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Monday, September 03, 2007

आठवीं प्रतियोगिता के परिणाम


अथर्ववेद का कथन है-

रुहो रुरोह रोहितः (अथर्ववेद १३।३।२६)

अर्थात् उन्नति उसकी होती है, जो प्रयत्नशील है। और यह पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि हिन्द-युग्म टीम प्रयत्नशील है एवम् इसकी उन्नति सुनिश्चित है। उन्नति के प्रारम्भिक लक्षण दिखने भी लगे हैं। पिछले ८ महीनों से हम 'हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' का आयोजन कर रहे हैं। पहली बार हमारी प्रतियोगिता में ६ यूनिकर्मियों ने भाग लिया था। आज हम जिस अगस्त अंक का परिणाम लेकर प्रस्तुत हैं, उसमें कुल ३६ कवियों ने भाग लिया।

जनवरी माह में दैनिक पाठकों की संख्या ५० के आसपास थी, अगस्त माह में वो भी ८०० से ऊपर चली गई। ये सब पाठकों के प्रोत्साहन और हमारी टीम की मेहनत के प्रतिफल हैं।

यह स्वभाविक भी है, जब प्रतिभागी बढ़ेंगे, जजों को भी अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। अब तक प्रथम चरण के जजों को सभी कविताएँ सौंपी जाती थी, लेकिन इस बार चूँकि कविताएँ अधिक की संख्या में थीं, इसलिए बेहतर निर्णय के लिए प्रथम चरण के निर्णय को दो उपचरणों में विभाजित किया गया। एक उपचरण में दो जज रखे गये जिन्हें १८-१८ कविताएँ सौंपी गईं। सभी के अंकों का सामान्यीकरण करके श्रेष्ठ २२ कविताएँ चुनी गईं, जिन्हें द्वितीय चरण के जज को भेजा गया।

यहाँ हम यह बताते चलें कि क्रमिक दो-तीन कविताओं के प्राप्ताकों में इतना कम अंतर होता है (अमूमन दशमलव के दूसरे या तीसरे स्थान का अंतर) कि हमें हमेशा श्रेष्ठ १०, १२ या १५ चुनने में बहुत तकलीफ़ होती है। लेकिन तुरंत इस बात की खुशी होती है कि अधिकांश प्रतिभागी इसे भी सकारात्मक लेते हैं और बारम्बार प्रयास करते हैं।

प्रायः हम दूसरे चरण के निर्णय के बाद १० कविताओं को चुनते हैं, लेकिन १० से १३ वें स्थान तक की कविताओं के प्राप्तांक में इतना कम अंतर था कि टॉप ‍१३ कविताएँ लेनी पड़ीं। यही हाल तीसरे चरण का हुआ। हम अंतिम जज को ६ कविताएँ भेजना चाहते थे, लेकिन कविताओं में इतनी सशक्त प्रतिस्पर्धा थी कि आठ भेजनी पड़ी।

अंतिम चरण का निर्णय बहुत ही कठिन रहा। आज हम शुरूआत की जिन ४ कविताएँ प्रकाशित करने जा रहे हैं, उनको कोई क्रम नहीं दिया जा सकता। लेकिन चूँकि यूनिकविता चुननी थी। आखिरकार अंतिम निर्णयकर्ता ने 'कन्या भ्रूण हत्या' को यूनिकविता चुना। बहुत खुशी की बात है कि हमसे नित नये कवि जुड़ रहे हैं। इस बार के यूनिकवि राहुल पाठक का चेहरा हम सबके लिए नया है। मिलते/मिलवाते हैं इनसे-

