वो भी पत्थर की तरह खामोश सब सुनता रहा
देर तक पंछी ने जाने पेड़ से क्या-क्या कहा
बेहया बरसात में भीगा शजर जब देर तक
धूप ने डांटा तुझे लग जायेगी पागल हवा
तू भी मेरी ही तरह मजबूर सा है शहर में
ओ परिंदे आ बना ले मेरे घर में घोंसला
खूबसूरत रास्ते हैं शहर में पर हर जगह
फासला ही फासला है फासला ही फासला
एक बच्चा दूर जाता है तो मर जाती है माँ
इतने बच्चों का बिछोड़ा गाँव ने कैसे सहा
दर्द बढता है तो आंसू सूख जाते हैं 'रवि '
आपने तो सिर्फ वो देखा जो आँखों से बहा
यूनिकवि- रवीन्द्र शर्मा 'रवि '
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
तू भी मेरी ही तरह मजबूर सा है शहर में
ओ परिंदे आ बना ले मेरे घर में घोंसला..
nischit rup se top hai aap bahut badhiya rachana..sundar gazal..bahdai
एक बच्चा दूर जाता है तो मर जाती है माँ
इतने बच्चों का बिछोड़ा गाँव ने कैसे सहा
सत्य वचन!
पूरी गज़ल काबिल-ए-तारीफ़ है।
बधाई स्वीकारें।-
विश्व दीपक
बस क़त्ल कर देते हैं आप..हर बार !!
बेहया बरसात में भीगा शजर जब देर तक
धूप ने डांटा तुझे लग जायेगी पागल हवा
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एक बच्चा दूर जाता है तो मर जाती है माँ
इतने बच्चों का बिछोड़ा गाँव ने कैसे सहा
--खूबसूरत गज़ल।
इन शेरों ने मन मोह लिया.
एक बच्चा दूर जाता है तो मर जाती है माँ
इतने बच्चों का बिछोड़ा गाँव ने कैसे सहा
sach kaha hai
दर्द बढता है तो आंसू सूख जाते हैं 'रवि '
आपने तो सिर्फ वो देखा जो आँखों से बहा
man ko chhu gayi baat aap ki
badhai
rachana
इस गज़ल को पढ़ के आंसू आँख से आये छलक
दिल कसक कर मुझसे गम की दास्ताँ कहने लगा.
कविता की आखिरी पंक्तियाँ दिल को छु गयी .... बहुत सुंदर रचना
"दर्द बढता है तो आंसू सूख जाते हैं 'रवि '
आपने तो सिर्फ वो देखा जो आँखों से बहा"
दर्द बढता है तो आंसू सूख जाते हैं 'रवि '
आपने तो सिर्फ वो देखा जो आँखों से बहा"
बेहतरीन
'रवि' जी की गज़ल ने फिर से हिला कर रख दिया
सच्चाई पढता गया और दर्दे-दिल बढ़ता गया
यूनी कवि फिर से बधाई स्वीकारें. राकेश कौशिक
गज़ल बेहद सुन्दर है. इस का एक एक शेर लाजवाब है. पर मुझे एक तकनीकी संदेह है. यह गज़ल रदीफ के बिना है और ऐसी कई गजलें होती हैं. पर गज़ल के मतले के अनुसार काफिया 'हा' बैठता है. जैसे रहा कहा. पर बाकी शेरों में 'हा' को बदल दिया गया है और कहीं ला है तो कहीं हवा है. मैं ज्यादा नहीं जानती पर शायद यह इस गज़ल का नुक्स है. खुद शायर कुछ कहें तो बेहतर. - उर्मिल शर्मा
वो भी पत्थर की तरह खामोश सब सुनता रहा
देर तक पंछी ने जाने पेड़ से क्या-क्या कहा
बहुत ही लाजवाब पंक्तियां ...सुंदर भाव..बहुत-बहुत बधाई!
Har ek sher laajawab hai ! Dil ko chu jaane waali gazal ! bahut bahut badhayi !
"इतने बच्चों का बिछोड़ा गाँव ने कैसे सहा" bahut hi behtareen gazal hai ravi ji...! kamaal kar diya !
Bahut hi sundar vicharo ko piro kar banaayi gayi ek behtareen gazal ! WAH-WAH !
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