कहने को हम दुनिया आधी
फ़िर भी हैं मर्दों की बांदी
गहने जेवर की सूरत में
बेड़ी ही हमको पहना दी
बिट्या रानी घर की शोभा
कहकर कीमत खूब चुका दी
डोली उठी पिता के घर से
पी के घर में चिता सजा दी
घर की साज-संवार करें हम
इतनी सी बस है आजादी
जन्म दिया आदम को हमने
जनम-जनम की हम अपराधी
बात बड़ी है सीधी सादी
औरत होना है बरबादी
घर तेरा है या है मेरा
असली बात यही बुनियादी
आधा हक ले के है रहना
बात आज तुम्हें यूं समझादी
अनाम को-‘बेरदीफ़ मुस्लसल’गज़ल गज़ल
वज्न-फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन-काफ़िया ‘ई’
मुस्लसल=आम तौर पर गज़ल का हर शे‘र आजाद होता है
यानि हर शे‘र में अलग विषय रहता है यही सर्वमान्य तथ्य है
लेकिन एक विषय पर आधारित गज़ल जिसे मुस्लसल’गज़ल
कहा जाता है,कहने की परम्परा भी है।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
6 कविताप्रेमियों का कहना है :
जनम दिया आदम को हमने,जनम जनम की हम अपराधी....बहुत अच्छी तरह एक स्त्री के जज़बातों को समझा! बहुत-२ बधाई!
हक लेना चाहते हुए भी पूरा हक कहाँ मिलता है.?बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति है.
घर की साज-संवार करें हम
इतनी सी बस है आजादी
जन्म दिया आदम को हमने
जनम-जनम की हम अपराधी
सच्ची बात दिल से लिखी है. बधाई
बहुत ही सुन्दर।
गुरु बहुत सही अभिव्यक्त किया है आपने .....
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
अच्छी कविता ..
बधाई...
बिट्या रानी घर की शोभा
कहकर कीमत खूब चुका दी
डोली उठी पिता के घर से
पी के घर में चिता सजा दी
shyaam ji bahut khoob, behaad sanjeeda khaayalat hain
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)