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Wednesday, March 10, 2010

लो वे फिर जीत गए अपनी सौ मेहरारुओं


लो
वे फिर जीत गए
अपनी सौ मेहरारुओं
बेटियों बहुओं या जयप्रदाओं को
गद्दी पर बिठाने के प्रयास में
बजा रहे हैं दुन्दुभी की
यह  कर दिखाया है हमने
महिला दिवस के पावन?दिन
पर क्या इससे बदल जायेगी
लाखों करोडो मजदूर औरतों की तकदीर
क्या मिल
जाएगा
उन्हें पेट भर खाना
सर  छुपाने को छत
या एक अदद बिछौना
या बीमार पड़ने पर
वेतन यानी मजदूरी मिल जाएगी उस दिन kee
 या दवा ही हो जाएगी मुहैया

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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

बधाई शाम सखा जी, बहुत ही सटीक बात अपनी कविता द्वारा कही है आपने..आज भी कई ऐसी महिलाये हैं जो अपने अधिकारो को नही जानती और न ही उन्हे कथित समाज आगे बढ्ने देता/ कुछ महिलाओ के उत्थान को समाज की हर महिला का सौभाग्य नही कहा जा सकता/केवल एक दिन की रस्म अदायगी महिलाओ का उद्वार नही कर सकती/इसके लिये महिला को ही आगे आना होगा अपने ही घर की बेटी और बहू को समान अधिकार दिलाकर...शाम जी बहुत-बहुत बधाई!

Tarun / तरुण / தருண் का कहना है कि -

पुरुषों को 67% आरक्षण की बधाई !
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Guftugu का कहना है कि -

श्याम जी ,बहुत हद तक आपकी अभिव्यक्ति सच है लेकिन यह भी सच है की बहुत सारी महिलाये जो पुरुषो की कठपुतलिया नहीं है उन्हें महिलायों की आवाज़ बढाने का एक सशक्त माध्यम भी मिला है.हम क्यों भूल जाते है की हमारे बीच महाशेव्ता देवीजी,मेधा पाटेकर,अरुंधती जी और भी न जाने कितनी महिलाये है जो आदिवासी और मजदूर औरतो की आवाज है और बनेगी.मुझे पूरा यकीं है की यह बिल महिलायों की तरक्की का एक बहुत बड़ा माध्यम बनेगा और हिंद युग्म के सभी संवेदनशील पुरुष यदि इतना साथ देंगे फिर तो भारत की महिलायों को आगे बढने से कोई रोक ही नहीं सकता.आप सभी को महिला बिल पास होने पर बहुत बधाई.स्मिता मिश्रा

gazalkbahane का कहना है कि -

स्नेहिल स्मिता जी
जो नाम आपने दिये वे और कुछ और ब्रांड नेम स्त्रियां जितना नाम दाम पा रही हैं उतना काम नहीं उतना क्या उस नेम-फ़ेम का 1% भी काम नहीं किया है उन्होने .उन सबसे ज्यादा स्त्री के सुख के लिये तो गांव की दाइयां कर रही हैं ,पूछे उन स्त्रियों से जिनने अपने उन के कारण जीवन पाया है
मेरी कविता अपने संक्षिप्त कलेवर में राज्नेताओं पर कटाक्ष भर है-१३ साल में जितना पैसा समय इन १०० जयप्रदाओं हेतु खर्च हुआ अगर वह आम महिला उत्थान हेतु किया जाता तो
यह महज एक नारा है -गरीबी हटाओ जैसा- राज्नीति से प्रेरित वे सोचते हैं कि इस वजह से वोट मिल जाएगी।
आज नज्मा हेपतुला,मीरा कुमार ,मायावती, जयललिता ने इतने वर्षो में क्या कोई आवाज भी उठाई महिलाओं हेतु- रेनुका चौधरी जैसी अनेको को तो छोड़ दे
और -राबड़ी--RABRI
अति विनम्र निवेदन

Guftugu का कहना है कि -

श्याम जी,आपने महाश्वेता जी पर टिप्पड़ी नहीं की.आप जानते ही होंगे उन्होने आदिवासी महिलाओ के लिए क्या कुछ नहीं किया.इसके अतिरिक्त मेरे अपने शहर लखनऊ की न जाने कितनी महिलो को मै जानती हूँ जो महिला उत्थान के लिए सच में क्या कुछ कररही हैं.बस मुझे लगता है यह बिल परदे के पीछे काम करने वाली महिलायों को आगे बढने में मदद करेगा .स्मिता मिश्रा.

प्रवीण पाण्डेय का कहना है कि -

क्या संसाधनों में भी 33% आरक्षण मिलेगा महिलाओं को ।

Rajesh 'Pankaj' का कहना है कि -

Jarurat keval apni soch badalne kee hai. Baaki sari behas keval behas hee hai. Stree ho ya purush, kisi aarakshan kee jarurat nahin. Apne man se dono ko smanata kee drishti se dekhna aur samajhana hoga. Shyam jee ki utkrisht rachna ke liye saadhuvaad!

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