कैसे मुमकिन है कि ख़ुद को जान लें
अजनबी हो तो उसे पहचान लें
क्या ज़रूरी है कि सबसे ज्ञान लें
एक दिन तो अपना कहना मान लें
कोई उनसे कह दे इतना मान लें
चैन लूटा, दिल लिया अब जान लें
रात है, फ़ुर्सत भी है तन्हाई भी
आओ अब यादों की चादर तान लें
सर्द मौसम को बदलने के लिये
आओ नाज़िम धूप का एहसान लें
--नाज़िम नक़वी
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्या ज़रूरी है कि सबसे ज्ञान लें
एक दिन तो अपना कहना मान लें
सर्द मौसम को बदलने के लिये
आओ नाज़िम धूप का एहसान लें
बहुत खूब .......... अच्छा लिखा है बधाई .............
बहुत अच्छा लिखा है! बधाई !
कैसे मुमकिन है कि ख़ुद को जान लें
अजनबी हो तो उसे पहचान लें
नाजिम जी बहुत ,बहुत .बहुत ही सुंदर लिखा है पूरी ग़ज़ल दिल में कही गहरे तक असर करती है
कलम गोयद की मन शाहे जहानम
कलमकश रा बदौलत मी रसानम
सर्द मौसम को बदलने के लिये
आओ नाज़िम धूप का एहसान लें
bahoot khoob है ये sher ...........
lajawaab
नज़्म कह ,चाहे रुबाई या ग़ज़ल,
फिक्र का दिल में मगर मीजान ले,,
हुज़ूर नकवी साहेब ,आपकी जमीन पर कहा गया ये शे'र अआपकी इस हसीं ग़ज़ल के लिए हरगिज नहीं है...ये तो लिखने और परखने वालों के लिए है....मैं तो समझा था के आखिरी टिपण्णी कर चुका हूँ.....पर आपको पढ़ कर कहा रुका जाता है...
मुबारक......
हाँ ..आपके हसीं मकते से कुछ मिलता जुलता सा कहा था कभी...
गम-ऐ-हस्ती के सौ बहाने हैं
आज अपने पे आजमाने हैं
सर्द रातें गुजारने के लिए
धुप के गीत गुनगुनाने हैं.
वैसे मुझे ये यहाँ लिखना नहीं चाहिए था.....पर फ़िर भी....
रात है, फ़ुर्सत भी है तन्हाई भी
आओ अब यादों की चादर तान लें
सर्द मौसम को बदलने के लिये
आओ नाज़िम धूप का एहसान लें
बहुत बढ़िया...
गजल अच्छी लगी,
तीनो मतले बहुत अच्छे है , पहले और दूसरा ज्यादा पसंद आया
बहुत अच्छा,
रात है, फ़ुर्सत भी है तन्हाई भी
आओ अब यादों की चादर तान लें
सर्द मौसम को बदलने के लिये
आओ नाज़िम धूप का एहसान लें
रात है, फ़ुर्सत भी है तन्हाई भी
आओ अब यादों की चादर तान लें
सर्द मौसम को बदलने के लिये
आओ नाज़िम धूप का एहसान लें
खूबसूरत गज़ल है।
बधाई स्वीकारें!
-विश्व दीपक
रात है, फ़ुर्सत भी है तन्हाई भी
आओ अब यादों की चादर तान लें...
क्या बात है नाजिम जी...
behatarin guruvar
ALOK SINGH "SAHIL"
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