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Tuesday, February 03, 2009

हमको माफ़ करो


पिछले महीने की यूनिकवयित्री और सितम्बर २००८ माह की यूनिपाठिका रचना श्रीवास्तव का हिन्द-युग्म से रिश्ता बहुत पुराना है। आगे से ये हिन्द-युग्म पर स्थाई तौर पर कविताएँ प्रकाशित करेंगी।

खबरें बासी हों
इस से पहले
पढ़ लिया जाए
ये सोच के खोला अख़बार
पर शब्द नहीं थे वहाँ
पूरा पन्ना था खाली
समझ का बादल
छिन्न-भिन्न होता रहा
कम है शायद बिनाई मेरी
मुझे ही कोसता रहा
पन्ना संख्या तीन पर
कुछ शब्द सर जोड़े
परपंच कर रहे थे
मेरी हलचल से झुंझला के बोले
पेशानी पर नाहक ही बल डालते हो
मुख्य पृष्ट पर रोज क्या पढ़ते हो
बलात्कार, हिंसा, दहेज़ की मार
भ्रष्ट अधिकारी, कफ़न की नीलामी
नेताओं की बयान बाजी
अब तो पढ़ते-पढ़ते
आदत हो गई होगी
तो कल्पना के घोड़े दौड़ाओ
जो नहीं लिखा वो पढ़ते जाओ
जवान जो शहीद होता है
उस ख़बर को आख़िर में
एक छोटा सा स्थान मिलता है
अभिनेताओं की चटपटी खबरें
अभिनेत्रियों की नंगी तस्वीरों
और नेताओं की बीमारियों तक को
गढ़ा-गढ़ा कर के छापा जाता है
एक गरीब की आवाज को
महीन-महीन लिख के दबा दिया जाता है
शब्दों को तोड़-मरोड़ के
अपने ढंग से ख़बर बना ली
और एसे ही टी आर पी बढ़ा ली
हमने जो सच्चाई को
आवाज बनाना चाहा
मिटा दिए गए हम
बिके हुए शब्दों को
हमारी जगह बैठाया गया
झूठी ख़बर बही
लोग उसी में भीगते गए
इन बातों से होके क्षुब्ध
हम सभी अक्षर
हड़ताल पर हैं
जो तुम पढ़ना चाहते तो
वो लिखते हैं
जो वो लिखते हैं तुम पढ़ते हो
सच्चाई न वो लिख सकते हैं
न तुम पढ़ सकते हो
तो तुम्हारे पाप का भागी
हम क्यों बनें
कोरा कागज है जो चाहे पढ़ो
हमको माफ़ करो

--रचना श्रीवास्तव

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24 कविताप्रेमियों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

उस ख़बर को आख़िर में
एक छोटा सा स्थान मिलता है

रचना जी ,बेहद प्रभावी हैं ,आपकी कविता ,बधाई ,यह भी जान कर हर्ष हुआ क़ि अब आप ,
नियमित सदस्या हो गयी हैं भेजिए ,यह पाठिका पढ़ने के लिए तैयार है ,

सुनील मंथन शर्मा का कहना है कि -

bahut achchhi kavita

manu का कहना है कि -

शुक्र है,,,,,,,,,,अभी पिछली पोस्ट पर जिन कवियों का जिक्र मैंने किया है..उन्ही में से एक को तो नियमित रूप से पढने को मिलेगा...

मिटा दिए गए हम...... बिके हुए शब्दों को हमारी जगह बिठाया ...झूठी ख़बर बही..लोग उसी में भीगते चले गए.........
मेरे हिसाब से ये वो शब्द हैं जिन्हें छदों की कोई ज़रूरत नहीं.........हर तरह से अपना प्रभाव छोड़ते हुए........
लाजवाब ...

