अरुण मयूख की
पहली छुअन से
खिले किसलय तो
कविता होती है
*
घन गरजे
मयूरा नाचे
मयूरी चूगे आंसू तो
कविता होती है |
*
क्या है तकली,
पूनी, सूत, कूकड़ी,
पूछे स्नातक तो
कविता होती है |
*
प्यासे प्रेमी सहारा में
तू पी, तू पी कर,
मर जाए तो
कविता होती है |
*
शहीद की माँ ,
जख्मी की माँ के
पोछे आंसू तो
कविता होती है |
*
छंद मुक्त या
छंद युक्त, मन
पिरोये मोती तो
कविता होती है |
*
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15 कविताप्रेमियों का कहना है :
शहीद की माँ ,
जख्मी की माँ के
पोछे आंसू तो
कविता होती है |
*
छंद मुक्त या
छंद युक्त, मन
पिरोये मोती तो
कविता होती है |
waah vinay ji ,kitne kam sabdon me baat kahi hai aapne ,chand mukt ,chandyukt jo man piroye wahi kavita hoti hai ,
घन गरजे
मयूरा नाचे
मयूरी चूगे आंसू तो
कविता होती है |
बहुत अच्छे विनय जी !
लाजवाब विनय जी
आलोक सिंह "साहिल"
उपर्युक्त भाव
अभिव्यक्ति बन
पिरोये गए
कवि ह्रदय से
यही कवि
यही उसकी कविता होती है
सादर विनय जी !!
जोशी जी...
बहुत अच्छी रचना लगी... बधाई...
बहुत ही उम्दा कविता लिखी है आपने बहुत बहुत बधाई ......... ऐसी कवितायें पढ़कर एक राह सी मिलती है और प्रेरणा भी की किस प्रकार भावनाओं को शब्दों में पिरोया जाए ............... आपको साधुवाद .......... सचमुच मन से ही निकलती है कविता .......... फ़िर न जाने क्यों आपके मन ने अन्तिम पंक्तियों में छंद और मुक्त छंद को परिस्फुटित किया ....... फ़िर भी बहुत बधाई
छंद मुक्त या
छंद युक्त, मन
पिरोये मोती तो
कविता होती है |
सही कहा विनय जी..
बहुत सुन्दर लिखा है।
इस सुंदर रचना के लिए बधाई |
यही प्रश्न मेरे मन में भी आया था और उसका उत्तर मैंने इन शब्दों में लिखा -
जब मन पवित्र बनता है,
और विवेक शुद्ध होता है,
हाथों मे हलचल होती है,
चिंतन की धड़कन बढ़ती है,
आशीर्वाद देती है सरस्वती,
तब कविता कोई है बनती |
साधुवाद
अवनीश
आत्मीय!
आपकी कविता को पढ़कर मन में उपजे भाव कुण्डली छंद आपको समर्पित हैं
कविता होती है 'सलिल', जब हो मन में पीर.
करे पीर को सहन तू, मन में धरकर धीर.
मन में धरकर धीर, सभी को हिम्मत दे तू.
तूफानों में डगमग नैया, अपनी खे तू.
विजयी वह जिसकी न कभी हिम्मत खोती है.
ज्यों की त्यों चादर हो तो कविता होती है.
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छंद मुक्त या
छंद युक्त, मन
पिरोये मोती तो
कविता होती है |
bas kawita wahi jo yeh prabhaav chhode.
कविता की अच्छी विवेचना की है आपने। कई सारे बिंब भी नए हैं।
रचना पसंद आई। बधाई स्वीकारें।
और हाँ
"छंद मुक्त या
छंद युक्त, मन
पिरोये मोती तो
कविता होती है |" लिखकर आपने छंदमुक्त और छंदयुक्त रचनाओं पर चल रही बहस को एक रोचक मोड़ दिया है।
-विश्व दीपक
विनय जी,
सही मौके पर कही है आपने शानदार कविता........
आशा करता हूँ....के अब लोग कुछ विचार करेंगे.....मैं फ़िर बहुत कुछ लिखने जा रहा था....पर लगता है के...फिलहाल यहाँ चीख चिल्ला कर... सिर्फ़ अपनी एनर्जी वेस्ट करनी है......
हरिल जो थामे लकड़ी
सीप संजोये मोती
स्नेह के उठें उबार
विनय जी उठाये लेखनी
तो कविता होती है
क्या कहने आप की कविता के
सादर
रचना
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