जनवरी माह की यूनिकवि प्रतियोगिता के शीर्ष १० में आईं शुरू की कविताओं के रचनाकारों के परिचय-चित्र जब तक प्राप्त हों, तब हम उस कविता की चर्चा कर लेते हैं, जिसके रचनाकार से हिन्द-युग्म का पुराना वास्ता है। पाँचवें स्थान की कविता की रचयिता रेनू जैन वारविक, रोड आइलैंड (संयुक्त राज्य अमेरिका) में रहती हैं और अक्सर हिन्द-युग्म में अपनी रचनाएँ भेजती रहती हैं। मई २००८ में हमने इनकी एक कविता 'बस कभी-कभी' प्रकाशित की थी, जिसमें इन्होंने कविता के माध्यम से एक बुजुर्ग महिला के दिल के अरमानों और उसके अन्दर छिपी अल्हड़ किशोरी प्रस्तुत किया था। जुलाई में इनकी एक और कविता प्रकाशित हुई 'सीता- एक प्रश्न'। इस कविता बहुत बहस भी हुई।
पुरस्कृत कविता- इंतज़ार
याद है मुझे
दिखाया था एक दिन तुमने
कैसे
दो पत्थरों से
जल उठती है अग्नि।
तुमने जलाई थी अग्नि
और, मैं करती चली गयी
उसमें सब कुछ स्वाहा ,
अपना मैं...
अपना अस्तित्व....
और फिर पता ही नहीं चला,
कब
रह गया
बस
राख का एक ढेर.....
इंतज़ार मुझे भी,
तुम्हें भी....
मुझे
एक आशा
कि जलाओगे तुम
फिर एक बार
एक नयी अग्नि....
और तुम्हें
तलाश
एक नए पत्थर की.....
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰५, ५॰२५, ६॰७५
औसत अंक- ५॰८३३३
स्थान- तीसरा
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४॰५, ४, ५॰८३३३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ४॰७७७
स्थान- पंद्रहवाँ
अंतिम चरण के जजमेंट में मिला अंक- ५
स्थान- पाँचवाँ
टिप्पणी- कवि को जिस नयी आग की तलाश है और उसके लिये नये पत्थर की, उसका श्रेय और अभिप्राय कविता के अंत तक आते-आते इतना अस्पष्ट और धूँधला हो गया है कि वह इसे कविता के लक्ष्य तक पहुँचने से रोक देता है। कविता को प्रेम-कविता का रूप देने का प्रयास हुआ है पर कविता बनते-बनते चूक गयी प्रतीत होती है।
पुरस्कार और सम्मान- ग़ज़लगो द्विजेन्द्र द्विज का ग़ज़ल-संग्रह 'जन गण मन' की एक स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
मुझे
एक आशा
कि जलाओगे तुम
फिर एक बार
एक नयी अग्नि....
और तुम्हें
तलाश
एक नए पत्थर की.....
जिंदगी का सच बोलती एक यथार्थ पारक कविता
आपकी कविता में भाव बहुत गहरा है,मुझे आपकी कविता पड़कर आजकल चर्चा में रही फिज़ा-चाँद याद आ गए.अच्छी रचना बधाई!
अच्छी रचना है रेनू जी...
बधाई हो..
बधाई रेनू जी...
बेहद यथार्थपरक रचना!
बधाई स्वीकारें!
पाचँवे स्थान के लिए बधाई,
अंतिम पंक्तियो मे कविता समझ आयी
सुमित भारद्वाज
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