Anonymous का कहना है कि -

rachanaa ji sahi sateek yathaarthpark kavita hai badhaayee
sachmuch hi badhyee
2nd tipni unikavita ke baare men hai iska aap ya aapki kavita se koyee lena dena nahin hain
vahan 25 number par aati yahan pahale aajayegi ,log padh lenege is liye yahan post ki hai


मैं एक और जहाँ अनाम टिपन्नी से सहमत हूँ ,वहीं नियंत्रकों की साफगोई से भी प्रभावित हूँ ,वे अंक मिला की जगह अन्तिम चरण में अंक मिले ७,८,८ लिख कर इस भद्द से बच सकते थे ,लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया ,यह उनकी बेवकूफी या हठधर्मी कुछ भी हो सकती है |खैर प्रथम व् द्वितीय चरण के ६ जजों के निर्णय को जीरो करना कभी भी जायज नहीं ठहराया जा सकता इसमे बू आती है |आशा है ६ जज भी इसे देखकर आहात हुए होंगे और नियंत्रक इस से सबक लेंगें |कहीं यह एक कारण तो नहीं युग्म की पाठक संख्या न बढ़ने का |मैंने पहले भी चौथे छत्ते नम्बर पर आयी रचनाओं को प्रथम आयी रचना से बेहतर पाया है |एक और अनाम

manu का कहना है कि -

अरे बाबा .......!!!!!!!!!!!!!
६ जज ................?????
अनामी जी नमस्कार...आप या तो कुछ ज्यादा ही ऊंची चीज लग रहे हैं ....या ग़लत टाइप हो गया है..हमें तो लगा के ये अद्रश्य शक्तियां तीन ही हैं......

Harihar का कहना है कि -

जो तुम पढ़ना चाहते तो
वो लिखते हैं
जो वो लिखते हैं तुम पढ़ते हो
सच्चाई न वो लिख सकते हैं
न तुम पढ़ सकते हो
तो तुम्हारे पाप का भागी
हम क्यों बनें
कोरा कागज है जो चाहे पढ़ो
हमको माफ़ करो

बहुत अच्छी कविता ! रचनाजी

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

बहुत अच्छी कविता,
रचनाजी बधाई, स्वागत
विनय के जोशी

Anonymous का कहना है कि -

रचना जी आपकी रचना भी आपकी तरह बेहद अच्छी है,मुझे पूरी कविता ही अच्छी लगी पर २ पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी,की हम सभी अक्षर हड़ताल पर है,और कोरा कागज है जो चाहे pad लो..बहुत-बहुत बधाई!

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

इस रचना के बारे में क्या कहा जाए - बस Excellent !

-- अवनीश तिवारी

Unknown का कहना है कि -

जो तुम पढ़ना चाहते तो
वो लिखते हैं
जो वो लिखते हैं तुम पढ़ते हो
सच्चाई न वो लिख सकते हैं
न तुम पढ़ सकते हो
तो तुम्हारे पाप का भागी
हम क्यों बनें
कोरा कागज है जो चाहे पढ़ो
हमको माफ़ करो

अच्छी कविता,

सुमित भारद्वाज

Anonymous का कहना है कि -

Manu ji ab to sysm shkha ji ne bhi kah diya 6 jaj hain....hind yugm ki puri jankari to rakh liya kijiye ....??

manu का कहना है कि -

CHALIYE ANIMOUSE JI,
6 HAIN TO ....6-1=5 KE LIYE AFSOS KAR LETE HAIN ....AUR ZYAADA HON TO BATAA DEIN,,,,UNKE LIYE BHI THODA SAA GAM GALAT KAR LEINGE....
DOOSRE....MUJHE KISI KO SAMJHNE KE LIYE LIKHI HUI BAATO SE MATLAB NAHI HOTAA....LIKHA TO WAHAA PAR AUR BHI KAAFI KUCHH HAI....

ZAROORI NAHI KE HAR BAAT SAHI HO..

Anonymous का कहना है कि -

आप सभी के स्नेह को ले के चली हूँ कितनी दूर जा पाऊँगी क्या पता .पर आप के प्यार में डूबे शब्द यदि यूँ ही साथ रहे तो कविता के इस सागर में अपनी कश्ती दूर तक लेजा पाऊँगी
आप सभी का भावना भरे शब्दों से धन्यवाद
सादर
रचना

manu का कहना है कि -

पहले तो रचना जी से माफ़ी ....के उनकी कविता पर मैं किसी और बात को कह रहा हूँ..
हालांकि उनको मैं पहले टिपण्णी दे चुका हूँ....

