा-बचपन कब कालेज की सीढ़िया चढ़ गया, हिंदी से ऐसे जुड़ गया, बचपन की सीली-सीली सी भावनाएँ कब कविताओं का सा रूप लेकर पन्नों पर उतरने लगीं, पता ही नहीं चला। इनके दोस्तों ने इनके 2-4 लाइन लिखने पर वाहवाही कर दी तो इन्हें शौक सवार हो गया कि बस ये भी कुछ लिख डालें, और बी. ए. द्वितीय वर्ष से जो कलम उठाई तो कुछ न कुछ लिखती ही रहीं।
आज बी.ए. एवम् बी.एड की पढाई पूरी करने के बाद विवाह बंधन में बधे हुऐ दो बच्चो की जिम्मेदारी निभाते हुए, जीविका की जद्दोजहद में जिन्दगी के मध्यान्त तक कब आ पहुँची, पता ही नहीं चला। कब नेट की दुनिया में कदम रखा याद ही नहीं और तब अपना ब्लॉग बनाया और तब हिंद-युग्म जी भी नज़र में आया। बस फिर तो कलम और अधिक सक्रीय हो गयी और आर्कुट, शायरी.कॉम, शायर फॅमिली, शायरी.नेट तथा अन्य साइट्स से विभिन्न उपनामों से कहीं मोडरेटर तो कहीं सदस्य के रूप में जुड़ती चली गईं। बस तब से लेखनी और नेट की दुनिया से इनकका रिश्ता प्रगाड़ होता जा रहा है।
कविता
सब कुछ बिखरता जा रहा है
लेखनी की सांसे टूटने लगी हैं..
सारे गम अंतस को बींध कर..
अब तो नासूर बन चुके हैं..
जिनकी अथाह वेदना
जीने की उम्मीदों को
नोच-नोच कर
जिंदगी को तल्ख़ किये जाती है..!!
चेहरे की झुर्रियाँ
और गहरा चली हैं..
जो अट्टाहस करती हैं..
उस मुस्कान पर
जो स्वांग भरती है..
झिलमिलाती झूठी खुशियों का..!!
मैं मन के इस अभेद्य
तिमिर को भेदने का
मानो आशाओं की मोमबत्तियाँ जला,
असफल प्रयास करती हूँ..,
और....
मोमबत्तियों के गालों पर
पिघलते हुए मोम के आंसू
मेरी इस स्वांग भरती..
मुस्कान का..
मुल्य चुका रहे हैं..!!
मैं थक चुकी हूँ..
इस दोहरी जिंदगी से..
मोमबत्तियाँ अपने हाथों से बुझा..
उनके आंसू पोंछ देती हूँ..!!
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
मैं थक चुकी हूँ..
इस दोहरी जिंदगी से..
स्वाँग भरी जिन्दगी की उहापोह का सुन्दर रेखांकन
मैं थक चुकी हूँ..
इस दोहरी जिंदगी से..
मोमबत्तियाँ अपने हाथों से बुझा..
उनके आंसू पोंछ देती हूँ..!!
बहुत सुन्दर कविता है सुनीता जी को बधाई
दोहरी जिंदगी की वेदनाओं को समेटे एक सच्ची रचना.
"मोमबत्तियों के गालों पर
पिघलते हुए मोम के आंसू
मेरी इस स्वांग भरती..
मुस्कान का..
मुल्य चुका रहे हैं..!!"
मुझे विश्वास है कि निराशा से ही आशा का सूत्रपात होगा.
कवियत्री बधाई और शुभकामनाएं!
यथार्थ जीवन की ओर संकेत करती हुई बहुत बढ़िया रचना..जन्म लेने से लेकर बुढ़ापे तक जीवन अनेक करवटें लेती हैं और ऐसे ही उतार चढ़ाव भरे समय में जीवन के पलों की खूबसूरत गंभीर विवेचना....
सुनीता जी बधाई!!
गहरे भाव......दिल में दस्तक दे गए
मैं थक चुकी हूँ..
इस दोहरी जिंदगी से..
मोमबत्तियाँ अपने हाथों से बुझा..