यूनिकवि- राहुल पाठक

परिचय-
इनका जन्म छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में अगस्त 1982 को हुआ जहाँ पर इनकी प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा हुई। कवि के माता- पिता दोनों ही अध्यापक हैं। इनकी मौसी जी राज्यपाल द्वारा सर्वश्रेष्ठ अध्यापक के पुरस्कार से जब सम्मानित हुईं तब इन पर बहुत प्रभाव पड़ा। चूँकि कवि की मौसी जी ही इनके विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका थी अतः हिंदी विषय में इनकी रुचि प्रारंभ से ही रही। हिंदी के अनेक महान कवियों की रचनाएँ इन्हें बचपन में ही कंठस्थ हो गयी थीं। राष्ट्र कवि श्री मैथिली शरण गुप्त जी का इनपर बहुत प्रभाव रहा है। विद्यालयकालीन शिक्षा के बाद इन्होंने इंदौर की आई. पी. एस. एकेडेमी में M.C.A. { MASTAR OF COMPUTER APPLICATION} में प्रवेश लिया और अभी अंतिम वर्ष के छात्र हैं। अध्ययन समाप्त होने के पूर्व ही कैप जैमिनी नामक कंपनी में इनका चयन हो चुका है। अध्ययन में व्यस्तता के चलते साहित्य-संसार से संपर्क बिल्कुल टूट गया था। जब यह हिन्द-युग्म के यूनिकवि विपुल शुक्ला के संपर्क में आए तब साहित्य में रुचि उत्पन्न हुई और नयी प्रेरणा से लेखन कार्य शुरू हो गया।

पुरस्कृत कविता- कन्या भ्रूण हत्या

ठीक कुछ छः माह की
नव मैं इस धरा पर
आने को तत्पर
पर हाय दुर्भाग्य!
मै अबला, बला
परिवार के सदस्यों को
मेरे रिश्तेदारों को
ख़ुद पिता को
दादा-दादी को
नापसंद
मेरा तयशुदा अंत
कुविचार-विमर्श और डील
जल्लाद तैयार क्रुवर डील

रोती माँ क्षमादन माँगती मेरा
बेबस लाचार
दीन मुक़र्रर
अर्थी तैयार
मैं और माँ उस पार
चाकुओं-औज़ारो का मेला
हमारा कुछ पल का साथ अकेला
आती चिमटी पेरों पार मेरे
सहमती, जीवनदान
माँगती अकेली मैं
चीत्कार इस बार
भीषण दर्द पैर उस पार
बिलखती मैं
गर्भगृह का अंधकार
अंतरनाद
पुनः जकड़
पकड़-पकड़
अंग-अंग
भंग-भंग
मेरे आँसुओं से भीगता माँ का पेट
खींचता मेरा शरीर
टूटता नाभि का जुड़ाव
माँ और मेरा
अंतिम छुवन
उसकी घुटन

अब अंत एक द्वार
धरा के पार
माँ को प्रणाम
पिता को प्रणाम
जिन्होने छः माह का जीवन दिया
माँ केवल आपकी
प्यारी बिटिया
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९॰५, ७॰६६४७
औसत अंक- ८॰५८२३
स्थान- छठवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ८॰५८२३(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰५४११
स्थान- ग्यारहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-कविता ठीक बन पड़ी है व तादात्म्य स्थापित करने में सफल भी। यदि टंकित करने के बाद एक बार देख लिया जाता तो कई परिवर्तन हो सकते। आगे और अभ्यास से बेहतर रचना की अपेक्षा की जा सकती है।
अंक- ५॰५
स्थान- तीसरा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता सम-सामयिक तो है ही। प्रवाह कविता के प्राण हो गये हैं। कविता का आरंभ नितांत साधारण है किंतु कवि ने शब्दों को ऐसा चुना है कि पाठक जुड़ता जाता है। और दूसरा अंतरा प्रवाह और भाव दोनों में डुबोने की क्षमता रखता है। संवेदना और शिल्प दोनों ने मिल कर कविता को उँचाई प्रदान की है विषेशकर कविता का अंतिम पैरा:

अब अंत एक द्वार
धरा के पार
माँ को प्राणाम
पिता को प्रणाम
जिन्होंने छ: माह का जीवन दिया
माँ केवल आपकी
प्यारी बिटिया

स्तब्ध करने वाली पंक्तियाँ है। समाज की नपुंसकता को उकेरती हैं। बिम्ब, भाव, प्रवाह और समसामयिकता.....बहुत बधाई कविवर।

कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८॰५/10
कुल योग: १६॰५/२०
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पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने सितम्बर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम और।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिकवि राहुल पाठक तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।
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पिछले दो महीनों से स्मिता तिवारी की व्यस्तता के कारण हम यूनिकविता के साथ उनकी पेंटिंग प्रकाशित नहीं कर पा रहे थे, मगर इस बार यह बताते हुए हम बहुत खुश हैं कि इस बार एक नहीं, वरन दो-दो पेंटर की पेंटिंगें इस कविता के साथ प्रकाशित कर रहे हैं।

पहली पेंटिंग है, इस बार के काव्य-पल्लवन की कुछ कविताओं पर कैनवास खींच चुके अजय कुमार की।

और दूसरी है हमारे-आपके लिए बिलकुल नये पेंटर सिद्धार्थ सारथी की पेंटिंग। यह पेंटिंग भी सभी पाठकों को समर्पित।

इस बार पाठकों में बहुत घमासान रहा। रचना सागर, विपिन चौहान 'मन', रविकांत पाण्डेय और शोभा महेन्द्रू हमारे ऐसे पाठक रहे हैं, जिनकी टिप्पणियों की संख्या के आधार पर वर्गीकृत नहीं किया जा सकता क्योंकि उस मामले में कोई किसी से कम नहीं है।

मगर शोभा महेन्द्रू ने जिस आवृत्ति और ऊर्जा से हमें पढ़ा है, वो शायद अतुलनीय है। ऊर्जा और उत्साह की जो आहुति इस यज्ञ प्रयास में ये सभी पाठक डाल रहे हैं, निश्चित रूप से उसकी तुलना पुरस्कारों से नहीं की जा सकती। बस हम नमन कर सकते हैं। इन चारों के मध्य वर्गीकरण का हमारा कोई भी आधार कमज़ोर होगा। इसलिए यूनिकवि की तरह यूनिपाठक चुन रहे हैं।

यूनिपाठिका- शोभा महेन्द्रू

परिचय-
इनका जन्म उत्तरांखण्ड की राजधानी देहरादून में १४ मार्च सन् १९५८ में हुआ। हिन्दी साहित्य में प्रारम्भ से ही रुचि रही। विद्यार्थी काल में ही शरद, प्रेमचन्द, गुरूदत्त, भगवती शरण, शिवानी आदि को पढ़ा। लेखन में भी बहुत रुचि प्रारम्भ से ही रही। हमेशा अपने जीवन के अनुभवों को डायरी में लिखा। कभी आक्रोश, कभी आह्लाद, कभी निराशा लेखन में अभिव्यक्त होती रही किन्तु जो भी लिखा स्वान्तः सुखाय ही लिखा। लेखन के अतिरिक्त भाषण, नाटक और संगीत में इनकी विशेष रुचि है। इन्होंने गढ़वाल विश्व विद्यालय से हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर परीक्षा पास की है। वर्तमान में फरीदाबाद शहर के 'मार्डन स्कूल' में हिन्दी की विभागाध्यक्ष हैं। हिन्दी के प्रति सबका प्रेम बढ़े और हिन्दी भाषा बोलने और सीखने में सब गर्व का अनुभव करें, यही इनका प्रयास है।
चिट्ठा- अनुभव
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पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिपाठिक शोभा महेन्द्रू तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगी।
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दूसरे स्थान पर हमने रखा है हमारे सक्रियतम पाठक रविकांत मिश्र को। तीसरे स्थान पर हैं विपिन चौहान 'मन' और चौथे स्थान पर काबिज़ हैं रचना सागर। तीनों को कवि कुलवंत सिंह की काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति। विपिन चौहान 'मन' को एक बार और 'निकुंज' भेजी गई थी, लेकिन उनकी शिकायत है कि अभी तक यह पुस्तक उन्हें नहीं मिली। अब तो दुबारा भेजी जा रही है, पक्का मिलेगी। यद्यपि उद्‌घोषणा के अनुसार रविकांत पाण्डेय को डॉ॰ कुमार विश्वास की काव्य-पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' मिलनी चाहिए, लेकिन वो भी हम रचना सागर को भेंट कर रहे हैं क्योंकि हम किताबों को अधिकतम हाथों में सौंपना चाहते हैं न कि अधिकतम किताबों को एक हाथ में। यह पुस्तक विपिन चौहान 'मन' को पिछले माह भेज दी गई थी। इसलिए रचना जी इसकी हकदार हैं।

