1. भीड़ में अकेलापन
अपनो
की भीड़ में
अकेला होना
कितना अजीब होता है
ऐसे में आदमी
ख़ुद से दूर
और भीड़ के करीब होता है
रिश्ते लिजलिजे रिश्ते
पाँव तले
सांप से फिसल जाते हैं
और मन भयभीत होकर
कांपता रहता है
2. रेखा
जिंदगी
और मौत के
बीच
एक धूमिल सी रेखा है
जों
जाने कब
मिट जायेगी, किसने देखा है
3. माँ
माँ
क्या
सचमुच
बराबर की माँ है
बेटे की- बेटी की
अगर हाँ
तो क्यों
मनाती है वह
बेटे के पैदा होने का जश्न ?
और क्यों
शामिल होती है
बेटी के पैदा होने के मातम में
क्यों ?
4. मात
हजारों
फनियर साँपों सी
तेरी याद
रोज आती है
मेरे वर्तमान को डस जाती है
और
मेरे भविष्य पर
एक कोहरा
सा छा जाता है
मेरी जिंदगी की
शतरंज की बिसात पर
गैर का पदाति
मेरे शह-सवार
को खा जाता है
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत अच्छे श्यामजी !
हजारों
फनियर साँपों सी
तेरी याद
रोज आती है
मेरे वर्तमान को डस जाती है
माँ
माँ
क्या
सचमुच
बराबर की माँ है
बेटे की- बेटी की
अगर हाँ
तो क्यों
मनाती है वह
बेटे के पैदा होने का जश्न ?
और क्यों
शामिल होती है
बेटी के पैदा होने के मातम में
क्यों ?
समाज के यथार्थ को प्रतिबिंबित करती पंक्तियाँ ,एक औरत ही करती है यह दुराव ,श्याम जी माँ के इस दुराव को आपकी लेखनी ने बड़ा ही सही चित्रित किया है ,हम तो शायद आपके सबसे बड़े प्रशंसक है ,साधुवाद है आपको
माँ
क्या
सचमुच
बराबर की माँ है
बेटे की- बेटी की
अगर हाँ
तो क्यों
मनाती है वह
बेटे के पैदा होने का जश्न ?
और क्यों
शामिल होती है
बेटी के पैदा होने के मातम में
क्यों ?
-- पता नही किस मनोभावना से लिखा गया है ?
मै नही सहमत हूँ |
अन्य रचनायों के लिए बधाई |
-- अवनीश तिवारी
बेटे के पैदा होने का जश्न ?
और क्यों
शामिल होती है
बेटी के पैदा होने के मातम में
क्यों ?
समाज मे ये सदियो से चला आ रहा है और शायद सदियो तक और चले
सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक.......बहुत ही गहरे भाव लिए,अतिसुन्दर.
माँ
क्या
सचमुच
बराबर की माँ है
बेटे की- बेटी की
अगर हाँ
तो क्यों
मनाती है वह
बेटे के पैदा होने का जश्न ?
और क्यों
शामिल होती है
बेटी के पैदा होने के मातम में
क्यों ?
बहुत अच्छा लिखा है श्याम जी हरियाणा में तो स्थिति सबसे ज्यादा खराब है. भ्रूण हत्या के मामले में भी और बेटियों की दशा के सन्दर्भ में भी ....
सभी क्षणिकायें पसंद आईं...
हरियाणा और पंजाब की स्थिति सचमुच चिंताजनक है...
रिश्ते लिजलिजे रिश्ते
पाँव तले
सांप से फिसल जाते हैं
और मन भयभीत होकर
कांपता रहता है
2. रेखा
जिंदगी
और मौत के
बीच
एक धूमिल सी रेखा है
जों
जाने कब
मिट जायेगी, किसने देखा है
भावपूर्ण ..
दिल को छूती हुई सी
अद्भुत पंक्तियां!! श्याम जी
सादर
जिंदगी
और मौत के
बीच
एक धूमिल सी रेखा है
जों
जाने कब
मिट जायेगी, किसने देखा है
बहुत खूब सभी रचनाये बहुत सुंदर हैं
सादर
रचना
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