प्रतियोगिता की 12वीं कविता की रचनाकार सुमीता प्रवीण केशवा जन्म हल्द्वानी (नैनिताल, उत्तराखंड) में हुआ,लेकिन फिलहाल मुम्बई में निवास रही हैं। लेखन का शौक बचपन से ही रहा। बिजनेस संभालने के साथ ही लेखन का शौक पूरा किया। फ्रीलान्स पत्रकार, विभिन्न पेपरों में राजनीतिक कॉलम। कुछ कविताएँ प्रकाशित कुछ प्रकाशनार्थ। साथ ही कई कविताओं का मंचन, 'पापुलर प्रकाशन' के साथ बच्चों की कई अंग्रेज़ी कॉमिक्सों का हिन्दी में अनुवाद। 'मैं स्वयंसिद्धा' कहानी, किराये की कोख पर आधारित उपन्यास 'एक पहल ऐसी भी', समलैंगिक सम्बंधों पर आधारित नाटक 'सम-बंध'। फिल्म राइटर्स एसोसोएशन की एसोसिएट सदस्य।
कविता- स्वार्थी कहूं या संत तुम्हें...
क्योंकि स्वार्थी हो गये थे तुम...
अपने में ईश्वर को भी नहीं पहचान पाये तुम !
तुम्हीं तो थे जो साथ लिए मुझे..
मंदिर में जाया करते
ईश्वर को सच्चे प्यार का विश्वास दिलाया करते
तब...तब मैं भाव विभोर हो देखा करती तुम्हें...
कितने लीन होकर तुम उस परम पिता को
साक्षी बना रहे थे अपने प्यार का !
और हाँ..... वह साक्षी बना भी
हर बार की तरह वह मुस्कराकर
आशीर्वाद देता भी।
तुम कितने निश्पाप मन से
ईश्वर से मुझको मांगा करते
तब उस वक्त मैं तुम्हारी आंखों में प्रेम की
निर्मल धारा बहते देखती और...
उतर जाती उस ईश्वर की प्यास में
चली जाती तुम्हारे साथ उस ईश्वर की आस में
ईश्वर को छलते तुम या मुझको छलते ?
मै तो ईश्वर को पा रही थी तुम्हारे साथ चलते !
बैखौफ़ सी उन पगडंडियों में चली जा रही थी मैं
जिनके सपने तुम दिखा रहे थे मुझे
सपनों की दुनिया में उड़ रही थी बिन पंख लगाये
दृष्टा बनना था मुझे...बन गयी दृष्टिहीन
छोड आये तुम मुझे उस अन्तहीन छोर पर
जहां से आगे न मंजिल थी न कोई डगर
अब...अब तो मैं हूं अकेली
पथराई पहेली सी..
लौट आई फ़िर वहीं...
जहां छला जाना ही औरत की नियति है
लेकिन जानती है.....फिर भी चलना जानती है
प्यार में ठोकर मिले तो क्या ?
प्यार में कुछ क्षण ईश्वर को तो पा ही लेती है !
तुम्हें नहीं आया ईश्वर को पाना तो क्या....
ये तुम्हारी बदनसीबी है
आज तुम मुझसे प्यार करने की गलती का प्रायश्चित कर रहे हो
और मैं...तप्त...शांत...गहरी झील सी..
औरत की तरह प्यार करके तो देखो....
ईश्वर को सच्चा मान कर तो देखो....
वह महसूस कराता है
अपने को तुम्हारे भीतर रहकर!
अब दर्द नहीं कोई गिला नहीं
न छले जाने का कोई दुख !
....फ़िर भी तुम्हारी शुक्रगुजार हूं मैं
क्योंकि किसी एक क्षण में जब मैं ईश्वर में थी...
उस तक पहुंचने का माध्यम तुम्हीं तो थे !
हां तुम्हीं...!
ऋणी रहूंगी तुम्हारी उस एक पल के लिए
जब ईश्वर का साक्षात्कार हुआ.....
और उस कान्हा से प्यार हुआ.......
सुना है संत ही ईश्वर के दर्शन कराते हैं....
उस तक पहुंचने का रास्ता बताते हैं...
तुम्हीं कहो उस तक पहुंचने के लिए
स्वार्थी कहूं या संत तुम्हें....?
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21 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुमीता जी बहुत बहुत बधाई!!बेहद उम्दा कविता.!!! एक सुंदर अभिव्यक्ति..
"तुम्हीं कहो उस तक पहुंचने के लिए
स्वार्थी कहूं या संत तुम्हें....?"
जानते हुए कि वो संत नहीं स्वार्थी है फिर भी उसे संत कहना, इससे बड़ी महानता और क्या होगी, ऐसी होती है औरत और उसका दिल. सच के समीप से गुजरती प्रेरणादायक रचना. बधाई और शुभकामनाएं.
सुमिता जी की कविता बेहद सुन्दर है. इतनी संवेदनशील रचना के लिए मैं कवियत्री को कम पाठकों को अधिक बधाई दूंगा. कविता पढ़ते पढ़ते लगा जैसे ईश्वर मेरे अन्दर भी खुद को महसूस कर रहा है. कवियत्री से मैं एक मामूली शिकायत करूंगा जिसे वे बुरा न मानें, कि इस कविता की लम्बाई को कुछ प्रतिशत नियंत्रित रखा जा सकता था ताकि भाव किंचित मात्रा में बिखर न जाए. धन्यवाद.