इसके अतिरिक्त हमारे स्थाई पाठक, सहयोगी, मार्गदर्शक तपन शर्मा, गीता पंडित, पीयूष पण्डया, घुघुती बासूती, कमलेश, राकेश, संजीत त्रिपाठी आदि ने खूब पढ़ा। हम उम्मीद करते हैं कि हमें और नये पाठक मिलेंगे और वर्तमान पाठक भी अपनी श्रद्धा बनाये रखेंगे।

फ़िर से कविताओं का रूख़ करते हैं। कहने के लिए दूसरे स्थान की कविता (वैसे सभी प्रथम हैं) का शीर्षक भी 'कविता' ही है। इसके रचनाकार हैं रविकांत पाण्डेय। इनकी कविता 'मिट गया हूँ मैं' ने पिछली बार भी टॉप १० में ज़गह बनाई थी। इस बार भी इनका टॉप में बने रहना इनकी रचनात्मक शक्ति का प्रमाण प्रस्तुत करता है।

कविता- कविता

कवयिता- रविकांत पाण्डेय, कानपुर


मेरी कविता.....
पढ़ना मत, चूक जाओगे
बन सके यदि
जीओ इसे, जान जाओगे.......
कि
कविता को जन्म देने के लिए
गुजरना पड़ता है कवि को
प्रसव-पीड़ा से....
कि
कविता ज्यों-ज्यों बड़ी होती है
देना पड़ता है-
वस्त्र-तन ढँकने को,
अन्न-भूख मिटाने को........
कि
कविता जब जवान होती है
शृंगार माँगती है......
कि
कविता झेलती है-
कभी गरीबी का दंश भी
जहाँ शौक दम तोड़ देते हैं
कभी पलती है राजसी ठाट में
जहाँ अभावों के बादल नही होते........
कि
कभी पड़ती है
छाया अकाल मृत्यु की
और कभी लाँघ जाती है कविता
इस देहरी को
और बन जाती है
समयातीत।
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰१९३७५, ८॰८२१४२
औसत अंक- ८॰५०७५८९
स्थान- आठवीं
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ८॰५०७५८९(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰७५३७९४
स्थान- सातवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-अलग विषय पर लिखी इस कविता में प्रौढ़ता की सम्भावनाएँ निहित हैं। रचनाशीलता की गुत्त्थियाँ खोलने का प्रयास करती रचना में गद्य व स्फीति अतिरिक्त आ गए हैं।
अंक- ५॰२
स्थान- चौथा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता क्या है? क्यों है? कैसी है...कवि का मंथन गहरा है। विचारों की परिपक्वता के साथ कवि के विषय किस तरह बदलते हैं, सुन्दरता से प्रस्तुत हुआ है।

कला पक्ष: ८/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १६/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें। कुमार विश्वास की ओर से 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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हमारे सदस्यों की चिंता थी कि हमें जम्मु शहर से बहुत कम पाठक मिलते हैं, लेकिन इस बार के तीसरे स्थान के कवि विनय मघु ने यह सिद्ध किया कि अब हम वहाँ भी पहुँच रहे हैं। और सिर्फ पहुँचे ही नहीं बल्कि स्तरीय कवि को जोड़ भी पा रहे हैं। मघु जी की कविता 'नन्ही छाती' इस परिणाम की तीसरी कविता है।

