भरा-भरा सा दिन लगता है लेकिन खाली-खाली शाम
कहाँ गयी चौपालों वाली बतियाती मतवाली शाम
घर जाने का मन होता था मन में घर आ जाता था
शाम ढले ही इंतजार में खुलती खिड़की वाली शाम
सारे दिन की थकन मिटाती गय्या जैसी लगती थी
आँगन के पीपल के नीचे करती हुई जुगाली शाम
बाबूजी का हुक्का पानी अम्मा का चूल्हा चौका
सब बच्चों की अपने अपने हिस्से वाली थाली शाम
सूरज जाते जाते लेकर चला गया है अपने साथ
मैंने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर इतनी देर संभाली शाम
वो चौपालों की शामें थीं ये शामे चौराहों की
आवारा सड़कों संग बैठी होगी कहीं मवाली शाम
माना तुम्हें शहर ने जगमग-जगमग रातें दी होंगी
पर इसके बदले में इसने देखो 'रवि' चुराली शाम
--रवीन्द्र शर्मा 'रवि
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
bahut khoobsoorat saari purani yaadein samet di hain...
सूरज जाते जाते लेकर चला गया है अपने साथ
मैंने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर इतनी देर संभाली शाम
कितनी खूबसूरत भावनाएं हैं इन लाईनों में...गांव खेत खलिहान सभी के बीच प्यार की सुगन्ध.रवि जी बहुत-बहुत बधाई!
वाह ... रवि जी..
इस गज़ल की हरेक पंक्ति (मिसरे) से गाँव का वही सौंधपन झलक रहा है। अब मेरा मन भी गाँव जाने को ललच रहा है। बहुत खूब.. विशेषकर यह शेर:
सूरज जाते जाते लेकर चला गया है अपने साथ
मैंने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर इतनी देर संभाली शाम
बधाई स्वीकारें!
-विश्व दीपक
वो चौपालों की शामें थीं ये शामे चौराहों की
आवारा सड़कों संग बैठी होगी कहीं मवाली शाम
बहुत खूबसूरत बिम्ब उकेरा है
वाकई बहुत उम्दा
वाह...वाह...वाह....अतिसुन्दर !!!!
मन मुग्ध कर लिया आपकी इस भावप्रवण प्रवाहमयी सुन्दर रचना ने....
बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर....
गज़ल का हर शेर नायाब है. रविन्द्र जी की अच्छी से अच्छी गजलें देने के लिए शैलेश जी का हार्दिक धन्यवाद.
out og the world...behad dhaakad ghazal...
सूरज जाते जाते लेकर चला गया है अपने साथ
मैंने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर इतनी देर संभाली शाम
aur ye wala sher to bas ...
सारे दिन की थकन मिटाती गय्या जैसी लगती थी
आँगन के पीपल के नीचे करती हुई जुगाली शाम
बाबूजी का हुक्का पानी अम्मा का चूल्हा चौका
सब बच्चों की अपने अपने हिस्से वाली थाली शाम
सूरज जाते जाते लेकर चला गया है अपने साथ
मैंने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर इतनी देर संभाली शाम
आपकी रचना पढ़कर गाँव की याद आ गई सुन्दर रचना के लिये रविन्द्र शर्मा जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा़
outstanding .. Behtareen sse kam to kya kahun
ravi ji aapki yeh gazal ek naayaab heera hai, is tarah ki rachnaayein bahut kam padhne ko milti hain aajkal..har sher kaamyaab aur ek behtareen gazal ke liye dil se daad kubool karein.
Allah kare jor e kalam aur jiyadaa.
Deep
सूरज जाते जाते लेकर चला गया है अपने साथ
मैंने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर इतनी देर संभाली शाम
आपकी ग़ज़ल हमको कहीं दूर गाँव में ले गई ,सब सजीव हो उठा
रवींद्र जी,
आपकी गज़लें हमेशा आकर्षित करती हैं..
सूरज जाते जाते लेकर चला गया है अपने साथ
मैंने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर इतनी देर संभाली शाम ..
गज़ल में नयापन लगा... बहुत खूब..
सूरज जाते जाते लेकर चला गया है अपने साथ
मैंने सिर्फ तुम्हारी ख़ातिर इतनी देर संभाली शाम
माना तुम्हें शहर ने जगमग-जगमग रातें दी होंगी
पर इसके बदले में इसने देखो 'रवि' चुराली शाम
Yeh do Sher Kamaal ke hain .. badhai.
वो चौपालों की शामें थीं ये शामे चौराहों की
आवारा सड़कों संग बैठी होगी कहीं मवाली शाम
Maine beher per zyada dhyaan nahi diya, aarambh se lay badhiya lag rahi thi magar is Sher per aakar kuchh khatak raha tha. Shayad pehle misre mein.
Bahut achchi rachana.
God bless.
आदरणीय रविन्द्र जी
नमस्कार .... वाकई शैलेश भारतवासी जी के हम आभारी हैं जिन्होंने ये साहित्य का ब्लॉग रूपी संगम हमें भेंट दिया और सरस्वती(नदी) जैसे आप
.... आप जैसे को लोगों को पढ़कर मेरी जिंदगी के कुछ वर्षों के अनुभव अपने आप ही बढ़ जाते है | आपकी विविधता ही कई रंगों का कोलाज है जिसमे कुछ रंग बरबस ही हमें लुभाने लगते हैं |
"बाबूजी का हुक्का पानी अम्मा का चूल्हा चौका
सब बच्चों की अपने अपने हिस्से वाली थाली शाम"
ये पंक्ति पढ़ के तो मैं ठगा ठगा और लुटा हुआ महसूस कर रहा हूँ | यही आपकी रचनाओं की सबसे खूबसूरत बात है
बधाई स्वीकारे और आशीर्वाद रूपी ऐसी रचनाएँ दे |
आपका बच्चा
अलोक उपाध्याय "नज़र"
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
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