इस बार दूसरे स्थान पर जिस कवि की कविता आई है, वे हिन्द-युग्म को बहुत लम्बे समय से पढ़ते रहे हैं। पढ़ने, लिखने, साहित्य, कला, प्रकृति भ्रमण आदि में रुचि रखने वाले मुहम्मद अहसन वर्तमान में भारतीय वन सेवा के लखनऊ क्षेत्र के मुख्य वन संरक्षक हैं।
पुरस्कृत कविता- अतीत
पुल तोड़ दिया
नाव जला दी
संपर्क ध्वस्त कर दिए,
फिर भी तो तुम्हारी यादें,
प्रति दिन ही अंधड़ की भांति आती रहीं
और मन को किसी न किसी मरुस्थल में उडा ले जाती रहीं,
कभी दर्द के
कभी पीड़ा के
कभी जलन के;
और मैं वेदना के बवंडर में तिनके की भांति भटकता,
प्रेम का दंड पाता ही रहा
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ६॰५, ६॰९
औसत अंक- ५॰८
स्थान- पाँचवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ६, ५॰८ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰२६६
स्थान- छठवाँ
अंतिम चरण के जजमेंट में मिला अंक- ७
स्थान- दूसरा
टिप्पणी- छोटे पहर की गहरे भावबोध को आकार देती हुई एक कविता। मानवता और प्रेम की राह में चाहे जितने रोड़े डाले जायें, लेकिन इसकी अजस्त्र धारा मन के किसी कोने बहती ही रहगी। कविता का केन्द्रीय भाव कविता को गहराई प्रदान करता है।
पुरस्कार और सम्मान- ग़ज़लगो द्विजेन्द्र द्विज का ग़ज़ल-संग्रह 'जन गण मन' की एक स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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20 कविताप्रेमियों का कहना है :
अहसन भाई ,
दुनिया बहुत छोटी है ,आज कुदरत ने वो दिन मुकरर्र कर ही दिया कि आपकी कविता पढने को मिल ही गई ,पाण्डेय जी की "चिड़िया" कविता की वकालत हम आपसे कर रहे थे ,लहौलविलाकूबत ,आप से तो कुछ कहना छोटे मुहँ बड़ी बात ही हुई न ,आपने मुआफ किया की नही ,यह भी जानकर खुशी हुई की आप भी हमारे शहर की ही रौनक हैं |कविता -अकविता के बारे में तो अल्लाह कुछ न बुलवाए तो ही अच्छा है ,हिन्दयुग्म में आपका इस तरफ़ आने पर स्वागत है
बहुत ही सुन्दर, दिल को छू लेने वाली रचना है आपकी, खुबसूरत शब्दों को बहुत महीन धागे मे पिरोया है। बधाई।
ये हुआ गागर में सागर,अथाह दर्द को कम शब्दों में ब्यक्त करना, अच्छी रचना बधाई!
नीलम जी,
धन्यवाद. पता नही आप मेरी किता की प्रशंसा कर रही हैं या कि व्यंग. पांडे जी कविता 'चिडिया....' की मुझे याद है. हो सकता है मेरी कविता भी अकविता जैसी दिख रही हो किंतु वह किसी समाज सुधaर सम्बन्धी लेख या क्लास रूम का व्याख्यान जैसी कभी न दिखे गी. कविता तो प्रेम के लिए है , मधुर भावों को प्रकट करने के लिए है. उस में और सामाजिक या राजनैतिक नारे में अन्तर होना ही चाहिए .
मैं प्रसन्न हूँ कि आप का सम्बन्ध भी लखनऊ से है
-अहसन
प्रदीप वर्मा जी और नीति सागर जी,
आप का भी बहुत धन्यवाद आप को यह कविता पसंद आई.
अहसन
अच्छी कविता अहसन जी..
बधाई
इस कविता की प्रेरणा से मुझे भी कुछ याद आ गया ....... हाँ एक कविता है बहुत गजब की......
हवा बही
हवा बही
छिपकली की टांग
मकडी के जाले में
फंसी रही
फंसी रही
फंसी रही
makdi ke jaaleme me aap kya karne gaye the janaab ,jiski jo jagah hai ,wahi rahe to behtar hota hai ,nahi to yahi hota hai
नीलम जी,
छिपकली की टांग मकडी के जाल में नही जायगी तो और कहा जायेगी...?
कितना निक्कमा एनी माउस हैं ना.............?
