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Thursday, February 19, 2009

बोनसाई







क्या पेड भी
कभी करते है अपराध..... ?
अगर नहीं तो
क्यूँ बना दिये जाते है बोनसाई....?
ना पिपिलिका थपकियां
ना कोयल की लौरियां
ना पतझड का वस्त्रदान
ना बंसंत का धूपस्नान
ना छाह ना राह
ना टोही ना बटोही
ना प्रेमासिक्त पुकार
ना वृषभ हुँकार
ना गर्द ना गर्दी
ना गर्मी ना सर्दी
ना श्रमिक ना कलेवा
ना गडरिये ना सिंदूरदेवा
ना तमगे सा आईना
दाढी बनवाता गंवई ना
ना शिखर गरूड चिंतन
ना धरा संत मंथन
प्रकृति कभी
गलत ना रचती
जो कुछ है वह सही है
स्वर्ग का तो पता नहीं
कद्दावरों का
नर्क है तो बोनसाई है।
लुभाते भाते सबको
पर किस्मत
सलौनी नहीं होती
कद छोटा होता है
पर महसूसियत
बोनी नहीं होती

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9 कविताप्रेमियों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई

neelam का कहना है कि -

कद छोटा होता है
पर महसूसियत
बोनी नहीं होती

bahut hi badhiya vishay ,

आलोक साहिल का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर विनय जी...
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

बहुत अच्छे विषय के साथ अच्छी रचना! बधाई!

संगीता स्वरुप ( गीत ) का कहना है कि -

विनय ,
वृक्षों को जो आनंद मिलता है उसका सजीव चित्रण किया है . और बोनसाई उन सब एहसासों से महरूम रह जाते हैं.. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है.
बधाई

Smart Indian का कहना है कि -

बहुत सुन्दर!

manu का कहना है कि -

विनय जी,
आप भी कहेंगे की... मगर एकदम मेरे मन की बात कही है आपने..पूरी संवेदनशीलता के साथ...बोनसाई सिर्फ़ नज़र से देखने वाले को आनद दे सकते हैं ....मन से देखने वाले को सुन्दरता से पहले पीडा ही नज़र आती है..... मुझे एकदम से ऐसी रचना की किसी से भी .....कतई भी उम्मीद नही थी.....के जैसा मैं महसूस करता हूँ....कोई उस पर ऐसी कविता भी पढ़वा देगा.....आपकी तारीफ़ ..मेरे बयान से बाहर है.....

Himanshu Pandey का कहना है कि -

निश्चय ही पेंड़ की संवेदना से दो-चार है आपका मन. पूरी कविता में विवरण हैं, बहुत से ऐसे भी जिनसे बहुधा पेंड़ों की कोई संगती नहीं, पर वे संवेदना के व्यापक फ़लक के कारण स्थान पा गये हैं - जैसे -
’दाढी बनवाता गंवई’, ’तमगे सा आईन” आदि.

इस सुन्दर रचना के लिये धन्यवाद.

Soni का कहना है कि -

बहुत अच्छा प्रयास विनय जी. मजा आ गया. पर फ़िर भी कहूँगा : Big things come in small package. आपकी कविता, जो 'एक चित्र ढेरो कवितायें' के अंतर्गत है, भी बहुत अच्छी लगी. " तस्वीरें भी बोलती है" - लगा की आपने फ़िर से इस कहावत को सिद्ध किया है.
- सोनी, जर्मनी से

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