तुम उलझे मांझे से
मेरे जीवन में आते हो
सुकून से छत पर पसर जाते हो
पर सुलझाते हुए उनको
मै ख़ुद ही उलझ जाती हूँ
चाँद
जो तुम्हारा प्रतिबिम्ब है
इन ऊँची इमारतों में कहीं खो जाता है
उस को ढूंढने की अभिलाषा में
मै मंजिल दर मंजिल चढ़ती जाती हूँ
तुम्हारी हथेलियों में
रख अपना चेहरा
पिघलती हूँ
तुझमे खो के ख़ुद को पाती हूँ
स्नेह बूंद पी के
मै नशे में बौरा जाती हूँ
यादों की सिकुडी चादर
जो फैलाती हूँ
तुम्हारे शब्द
मेरी हथेलियों पर चढ़ गुदगुदाते है
कहते हैं ,मुझको सोच रही थी न
मै लज्जा जल से नहा जाती हूँ
दिल की गीली ज़मीं से
सांसों की गर्माहट तक
उनीदें ख्वाबों से जगती रातों तक
अलसाई उमंगों के
तरंगित होने और डूबने तक
मै तुझ से जन्म ले तुझ में समाहित हो जाती हूँ
--रचना श्रीवास्तव
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
तुम्हारे शब्द,,,,,,,,,मेरी हथेलियों पर चढ़ गुनगुनाते हैं,,,,,,,,
मुझको सोच रही थी न,,,,??
मैं लज्जा जल से नहा जाती हूँ,,,,,,,,,,,,
मन को छूते ...गहराई तक छूते ......
असरदार शब्द............लाजवाब रचना......
प्रथम पाठक की बधाई स्वीकारें रचना जी.....
रचना जी,
उलझे मांझे का प्रयोग पहली बार पढ़ा ...अच्छा लगा एक नई सोच लायीं हैं आप .
तुम्हारे शब्द
मेरी हथेलियों पर चढ़ गुदगुदाते है
कहते हैं ,मुझको सोच रही थी न
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है.
बहुत ही खूबसूरती से ख़ुद को समाहित कर लिया जहाँ से जन्म लिया था....
अच्छी कृति के लिए बधाई
सुंदर रचना के लिए बधाई |
-- अवनीश तिवारी
रचना जी मुझे तो आपकी रचना की प्रत्येक पंक्ति अच्छी लगी! आप बहुत अच्छा लिखती है! आपको मेरी बहुत-बहुत बधाई!
रचना जी.. बहुत अच्छी प्रेम कविता...
आप सभी के कोमल शब्दों का धन्यवाद .ये शब्द मेरी धरोहर है मेरी पूंजी है इनको मै हृदय के कोष्ट में बंद कर के रखती हूँ
क्यों की येही है जो मुझको लिखने की प्रेरणा देते हैं
रचना
दिल की गीली ज़मीं से
सांसों की गर्माहट तक
उनीदें ख्वाबों से जगती रातों तक
अलसाई उमंगों के
तरंगित होने और डूबने तक
मै तुझ से जन्म ले तुझ में समाहित हो जाती हूँ
mai wo yaad hoon ,jo kabhi mitna nahi chaahti ,
rachna ji aapki sohbat me to hum bhi...............
एक सुलझी हुई रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
रचना जी बहुत खूब .कविता का एक एक शब्द ख़ुद कविता है
बधाई
विनोदनी
बहुत ही सुन्दर कविता रचनाजी!
तुम्हारी हथेलियों में
रख अपना चेहरा
पिघलती हूँ
तुझमे खो के ख़ुद को पाती हूँ
स्नेह बूंद पी के
मै नशे में बौरा जाती हूँ
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