कविता- नन्ही छाती

कवयिता- विनय मघु, जम्मु


नन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है।

वह
छाती जिस में
दिखता नहीं कोई उभार
और
जिसमें बहती नहीं
कभी दूघ की नदियाँ
जिसकी मांग बरसों
से कर रही हैं,
एक
चुटकी भर सिंदुर का
इंतजार
ताकि,
वह भी
औरों की तरह
माथे पर सजा सके बिंदिया
बनाने वाले ने जिसे
छोड़ दिया दुनिया
में
निवस्त्र
अपने नंगे
जिस्म को
लालची भेड़ियों
की नज़रों से
बचाने के लिए
ओढ़ लेती हैं
जो एक
चादर
जो
आग से तापती हैं

वो
ओरों को
क्या दु:ख देगी,
जो अपने
जख्मों पर मरहम
छुपते-छुपते मलती हैं

नन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है

दोपहर
जो
रामायण सी पवित्र
है।
फूलों की पंखुड़ियों की तरह
कोमल
तथा
हिमालय की बर्फ सी
दिल से
साफ है
उस जैसी
और
कौन
अभागन होगी,
जो अपनी ही
आग
में आहिस्ता-आहिस्ता
पिघलती है,

नन्ही छाती
दोपहर की
एक पल में
सैकड़ों बार जलती है।

जो
बरसों
से
बैठी हैं राधा की तरह
पत्थरों के पनघट पर
और
नयनों से जिसके
आंसुओं की धारा बह रही हैं
जो चुप है होंठों से
मगर
दिल से
भाम-भाम
पुकार रही हैं
हा!
वह दोपहर
ही तो है
जो एक एक बूंद को तड़पती है,
जो हर पल आग में जलती है,
बादलों के दर-दर भटकती है,
और
अक्सर अभागन
लौट आती है
खाली हाथ
बिना कुछ पाये,
निराशा के सिवाये।
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰५, ८॰६३६३६३
औसत अंक- ८॰५६८१८१
स्थान- सातवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ८॰५६८१८१(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰९४५
स्थान- बारहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
प्रतीक का निर्वाह आद्यंत हुआ है। अर्थ की अन्विति,बिम्ब व प्रतीक व्यवस्था अच्छी बन पडी है। कविता का मुहावरा व लयात्मकता भी भली लगती है। कवि में सम्भावनाएँ हैं । वर्तनी ठीक करने पर भी ध्यान देना होगा।
अंक- ६
स्थान- प्रथम
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
इस कविता के भीतर की संवेदना झकझोर देती है। चित्रण और दोपहर के साथ कवि ने जो संकल्पना जोड़ी है कि पढ़ते हुए वह जलन पाठक के भीतर भी महसूस होने लगती है। सहजता कवि ने अपनायी है और कविता को कहीं भी कमजोर नहीं पड़ने दिया है। कविता में पंक्तियों को तोड़ते हुए कई स्थानों पर कवि असावधान हुआ है किंतु उसके शब्द संवेदना उकेरने में कहीं भी असफल नहीं हुए।

कला पक्ष: ७॰५/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १५॰५/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।
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पिछली बार टॉप १० में न पहुँच पाये विजय दवे ने पुनः प्रयास किया और यह सिद्ध कर दिया कि उनकी आवाज़ को कोई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। उनकी 'तुम कब आओगी' शृंखला की तीन कविताएँ ४वें स्थान पर रही।

कविता- तीन कविताएँ ( तुम कब आओगी ?)

कवयिता- विजय दवे, भावनगर (गुजरात)


१) तुम कब आओगी ?

मेरी आंखों में उमड़ते हुए समंदर की हर एक बूँद में
तेरी तस्वीर बंद है .
तेरी हर एक तस्वीर को मैं झांका करता हूँ
चोरी-चोरी, चुपके-चुपके .
मेरे होठों पर कई दिनों से
तितली बैठने नहीं आयी .
मेरी आंखों में कई दिनों से
एक कटी-पतंग उड़ रही है .

मेरे कानों में निरव स्वर ने
झंकार देना छोड़ दिया है .
मेरी अंगुलियों ने स्पर्श संवेदना
गंवा दी है .