नियंत्रक जी ,
मेरे ख्याल से जजों की भीड़ लगाने से कोई लाभ नही है....सही हों तो ये भी ज्यादा ही हैं.....और मेरा इरादा केवल प्रतियोगिता छोड़ने का था....अपनी ...अपनी कविता के छपने ना छपने का मुझे कोई फर्क नही पड़ता.....हां, मेरा दिल बहुत ही जल्दी टूट जाता है....मगर उस से ..जिसे कम से कम मैं जानता तो हूँ....
अआपके जज लोगों को मैं क्या जानू ...जो मुझे उन से कोई तकलीफ होगी या मेरा कोई दिल विल टूटेगा.... .हाँ बात चल पड़ी तो कह दिया....नही तो मुझे तो अपनी जबान एक महीने तक चुप रखनी थी.........

पर................
" नाम जब आ ही गया, फेहरिस्त-ऐ-गुनाहगार में,
आरजू थी जुर्म, सो ये भी खता कर के चले .."

पहले भी कह चुका हूँ के प्रतियोगिताया का रास्ता केवल हिंद युग्म से जुड़ने के लिए अपनाया था..चलो यूँ नहीं तो यूँ जुड़ गया.....शायद उस से भी मजबूत जोड़......क्या है वो... हां...फेविकोल................और ....
" आप होने ही थे अपने, आप की तो बात क्या..
हम रकीबों को भी अपना हमनवा करके चले..."

पर मुझे सिर्फ़ ये लगा ...के माना ४५ कवियों ने भाग लिया है......

पहले वाले की कविता ऐसी है.......अब..
जो बिचारा ४५ वें नंबर पर है....उसकी कविता के बारे में अगर कोई कल्पना करना चाहे तो कैसे करेगा .........और कहाँ तक करेगा...............
कवि क्या .....लोग तो उसके पाठक तक होने में शक करेंगे......सोच कर देखिये....अआप "इस नंबर एक की कविता से ....केवल ....आधा आधा अंक पीछे होते जाइए ..
और आखिरी पायदान पर खड़े आदमी के बारे में अपने विचार एक बार बना कर तो देखिये.........
आपको भी शक होने लगेगा के आख़िर उसने क्या लिखा होगा....जब मुझे ..ये बात फील हो रही है ..तो उसे कैसा लग रहा होगा...
या चलो जैसा भी लग रहा हो...पर नंबर 1 के हिसाब से उस को आप कहाँ खडा देखेंगे....?
इन सब से मुझे कोई लाभ नहीं है..........पर "कविता" को है .

" कुछ गिला गुल को, न बुलबुल को चमन साजों से हो,
कहना अपना फ़र्ज़ था, सो इक सदा करके चले..."

हो गई ग़ज़ल खाम खः...और छाप भी गई..दो और तीन मिला कर पाँच शेरोन की..........

और वो भी एकदम ताजा .....

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

मनु जी, आपने अपनी बात रखी.. अच्छा किया.. एनीमाउस नहीं बने.. ये और भी अच्छा किया.. :-)

मैं मई २००७ से लगातार इस प्रतियोगिता में भाग ले रहा हूँ... क्योंकि मैं इसको अपनी परीक्षा की तरह लेता हूँ... मुझे लगता है कि प्रथम १० में आने की उम्मीद मुझे और अच्छा लिखने के लिये प्रोत्साहित करती रहेगी...और ऐसा होता भी है... ये कहना कि फलाने की कविता मुझसे कम अच्छी.. मेरी ज्यादा अच्छी ये मैं नहीं मानता... जज ने कुछ सोच कर ही नम्बर दिये होंगे...बोर्ड के पेपर जब चैक होते हैं तब एक्ज़ामिनर क्या सोच रहा होता है ये हम नहीं जानते.. एक जैसा पेपर करने पर भी किसी के ८० तो किसी के ९० आते हैं... मुझे नहीं लगता कि इसमेम किसी का दोष है..
मैं चाहता हूँ कि आप लगातार इस प्रतियोगिता में भाग लें.. आगे भी...
मुझे लगता है कि जब नियंत्रक महोदय ने अपना पक्ष रख दिया है... तो ये विवाद अब नहीं होना चाहिये...

manu का कहना है कि -

तपन जी,
आपका बहुत बहुत शुक्रिया..........खासकर आपने कहा के मैंने बगैर एनी माउस बने अपनी बात रखी..... एनी माउस तो मैं बनता हूँ...पर बस यूँ ही........बन जाता हूँ.....

