भनक पड़े झरती बूंदों की खिड़की बन्द किया करता
कलरव पंछी का सुन कर भी कितना बोर हुआ जाता हूँ
रिसने लगे पलक से आँसू फूल पत्तियां देख देख
शिकायत भँवरों की गुंजन से लयभंग की मीनमेख
छ्टा निराली छोड़ के नकली चित्रों से मन बहलाया
झूला छोड़ महकती डाली डालर गिनना मुझको भाया
डूब गया नोटों में खड़ी कर दी आट्टालिकायें
जिस्म कैद हथकड़ी बजाता चिल्ला कर गाता हूँ
धूल इकठ्ठी की जीवन में कंकर बस हमने बीने
देख न पाया चांदनी के मृदुल अधर रस भीने
हुआ अनमना, एकाकी, बोझिल दिमाग अपना ढोता
कल्पवृक्ष की छाया में भी मृगतृष्णा ही रहा संजोता
नृत्य हो रहा महफिल में मैं दिवास्वप्न में खोया
झनझन डूब गई, सिक्कों की खनखन मैं पाता हूँ
हो गई है सुनसान डगर थक चला हूँ सब कुछ हारे
है धुंधलाया आकाश धरा बोझिल है गम के मारे
सूख गया अनुराग ह्दय से बिन बसन्त का मेरा मन
सूरज से गीरता लावा करता महलों का ध्वंस दनादन
हुये तमाशाई तारे दिखलाते दिन में नाटक
भीतर झांक के देखूं जितना गहन तमस पाता हूँ
-हरिहर झा
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुन्दर सा गीत. धन्यवाद.
हुये तमाशाई तारे दिखलाते दिन में नाटक
भीतर झांक के देखूं जितना गहन तमस पाता हूँ
hirday vidaarak rachna ,khubsoorat
bhaavovyakti .
itna hi malaal hai ,to bandhiye boriyabistar aur aa jaaiye waapas
apne desh me bhi roti to milegi hi ,aur hindyugm ke cheeten aur bauchaar to aapke saath hamesha hain ,chaahe aap waha unchi attalikaaon me rahen ya yahaan jhopdi me .hahahahahhhaahahahahahah
सुंदर |
अवनीश
हुआ अनमना, एकाकी, बोझिल दिमाग अपना ढोता
कल्पवृक्ष की छाया में भी मृगतृष्णा ही रहा संजोता
झा साहब,
सवेदना के स्तर को छूती पंक्तियाँ है | समग्र कविता ही सुंदर है , बधाई |
सादर,
विनय के जोशी
धूल इकठ्ठी की जीवन में कंकर बस हमने बीने
देख न पाया चांदनी के मृदुल अधर रस भीने
हुआ अनमना, एकाकी, बोझिल दिमाग अपना ढोता
कल्पवृक्ष की छाया में भी मृगतृष्णा ही रहा संजोता
खूबसूरत शब्दावली,भाव अद्भुत,
अर्थ गुनगुनाती सुंदर अभिव्यक्ति
हरिहर जी,
सुंदर कविता के लिए बधाई स्वीकारें....
सभी टीप्पणीकारों को धन्यवाद ।
नीलम जी ! गीत के रूप में कविता एक भाव-दशा होती है।
इस कविता के कारण अगर मैं भारत आगया -बोरीबिस्तर बाँध कर - तो सृजनगाथा में इन दो रचनाओं को क्या जवाब दूंगा ?
http://www.srijangatha.com/2008-09/Sept/austrelia%20ki%20chitthi-harihar%20jha.htm
http://www.srijangatha.com/2008-09/august/kavita-%20harihar%20jha.htm
aap ne to seriously le liya ,
haqiqat yah hai ki jitna watan se door rahte hain ,utni hi uske liye
muhbbat aur ijjat badhti jaati hai .paas rahne par to amooman har bhaartiy ki tarah ap bhi gaali hi enge ,apne desh ko,is system ko ,etc etc
Well, I was searching for some inspiration, some solace or some special meaning. But I felt, it was a Bhatkan - wandering aimlessly. There are days like that in everyone's life and may be one can appreciate and cherish these feelings then.
But, somehoe, please keep up, may be one day you 'll do a different mode of Poem which I would like to read again and again.
हरिहर जी,
वाह! आपकी रचना की यह पंक्तियाँ 'धुंधलाया आकाश धरा बोझिल है गम के मारे'' मन को बहुत छू गयीं हैं. बहुत अच्छी रचना.धन्यबाद.
हरिहर जी,
आप तो विदेश में रह कर ऐसा सोच रहे हैं पर जो इस देश में हैं वो भी सिक्कों की खनक में डूबे हुए हैं....
छ्टा निराली छोड़ के नकली चित्रों से मन बहलाया
झूला छोड़ महकती डाली डालर गिनना मुझको भाया
सुंदर भावाभिव्यक्ति .
बधाई
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