मैं एक बुत-सा बन गया हूँ
मुझे पारसमणि की तलाश है .
तुम कब आओगी ?

(२) तुम कब आओगी ?

रात के अंधेरों ने
मुझे बिस्तर पर तड़पते हुए देखा है .
कभी-कभार खुली आंखें
सपना देख रही होती है .
बगल में रहे पेड़ के पत्तों की खड़खड़ाहट
झांका करती है ,
मेरे बिस्तर पर , जो मेरे जिस्म से
भरा पड़ा होता है .

चुपके-चुपके याद दस्तक दे जाती है
मेरे उद्विग्न मन के पट पर
और
उस रात मैं ज़िंदा जलाया जाता हूँ
- उन यादों के हाथों , जो तेरे जाने के बाद आती हैं
मेरे कानों में तेरे अट्टहास की आवाज़
गुंजने लगती है .
उस दिन मेरा बिस्तर मुझे
मेरी आंखों के नीचे गीला हुआ मिलता है
फिर मैं अपने आपको पूछ बैठता हूँ

तुम कब आओगी ?

(३) तुम आओगी या नहीं ?

अध खुली आंखों में इंतज़ार ने
अभी-अभी टपकना शुरू किया है .
टेबुल पर पड़ी किताब के पन्ने
छत पर लटके पंखे से उलटते रहते है .
तुम आओगी या नहीं
यह मुझे नहीं पता
मगर
हर रोज़ तुम्हारी याद सपनों में आकर
मुझे जागने को विवश कर देती है .
कभी उत्तर मिलेगा या नहीं
कि
तुम आओगी या नहीं ?
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९॰५, ९॰५
औसत अंक- ९॰५
स्थान- प्रथम
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-९, ९॰५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ९॰२५
स्थान- दूसरा
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
प्रतीक्षा व वियोग को व्यक्त करती इन पंक्तियों की सम्वेदना प्रभावशाली है।कवि के पास स्थितिविशेष को सहजता से रूपायित करने की सूझ है। अतिरिक्त गद्यात्मकता से बचा जा सकता था । वर्तनी की चूकें सुधार ली जानी चाहिएँ।
अंक- ५॰७
स्थान- दूसरा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
'तुम कब आओगी?' के तीनों भाग बहुत सुन्दर बन पड़े हैं। कवि के बिम्बों को पढ़ते हुए अनेक स्थानों पर गुलजार के बिम्बों सा अनूठापन दिखा। संपूर्णता में बेहद उत्कृष्ट रचनायें।

कला पक्ष: ७/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १५/२०
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।
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अब हम बात करते हैं टॉप १० रचनाकारों में से अन्य ६ की (जिनमें से कई नये हैं), जिनको कवयित्री डॉ॰ कविता वाचक्नवी की काव्य-पुस्तक 'मैं चल तो दूँ' की स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जायेगी।

अनिता कुमार
विपिन चौहान 'मन'
पंकज रामेन्दू मानव
आनंद गुप्ता
सुनीता यादव
संतोष कुमार सिंह

इसके अतिरिक्त २६ कवि और हैं जिनका हम धन्यवाद करते हुए यह निवेदन करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लें और पुनः प्रयास करें।

अजय कुमार आईएएस
आशिष दूबे
सुनील कुमार सिंह (तेरा दीवाना)
संजय लोधी
डॉ॰ शैलेन्द्र कुमार सक्सेना
पीयूष दीप राजन
पीयूष पण्डया
दिव्य प्रकाश दूबे
श्रीकांत मिश्र 'कांत'
कवि कुलवंत सिंह
मनोहर लाल
पागालोकी बरात
हरिहर झा
अनुभव गुप्ता
जन्मेजय कुमार
शोभा महेन्द्रू
हिमांशु दूबे
ममता किशोर
आशुतोष मासूम
उत्कर्ष सचदेव
दीपक गोगिया
हेमज्योत्सना पराशर
तपन शर्मा
प्रदीप गावन्डे
प्रवीण परिहार
रिंकु गुप्ता