निःसंदेह यह एक श्रेष्ठ रचना है।
औरत की तरह प्यार करके तो देखो....
ईश्वर को सच्चा मान कर तो देखो....
वह महसूस कराता है
अपने को तुम्हारे भीतर रहकर!
अब दर्द नहीं कोई गिला नहीं
न छले जाने का कोई दुख !
सुमिता जी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई
ishwar ko chalte tum ya mujhko chalte.....?
bas aur kuch nahin bacha kehne ko...bas ek drishya upasthit ho gaya samne jo maine bhi kabhi itni hi shiddat se mehsoos kiya tha...
bahut hi badiya rachna
स्वार्थ देखते हुए भी उसे संत कह देना केवल औरत ही कर सकती है क्यूंकि कृतज्ञता उसका ही स्वभाव है ।
सुंदर अभिव्यक्ती ।
औरत की तरह प्यार करके तो देखो....
ईश्वर को सच्चा मान कर तो देखो....
बहुत सुन्दर ...!!
एक लम्बी रचना या लघु कथा |
प्रेमचंद जी ने सही कहा , बेवजह लम्बी है रचना
बधाई |
अवनीश तिवारी
सबसे पहले तो देर से आने के लिये माफ़ी मांगना चाहूंगी। आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया और आभार क्योंकि आप लोगों ने मेरी रचना को सराहा और मेरा हौंसला बढाया। प्रेमचंद जी आपकी बात से बुरा नहीं अच्छा लगा कि आप जैसे वरिष्ठ लेखक ने मेरी कविता को पढा और अपनी राय व्यक्त की और मुझे सीखने को ही मिला। अगली बार सुधार होने कोशिश रहेगी। इस रचना को हिन्दयुग्म पर प्रकाशित करने के लिये हिन्दयुग्म को भी बहुत-बहुत धन्यवाद!
सबसे पहले तो देर से आने के लिये माफ़ी मांगना चाहूंगी। आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया और आभार क्योंकि आप लोगों ने मेरी रचना को सराहा और मेरा हौंसला बढाया। अव्नीश जी और प्रेमचंद जी आपकी शिकायत से बुरा नहीं अच्छा लगा कि आप जैसे वरिष्ठ लेखक ने मेरी कविता को पढा और अपनी राय व्यक्त की और मुझे सीखने को ही मिला। अगली बार सुधार होने कोशिश रहेगी। इस रचना को हिन्दयुग्म पर प्रकाशित करने के लिये हिन्दयुग्म को भी बहुत-बहुत धन्यवाद!
सुमिता जी
हमेशा से मानता रहा हूँ कि स्त्री ईश्वर की सर्वश्रेष्ट रचना है .बाहरी तौर पर नहीं मन से. आपकी इस श्रेष्ट रचना ने आज मेरे इस विश्वास को और दृड़ किया है .(रवीन्द्र शर्मा "रवि "
औरत की तरह प्यार कर के देखो
क्या पंक्ति है ?पूरी कविता का निचोड़ है . सुंदर भाव लिए मन को छूने वाली कविता
आप को बधाई हो
सादर
रचना
Sumitaji, aapki ye kavita ki ek ek pankti dil ko chooo gayi or jindagi k kayi lamho ko fir se taaza kar gayi... aap ki aur bhi kavitao ko padna chahungi... bohot bohot badhaaiyaan. please keep up your beautiful writing skills. God Bless... Maithili....
बेहद सशक्त रचना..किसी नारी के आत्मविश्वास की तरह..
..यह स्त्री की सकारात्मकता की शक्ति ही है..जो किसी को भी उसके गुनाह के लिये क्षमा कर के उसे सारी उम्र पश्चाताप की आग मे दग्ध कर सकती है..और पुरुष के स्वार्थ मे भी संत-गुण खोज कर उसे उसके छोटेपन पर शर्मिंदा होने ले लिये विवश कर सकती है..
..मगर संत कह भर देने से संत के गुण आ जाते हैं क्या किसी मे..वो शिक्षा लेने को तैयार होता है क्या...
Is kavita aur kaviyatri ki jitni bhi tareef karo kam hai. Yeaar 2009 mein shayad ye best kavita maine padhi hai........
Sunita ko badhai dene ke sath Hind_Yugm ko bhi badhai aur dhanyawad....
Uttarakhand ne ek aur Shivani (Gaura Pant jaisi samvedna aur antaravalokan ki samarthya) diya.
Bhaya hai
Aapki kavita mein hai sakshat ishwar ka vaas
Lage jaise aap mein hai dusre Kabeer Das
Best wishes
Mohit
अभिव्यक्ति सुन्दर है
वैसे
प्यार में तो सभी बावले हो जाते हैं और कंत भी संत नजर आते आते है
Hello!!! Sumitaji,
Its such pure thoughts that you have expressed in your poem.
Excellent.
Hope people and enthusiatics, read and understand and start appreciating true and pure Love.
All the best!!!!!
Dubara phir ye kavita padhi...
na "swarthii" na "sant" kahiye "ABHAAGAA"...
Isis kram mein apni ek kavita dekhne ka agrah karta hoon..unwan hai "Pyaar" aur ise http://safarchand-hindipoems.blogspot.com par dekha ja sakta hai...
Dubara badhai
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