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Monday, March 16, 2009

शान्ति का रंग लाल होता है


वे, जो ढूँढ़ते हैं,
शब्दों में अन्न की खुशबू
वे, जो ढूँढ़ते हैं
इश्क में दरिया की रवानी
वे, जो अमन-चैन के गाते हैं गीत
उनसे पूछो
शब्द और अर्थ के अलगाव में
प्रतीकों के जिगर से टपकते लहू
कितनी लोरियों के दीपक बुझा चुके हैं
जंग से उगती है
बारूदों की फसल
नफ़रत की आंधी
काली पोशाकों में
दुबक जाती है डर कर
एक परचम लहराता है हवा में
खुबसूरत-सा कोई नारा उछलता है
कब्रों के पास से उठता है कोलाहल
मुक्ति का गीत
केवल वहम

आदमी जानता है
दुनिया के रंग ढंग
आदमी जानता है
कि शान्ति का रंग लाल होता है
उसके लिए आदमी ही हलाल होता है

मैंने देखा है
कालिख छिपाने के लिए
की जाती है सफेदी
मगर सियाही मिटती नहीं
धीरे-धीरे चाट जाती है
सफेदी को

संततियाँ ढूँढ़ ही लेती हैं
विकृतियाँ, साजिशें, चालबाजियां
खुरचती हैं सियाह परतें
जहां लिखा होता है - साम्राज्यवाद

हम जबकि ढूँढ़ते हैं
शब्दों में प्यार
नींदों में ख्वाब
ख़्वाबों में शान्ति
हमें मिलती है निर्जनता
निर्जनता में खामोश बर्बरता
और बर्बरता में पलता है खौफ
खौफ एक घायल चुप्पी है
चुप्पी शान्ति नहीं होती
शान्ति जंग का पुरश्चरण होती है

यूनिकवि-चन्द्रदेव यादव




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6 कविताप्रेमियों का कहना है :

Prakash Badal का कहना है कि -

क्या खूबसूरत कविता कही है यादव जी, हर पंक्ति में रवानी है आहा!

Divya Narmada का कहना है कि -

अच्छी भावपूर्ण कविता.

Himanshu Pandey का कहना है कि -

"खौफ एक घायल चुप्पी है
चुप्पी शान्ति नहीं होती
शान्ति जंग का पुरश्चरण होती है"

कविता की प्रभावोत्पादकता सराहनीय है ।

Unknown का कहना है कि -

हम जबकि ढूँढ़ते हैं
शब्दों में प्यार
नींदों में ख्वाब
ख़्वाबों में शान्ति
हमें मिलती है निर्जनता
निर्जनता में खामोश बर्बरता
और बर्बरता में पलता है खौफ
खौफ एक घायल चुप्पी है
चुप्पी शान्ति नहीं होती
शान्ति जंग का पुरश्चरण होती है

कविता अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज

neelam का कहना है कि -

खौफ एक घायल चुप्पी है
चुप्पी शान्ति नहीं होती
शान्ति जंग का पुरश्चरण होती है

अतुलनीय शब्द चयन ,अच्छा प्रभाव छोड़ती कविता

manu का कहना है कि -

सुंदर रचना चन्द्र देव जा,,,,,,

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