निवेदन- सभी प्रतिभागी कवियों से निवेदन है कि वो कृपया अपनी रचनाओं को ३० सितम्बर २००७ तक कहीं प्रकाशित न करें/करवायें, क्योंकि हम अधिक से अधिक कविताओं को युग्म पर प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे।

अंत में सभी प्रतिभागियों का हार्दिक धन्यवाद करते हुए हम यह निवेदन करते हैं कि इसी प्रकार हमारे आयोजनों का हिस्सा बनकर हमारा उत्साह बढ़ाते रहें।

सितम्बर माह की प्रतियोगिता के आयोजन की उद्‌घोषणा यहाँ की जा चुकी है।

धन्यवाद।

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28 कविताप्रेमियों का कहना है :

शोभा का कहना है कि -

प्रिय राहुल
तुमने बहुत ही सामयिक विषय लिया है । प्रारम्भ थोड़ा कम रोचक लगा लेकिन अन्त
आते-आते तो तुमने कमाल ही कर दिया । इस विषय को इतना सुन्दर चित्रित किया
जा सकता है मैने सोचा भी नहीं ।
इतनी कम उम्र में इतनी संवेदना और जागरूकता प्रशंसनीय है । शैली बहुत ही प्रभावशाली
है । रोती माँ क्षमादन माँगती मेरा
बेबस लाचार
दीन मुक़र्रर
अर्थी तैयार
मैं और माँ उस पार
चाकुओं-औज़ारो का मेला
हमारा कुछ पल का साथ अकेला
आती चिमटी पेरों पार मेरे
सहमती, जीवनदान
माँगती अकेली मैं
चीत्कार इस बार
भीषण दर्द पैर उस पार
बिलखती मैं
गर्भगृह का अंधकार
इन पंक्तियों ने तो सचमुच रोंगटे ही खड़े कर दिए । बहु- बहुत बधाई एवं आशीर्वाद ।

शोभा का कहना है कि -

रवि जी
आपकी कविता तो बुत ही यथार्थ है । सच में कवि जब कुछ भी लिखता है तो उसे
उसी वेदना से गुज़रना पड़ता है । इस पीड़ा की तुलना आपने प्रसव की पीड़ा से की -
अति सुन्दर । समयातीत कविता ही साहित्य का श्रृंगार होती है । इतनी सुन्दर
अभिव्यक्ति के लिए बहुत-बहुत बधाई ।
विनय जी
आपने प्रगति वादी कविता लिखी है- नन्ही छाती-- बहुत ही सुन्दर बिम्ब दिए हैं ।
कविता अभाव सहती बालिका का बहुत यथार्थ वर्णन करती है । आपकी दृष्टि
सच में ही काफी सूक्ष्म दर्शी है । पाठकों को इतनी सही तसवीर दिखाने के लिए
बधाई ।
विजय जी
आपने सबसे अलग प्रेम रस में लबालब कविता लिखी है । वियोग श्रृंगार का बहुत ही
सुन्दर प्रयोग । एक प्रेमी के दर्द का बहुत ही मार्मिक चित्र खींचा है । कविता ने दिल को
छुआ है । बधाई

अभिषेक सागर का कहना है कि -

हिन्द युग्म पर प्रतियोगिता में प्रकाशित होने वाली रचनाओं को पढ कर लगता है कि हिन्दी कविता का भविष्य उज्ज्वल है
मैं इस माह के दोनो विजेता राहुल पाठक और शोभा महेन्द्रु जी को हार्दिक बधाई देती हूँ

-रचना सागर

गरिमा का कहना है कि -

वाह! इस बार तो बहूत जानदार प्रतियोगिता हूई है। विजेताओं को मेरी तरफ से ढ़ेर सारी बधाई।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत बहुत बधाई ...बहुत ही सुंदर लगी हर रचना
शोभा जी आपका उत्साह हम सब के होंसले
बढ़ा देता है ..मुझे तो अपनी हर रचना पर आपकी
तिपनी का इंतज़ार रहता है ...चित्र भी बहुत ही आकर्षक लगे
स्मिता जी और अजय जी शुक्रिया