मुझे मालोम है के कभी ना कभी मौका देखते ही मुझे भी तंग करेगा.......पर देखा जायेगा..
निकम्मा नहीं कहिये मनु साहब बहुत मेहनत से कविता लिखी है शुक्र मानिये की प्रतियोगिता में नहीं प्रेषित की वरना प्रथम पुरस्कार मिल जाता समझे जी, और जो ये कविता २ नंबर पर आई है न ऐसी तो १०० कवितायेँ एक दिन में लिख देता हूँ "हींग लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा"
मजाक नहीं कर रहा मैं एक कवि हूँ अगर मिलने का मन हो तो पता ठिकाना भी बता दूंगा
वेरी सारी कवि जी,..कविता को ...कुछ इसी ढंग से ''''
होरिज़नतल फार्म के बजाय ..
वर्टिकल .फार्म में लिखने की बात मैंने भी की है...उसी महकते गुल्हन वाली पोस्ट पर....
पर बेनाम होकर नहीं....हाँ, बेनाम मैं भी बन जाता हूँ कभी कभार ..पर किसी को चोट करने के लिए नहीं...और इतना ही बँटा हूँ के लोग साफ़ साफ़ पहचान सकें..के बेनाम होकर भी मं हूँ...वो और बात है के एकाध लोग इसका फायदा उठा जाते हैं और मुझे सफाई देने आना पड़ता है..हमारे भी गली मुहल्ले के बच्चे कभी कभी कमेन्ट कर देते हैं...
तो मुझे लगा के शायद उन्ही में से कोई नत ख़त बच्चा होगा ..सो जैसे प्यार दुलार में निक्कमा कह देते हैं...बस वैसे ही कहा था...
अब बेनाम होने के फायदे हैं तो ..नुक्सान भी तो है......है ना........?? हो सकता है के आप मेरे कोई बहुत ही ख़ास मित्र हों.....
बहुत ही छोटे में बहुत ही अच्छी बात कही आपने मोहम्मद जी....
बधाई स्वीकार करें.
आलोक सिंह "साहिल"
वाह मनु जी,
क्या शालीन शब्दों में आपने जवाब दिया इतनी कोमलता .............. आनंद आ गया. ... भाई ये होरिजोंटल और वर्टिकल वाला उदहारण तो मैं बहुत पहले से ही दे रहा हूँ ........ आपने दिया तो मन प्रसन्न हो गया... क्योंकि मुश्किल यह है कि इस प्रकार की कविता की प्रेरणा से आज के युवा कवि दिग्भ्रमित हो हो रहे हैं और 95%(Ninty Five)कवितायें इस रूप में केवल कचरा ही होती हैं (माफ़ करना इस कविता की बात नहीं कर रहा) नाम इसलिए छिपाया था कि आप लोग कहेंगे कि अरुण "अद्भुत' तो हिन्दयुग्म के कवियों के पीछे ही पड़ गया... मैं तो बहुत सम्मान करता हूँ हिंद युग्म का भी और इसके रचनाकारों का भी पर जो मुझे लगता है मैं स्पस्ट कह देता हूँ
ARUN JI ,
PAHLE WAALI TIPPANI KE HISAAB SE TO MILNE JAISI KOI UTSUKTAA NAHI HUI THI..............PAR AB JAROOR MILNAA CHAAHOONGAA.....
PAHLE ANAAM HAIN AAP JINKO MAIN...HAAATH JOD KAR...SIR NAWAA KAR NAMASKAAR KARTAA HOON.....
AUR MILNAA HI NAHIN ...AAPKI DOSTI BHI CHAAHOONGAA........
तपन शर्मा जी और अलोक सिंह साहिल साहेब ,
लोगों को छिपकली की पूंछ पर चर्चा करने दीजिये , आप फिलहाल मेरा धन्यवाद् स्वीकार करिए .
अहसन
अहसन जी,
समझने मे थोडा समय ज्यादा लगा, लेकिन कविता अच्छी लगी
अहसन जी,
समझने मे थोडा समय ज्यादा लगा, लेकिन कविता अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
Wah Arun ji aur Manu ji aap per taliyan bjane ko dil chah raha hai.....Taliyan......!!!!
पता नहीं यार...तुम सीरियसली हो या मजाक कर रहे हो......खैर दिल कर रहा ई तो पीतो तालियाँ.....
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