आज हम एक नये अनुभवी कवि से आपका परिचय करवा रहे हैं। हिन्दयुग्म के पाठकों को इनके अनुभव का फ़ायदा ज़रूर मिलेगा। आवाज़ से परिचित पाठक इनके बारे में पहले से जानते होंगे। ईद के मौके पर हिन्दयुग्म इनका एक आलेख प्रकाशित कर चुका है।
आगे भी हम इनकी रचनायें आपके समक्ष प्रस्तुत करते रहेंगे।
उनका परिचय उन्हीं के द्वारा:
शायद दुनिया का सबसे मुश्किल काम है अपना परिचय देना। काश सब यही कहते कि " बुल्ला कि जाणा मैं कोन?"। मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली, ऊंचाहार में हुआ। घर की तरबियत में शराफ़त भी थी, इल्म भी था, और शायरी भी। बीए इलाहाबाद से किया और सच मानिये तो शायरी का चस्का इसी शहर ने लगाया। अपने क़स्बे के नाम पर नाज़िम मुस्तफ़ाबादी के तख़ल्लुस से लिखना शुरू किया। शुरू शुरू में मुशायरे और कवि सम्मेलनों में जाने की बड़ी फ़िक्र रहती थी। शायद कुछ पैसे और वाह-वाह की भूख इसकी वजह रही हो। लेकिन वो माहौल (शुक्र है) अपनी तबीयत को रास नहीं आया। कभी कोई ऐसी पढ़ाई या इम्तेहान नहीं दिया जो नौकरी मिलने की आस जगाता हो। पत्रकार बनने का सपना कभी नहीं टूटा, घरवालों की नाराज़गी के बावजूद भी नहीं। छोटे से साप्ताहिक समाचार-पत्र इलाहाबाद केशरी के संपादन से जेब ख़र्च की कमी को पूरा किया। अपने क़स्बे से एक शाम का दैनिक समाचार " ऊंचाहार मेल" की शुरूआत की जो सिर्फ़ 45 अंक के बाद बंद करना पड़ा, पैसे ख़त्म हो गये थे।
दिल्ली आया और विनोद दुआ की शरण में जगह मिल गई, स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर। बस तब से लेकर आजतक, पिछली एक दहाई से इसी टीवी और फ़िल्मों की दुनिया में कुछ सार्थक कर पाने की जुगत में हूं। क्या-क्या किया ये बताना ठीक नहीं, लगेगा नौकरी के लिये बायो-डाटा लिख रहा हूं। "
ग़ज़ल
कैसी ख़ौफ की मंज़िल है
शह्र का शह्र ही क़ातिल है
लगता है इस दुनिया का
बम जैसा मुस्तक़बिल है
जीत तो जाता डर लेकिन
उसके सामने मुश्किल है
आंसू पोछ के दीवाली
ईद के दर्द में शामिल है
मेरी भी तफ़्शीश करो
मेरे पास भी इक दिल है
नाज़िम जी आंसू पोछो
रोने से क्या हासिल है
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
ये तो बड़े ही सैभाग्य की बात है की नाजिम नकवी जी हिन्दी युग्म से जुड़ रहे हैं अब उनकी ग़ज़लें पढने को मिला करेंगी
रचना
डा. रमा द्विवेदीsaid...
नाज़िम नकवी साहब का हिन्द युग्म में स्वागत है । हम सबके लिए गौरव की बात है कि आप जैसे अनुभवी लोग हिन्द-युग्म से जुड़े हैं....पुन: अभिनंदन स्वीकारें।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल ... नकवी साहब का स्वागत
मेरे मोबाइल में आपका नाम नाजि़म नक़वी के नाम से फीड है मुझे नहीं पता था कि आप नजीम लिखते हैं । आपसे कई बार पहले बात हुई है जब मैंने अपके चैनल के लिये सीहोर से कुछ क्राइम और भूतों की स्टोरियां करवाईं थीं । मुझे नहीं मालूम था कि क्राइम विभाग का हेड इतना अच्छा ग़ज़लकार भी है ।
नज़ीम जी का हिन्द-युग्म पर स्वागत है। युग्म पर अब तो गज़लों की महफिल लगा करेगी।
"लगता है इस दुनिया का
बम जैसा मुस्तक़बिल है"
"मेरी भी तफ़्शीश करो
मेरे पास भी इक दिल है"
वाह....नाज़िम जी का स्वागत..आपके आने से हिन्दी के लिए चल रहे हमारे प्रयासों को रफ़्तार मिलेगी, ऐसी उम्मीद है.....मतलब हमारा मुस्तकबिल सुनहरा है......
आमीन.....
पंकज जी,
अतिथि कवि का नाम आपने मोबाइल में सही सेव कर रखा है, यहीं ग़लत टाइप हुआ है...नियंत्रक ध्यान दें...
आपका स्वागत है,इतनी सुंदर गजल ने आपके आगमन को और भी बेहतरीन बना दिया.
आलोक सिंह "साहिल"
is bahar me ghazal likhna kaafi mushkil hai. ye umda shayar hone ki khasiyat ko darshaata hai.
आप सबकी मेल देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। हिन्द युग्म जिस शिद्दत के साथ प्रयास कर रहा है और ये सब दोस्त (पंकज सुबीर जैसे) जो इकट्ठा हो रहे हैं ये सब एक ख़ानदान की शक्ल ले रहे हैं। निदा के एक शेर का सहारा ले रहा हूं---
सजाएं इसे आओ कुछ इस तरह
ये दुनिया हमारी तुम्हारी लगे।।
आप सबका एक साथी
नाज़िम नक़वी
आपका स्वागत है नकवी जी
आपकी गजल बहुत अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
बहुत अच्छी ग़ज़ल .बधाई .
लेकिन अगर कुछ शब्दों जैसे ''मुस्तकबिल ''और ''तफ्शीश ''
के अर्थ भी बता देते तो ज्यादा लोगों को समझ में आती .
मै माफी चाहूँगा टोकने के लिए .मगर व्यापक हित में कह रहा हूँ.
स्वागत!!
दिवाली को ईद के दर्द में शामिल कराके अच्छा लिखा हैं.
सही में हिन्दयुग्म में आपको पढ्ना और भी अच्छा लगेगा.
मैंने आपको "अंकल जैसे लोग थे वो" पढते सुना था. ऐसे ही शेर से हमे सरोबार करते रहे.
नमस्कार आपको
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