उनके आंसू पोंछ देती हूँ..!!
बड़ी उदास करती है यह कविता...
सार्थक शब्दों के साथ तार्किक ढ़ंग से विषय पर प्रकाश डाला गया है।
ह्रदय को छू गयी आप की लेखनी
मैं थक चुकी हूँ..
इस दोहरी जिंदगी से..
मोमबत्तियाँ अपने हाथों से बुझा..
उनके आंसू पोंछ देती हूँ..!!
दोहरी जिंदगी ने समय से पहले थका दिया है ...मन के आवेगों और दुखी भावनाओं से भरी इस कविता ने मन को छू लिया ...!!
jiwanko gahraion se dekhana,use samajhana,banawati rupon ko janana,mombati ki tarah galanewale gambhir ahsas ko jindagi se jod lena ek sukhad ahsass hai. yathartha ki peeda dil ko sadama deti hai. wakai me khoosurati se shabdon ke madhyam se dil me prawesh kar gai apki kabita. ek sunder prayash ke liye badhai.
kishore kumar jain guwahati assam.
@ म.वर्मा जी
बहुत बहुत शुक्रिया मेरी रचना पढने और सराहने के लिये.
@ निर्मला कपिला जी
आपकी बधाई कि आभारी हू...आपने आकार मुझे प्रोत्साहन दिया, धन्यवाद.
@ राकेश कौशिक जी
सही कहा आपने एक रास्ता बंद होता है तो दुसरा खुलता है..निराशा से ही आशा का सूत्रपात होता है..
आपकी शुभ्कामनाओ का साथ बना रहे..शुक्रिया.
@ विनोद क.पांडेय जी..
आपने रचना को इतनी गहराई से पढा ...अच्छा लगा आपका विवेचन. आपके प्रोत्साहन का बहुत बहुत शुक्रिया.
@ रश्मी प्रभा जी
आपको यहा देख कर कितनी ख़ुशी हुई बात नही सकती. बहुत आभारी हू आपकी.
@अपूर्व जी...
माफी चाहती हू जो मेरी रचना उदास कर गयी...बहुत बहुत शुक्रिया आने के लिये.
@ मनोज जी
इस सराहना और विवेचन के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.
@ कृष्ण कुमार जी
आप यहा आये और दिल तक मेहसूस किया ख़ुशी हुई...आभार.
@ वाणी गीत जी
जी हा सही कहा आपने दोहरी जिंदगी समय से पहले थका देती है...आपको रचना मन को छु गयी...मेरी रचना को सफलता मिल गयी..
आपने यहा आ कर अपनी टिप्पणी दी बहुत अच्छा लगा...बहुत शुक्रिया
@ किशोर काला जी..
शब्दो का जीवन के उतर-चढाव के साथ ढाल देना आपको अच्छा लगा, शुक्रिया. सच है ये कि कडवी यथार्थता दिल को दर्द देती है.रचना को पढने और सराहने
के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.
सुनिता (अनामिका)
Anamika7577.blogspot.com
एक सुन्दर भाव पूर्ण रचना |
बधाई
अवनीश
शब्दो का जीवन के उतर-चढाव के साथ ढाल देना आपको अच्छा लगा, शुक्रिया. सच है ये कि कडवी यथार्थता दिल को दर्द देती है.रचना को पढने और सराहने
के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.
मैं थक चुकी हूँ..
इस दोहरी जिंदगी से..
मोमबत्तियाँ अपने हाथों से बुझा..
उनके आंसू पोंछ देती हूँ..!!
बहुत खूब
दोहरा जीवन तो हम सभी जीते हैं
आप की कविता सभी की बात कहती है बधाई
आशा है ऐसी सुंदर कवितायेँ आगे भी पढने को मिलेंगी
सादर
रचना
a distinct way to xpress smthing that is so indiffrent among ourselves,,,really appreciable effort.......................kavita ki aakhiri chand panktiyon me jo bhaav poori shiddat se bahar ubhar ke aaya hai weh wakai prasansaniya hai...........ek antarsangumphit lekin urvar rachana
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