अभी हाल ही में कुछ नए एनी माउस आए हैं....मुझे स्टडी कर के....मेरी तरह लिखने को...
एक पकडा भी गया है....पर छोडिये.....ये भी होने ज़रूरी हैं.....अगर ये ना हों तो..अभी तक जो हमारे दोस्त बने हैं....वो कहाँ बनते....?
मुझे इस प्रतियोगिता से .....या इस के जजों से क्या...?..मुझे तो जो भी कहना होता है .यूँ ही कह डालता हूँ.......अब ...चलो छोडो.....
अगर मुझे यूनिकवि ....यूँ ही कभी ..बना भी दिया तो, मेरी नज़र तो..उसी अआखिरी वाले कवि पर रहनी है.....के उस पर क्या बीत रही होगी ,,......??

आप ख़ुद कह रहे हैं..........??????/
मैंने आप ही को तो कहा था के मैं युग्म से जुड़ना तो चाहता हूँ....पर इस जीत हार से दूर होकर.....और आपने ही कहा था के ये तो सबके लिए अनिवार्य है.........याद कीजिये.....
और मजे की बात ये के मेरे इस फैसले के फ़ौरन बाद ही कुछ ऐसा गुजर गया है के........मैं कह नहीं सकता........

Anonymous का कहना है कि -

are bhai sabhi se ek baat kahni hai rachna ji ki kavita to samajh aai na us pe likhiye .aapni ye bahas baethak pe kijiye

mahesh

manu का कहना है कि -

महेश जी,....अगर महेश जी ही हैं तो........ना भी हैं तो भी कोई दिक्कत नहीं.......
रचना जी की कविता पर हम पहले ही एक टिपण्णी दे चुके हैं........और वो भी ऐसी नहीं के उस पर संदेह किया जाए.....अब हमने यही पोस्ट क्यूं चुनी...??
क्यूनके पिछली पोस्ट की अधूरी बातें पूरी करनी थी.......
कोई शक हो किसी तरह का तो आप फ़िर से सवाल कर सकते हैं............
किसी भी रूप में......

Anonymous का कहना है कि -

ये सवाल केवल आप से ही नही था सभी से था जो अभी बहस कर रहे हैं
महेश

manu का कहना है कि -

महेश डियर , मालूम है के मेरे लिए नहीं था..........बाकियों के लिए था..पर जहाँ मैं बोल रहा हूँ तो ज़रा ठीक से बोला करो .आप मेरे बेहद ख़ास दोस्त होकर भी मुझ से यूँ बताव करोगे....?
मुझे तो सपने में भी गुमान नहीं था....ग़लत बात है डियर ....अब ..अपना गुस्सा इसे निकालोगे मुझ पर...................?????????????

Anonymous का कहना है कि -

me aap ko keval comments ke madhyam se janta hoon .is nate aap mujh ko dost kah sakte hai pr aap ke kuchh shabd mujhe achchhe nahi lage
mahesh

Safarchand का कहना है कि -

Kavita kaa kathya bhale bahas kaa mudda ho, kahne ke dhang par hi main 100% number doonga.....
Yaar ye bahasbazi kya? pratiyogita aur yudh mein farq hota hai--shayaad. Rachna ji --- kitne number mile --- parvaah na karna. yahaan to haal ye hai ki:--
"ik daag laga hai, sunaa ke dhota hoon". Wahi sunaana hi kavita hai.
Rachna ji, kotishah badhaii.

Anonymous का कहना है कि -

जो वो लिखते हैं तुम पढ़ते हो
सच्चाई न वो लिख सकते हैं
न तुम पढ़ सकते हो
तो तुम्हारे पाप का भागी
हम क्यों बनें
कोरा कागज है जो चाहे पढ़ो
हमको माफ़ करो
Rachna ji aapne akhbaron ki sachchhi ko badi bebaki se pesh kiya hai

Sulochana का कहना है कि -

जो वो लिखते हैं तुम पढ़ते हो
सच्चाई न वो लिख सकते हैं
न तुम पढ़ सकते हो
तो तुम्हारे पाप का भागी
हम क्यों बनें
कोरा कागज है जो चाहे पढ़ो
हमको माफ़ करो
Rachna ji akhbaron ki sachchhi ko badi bebaki se pesh kiya hai.Badhai ho

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