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Friday, March 05, 2010

हमारा आम होता है तुम्हारा खास होता है


कभी खामोश लम्हों में मुझे अहसास होता है
कि जैसे ज़िन्दगी भी रूह का बनवास होता है

जिसे वो रौनके होने पे अक्सर भूल जाता है
वही तन्हाईओं में आदमी के पास होता है

सुना था दर्द होता है ग़मों का एक सा लेकिन
हमारा आम होता है तुम्हारा खास होता है

किसी के वास्ते बरसात है बदला हुआ मौसम
किसी के वास्ते ये साल भर की आस होता है

जमा होते हैं शब् भर सब सितारे चाँद के घर में
न जाने कौन से मुद्दे पे ये इजलास होता है

'रवि ' मुमकिन है सहरा में कहीं मिल जाये कुछ पानी
समंदर तो हकीकत में मुकम्मल प्यास होता है

कवि- रवीन्द्र शर्मा 'रवि'

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22 कविताप्रेमियों का कहना है :

manu का कहना है कि -

आज कुछ हट के पढ़ा ..
बहुत खूब...

वाणी गीत का कहना है कि -

सुना था दर्द होता है ग़मों का एक सा लेकिन
हमारा आम होता है तुम्हारा खास होता है ...
बहुत बढ़िया ....!!

"अर्श" का कहना है कि -

pasand aayee gazal.......


arsh

Anonymous का कहना है कि -

सुना था दर्द होता है ग़मों का एक सा लेकिन
हमारा आम होता है तुम्हारा खास होता है

हकीकत का सामना कराती सुन्दर पंक्तिया रवि जी को बहुत बहुत बधाई ,
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा

Nikhil का कहना है कि -

बहुत बढ़िया लगी ये ग़ज़ल...
बरसात वाला शेर तो बहुत ही अच्छा था.....

neelam का कहना है कि -

'रवि ' मुमकिन है सहरा में कहीं मिल जाये कुछ पानी
समंदर तो हकीकत में मुकम्मल प्यास होता है

really great!!!!!!!!!!!!!!!

Unknown का कहना है कि -

यदि मैं ये कहूँ की रविन्द्र शर्मा 'रवि 'जी की रचनाएं पढने के बाद मैं हिन्दयुग्म की नियमित पाठक हो गयी हूँ तो गलत नहीं होगा .
कृपया इस प्रकार की बेहतरीन रचनाएं प्रकाशित करतें रहें . आपके पाठकों की संख्या दिनोदिन बढती रहेगी . एक बार फिर इस बहुत ही उत्कृष्ट रचना के लिए "रवि ' जी को एवं हिन्दयुग्म को बहुत बधाई .(पियाशर्मा )

Safarchand का कहना है कि -

ऐसी कवितायेँ अब दुर्लभ होती जा रहीं हैं. काव्य और अध्यात्म का सामंजस्य ही तो असली कविता है. उत्कृष्ट कोटि की है ये कविता...."तेरा गम है गमे तनहा, मेरा गम गमे ज़माना.." या तो मोमिन ने कहा था या फिर आज रविन्द्र जी की पंक्तिओं में देखा. दिल बाग बाग हो गया.....कविता वह जिसे पढ़ने के बाद देर तक मौन रहने का मन करे....पिया जी ! अब हिन्दयुग्म मामूली चीज़ नहीं १९६० का धर्मयुग हो गया है. आमीन !!

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

रवि जी कोई शक़ नही .. हर शेर बेहतरीन....इस सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकारें

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

कभी खामोश लम्हों में मुझे अहसास होता है
कि जैसे ज़िन्दगी भी रूह का बनवास होता है ..

और

किसी के वास्ते बरसात है बदला हुआ मौसम
किसी के वास्ते ये साल भर की आस होता है

गजब...

Guftugu का कहना है कि -

रविजी ,आपकी ग़ज़ल ने मन पर छाप छोड़ी .अपने मेरे लेख को सराहा धन्यवाद.फिराक जी पर और भी बहुत लिख सकती थी लेकिन अक्सर ज्यादा लम्बा थोडा उबाऊ हो जाता है इसलिए इस बार इतना ही.धन्यवाद

Prem Chand Sahajwala का कहना है कि -

इस गज़ल का हर शेर लाजवाब. पर जो शेर सब से अधिक कशिश वाला है, वो यह है:

जमा होते हैं शब भर सब सितारे चाँद के घर में
न जाने कौन से मुद्दे पे ये इजलास होता है.

avid reader का कहना है कि -

bahut sunder....kis sher ki taarif karoon kiski nahin...saari hi sunder rachna...pal bhar ke liye apne aap se samna ho gaya.

पद्म सिंह का कहना है कि -

सभी शेर मोतियों जैसे ... बहुत खूब तरलता,सरलता और भाव का एक साथ संगम
बहुत बधाई

पूनम श्रीवास्तव का कहना है कि -

aapaki yah gazal bahut bahut hi pasand aai.
poonam

rachana का कहना है कि -

AAP KI GAZAL KA EK EK SHER MOTION JAESA HAI .
BAHUT SUNDER
SAADER
RACHANA

रवीन्द्र शर्मा का कहना है कि -

आप सब का तहे दिल से शुक्रिया ........
(रवीन्द्र शर्मा ' रवि ' )

Unknown का कहना है कि -

जिसे वो रौनके होने पे अक्सर भूल जाता है
वही तन्हाईओं में आदमी के पास होता है

वाह भई क्या खूब कहा है...सच कहा है. सुन्दर बहुत सुन्दर बधाई रवि जी!

avenindra का कहना है कि -

दिल को छु गया हर शेर ......ये आपके लिए
काली रात के दामन मैं कोई जुगनू चमकता है
ऐ रवि इस बज़्म मैं तेरा एहसास होता है !!!!!!!!

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

arse baad hind yugm par aaya aur badhiya ghazal padhne ko mili ..

कभी खामोश लम्हों में मुझे अहसास होता है
कि जैसे ज़िन्दगी भी रूह का बनवास होता है

behad khubsurat matla....


सुना था दर्द होता है ग़मों का एक सा लेकिन
हमारा आम होता है तुम्हारा खास होता है

kya baat hai ..waah .... aur ye guymaan sabko hota hai ... ki unhe jo dard hai sabse bada hai ..khaas bhi hai ..


किसी के वास्ते बरसात है बदला हुआ मौसम
किसी के वास्ते ये साल भर की आस होता है

laakh take ka sher hai ...... nahi ...saal bhar ki aas anmol; hai...

'रवि ' मुमकिन है सहरा में कहीं मिल जाये कुछ पानी
समंदर तो हकीकत में मुकम्मल प्यास होता है

behad khubsurat maqta ravi ji.....achha laga aap ko padhna

श्याम सुन्दर सारस्वत का कहना है कि -

शेर के दोनों मिसरो (पंक्तियों ) में आपस में राब्ता यानी सबंध होना चाहिए .....मगर उस शेर में ऐसा नहीं है ...
मई ओ जून में दुआएं मांगते है जो ... उन्हें झट से दिसंबर मान लेता है....क्या है ये ....

हवस इंसान के सर चढ़ के जिस पल बोलती है तब
वो इक बीमार कुतिया को हसीना मान लेता है
अदब में कुत्ते , कुत्तिया आदी लफ़्ज़ों का इस्तेमाल ठीक नहीं माना जाता है...
इन शायर साहेब से अगर आपका तार्रुफ़ है तो इन्हें समझाए .....

Anonymous का कहना है कि -

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