रंजू भाटिया का कहना है कि -

माफ़ करे सिद्धार्थ सारथी जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया>)

Anonymous का कहना है कि -

सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई।
राहुल जी और शोभा जी को बहुत मुबारकबाद| प्रतियोगिता के लिये यह बहुत अच्छी बात है कि हर बार नये प्रतियोगी यूनिकवि बन रहे हैं।

विपुल का कहना है कि -

राहुल जी बधाई !
मज़ा आ गया परिणाम देखकर | निश्चित ही आपके भीतर एक सक्षम कवि छुपा है और आप हैं की उसे लगातार हतोत्साहित करते जा रहे थे आशा है की अब ऐसा नही होगा और आपका लेखन अनवरत जारी रहेगा |
पुरस्कृत कविता के बारे में काफ़ी बातें की जा चुकी हैं| ह्रदय को झकझोर देने वाली रचना |
भाव-प्रवण रचना के लिए एक बार फिर से आपको बधाई !
रवि जी विनय जी और विजय जी आपकी कविता किसी भी दृष्टि से कमतर नहीं पर विजयी तों एक को ही होना है और शोभा जी आपके बारे में क्या कहूँ सच में आप जिस ऊर्जा से युग्म को समय देतीं हैं वो काबिल ए तारीफ़ है आप जैसे पाठकों से ही युग्म की सफलता है |
सारे प्रतियोगियों और पाठकों का बहुत बहुत धन्यवाद.....

RAVI KANT का कहना है कि -

राहुल जी एवं शोभा जी,
हार्दिक शुभकामनाएँ वैसे बधाई के पात्र तो सभी प्रतिभागी एवं हिन्द-युग्म भी है। इतनी उम्दा रचनाएँ देखकर तो मुझे खयाल आता है कि अगर समय-समय पर प्रकाशित हिन्द-युग्म की कुछ चुनिंदा रचनाओं का एक संकलन प्रकाशित होता तो अच्छा रहता।

अब अंत एक द्वार
धरा के पार
माँ को प्रणाम
पिता को प्रणाम
जिन्होने छः माह का जीवन दिया
माँ केवल आपकी
प्यारी बिटिया

राहुल जी ये पंक्तियाँ अत्यंत मार्मिक बन पड़ी हैं।

विनय जी, आपने प्रभाव्शाली ढंग से एक कठोर यथार्थ का चित्रण किया है। बधाई स्वीकारें।

विजय जी, प्रेम की पीर सहज परिलक्षित होति है आपकी रचना मे। ’तुम कब आओगी?’ से”तुम आओगी या नहीं?’ तक की यात्रा जीवंत बन पड़ी है।

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

Rahul ji...

bhogon ko tyajya samajhkar us se bhagna mukti nahi he..jeevan satya ka adbhut dhangse vyaktikaran aapne es kavita ke madhyamse kiya...bdhaeyan...:)

Anita kumar का कहना है कि -

राहुल जी
यूनिकवी बनने पर बधाइ…। आप की कविता न सिर्फ़ बहुत ही सामयिक विषय को छूती है बल्कि बहुत ही मामर्मिक भी है। बहुत बधाइ

Anita kumar का कहना है कि -

रविकान्त जी , आपकी कविता सचमुच एकदम हट कर है। बहुत ही बडिया विषय चुना आपने, और कविता भी बहुत सुन्दर बनी है…बधाइ

Anita kumar का कहना है कि -

विनय जी बधाइ…। आपने प्रतीकों का बेजोड इस्तेमाल किया है, एकदम नये रूप में

Anita kumar का कहना है कि -

विजय जी
बहुत ही शानदार कविता लिखी है आपने, सीधे दिल के द्वार पर द्स्तक देती
उस रात मैं ज़िंदा जलाया जाता हूँ
- उन यादों के हाथों , जो तेरे जाने के बाद आती हैं
मेरे कानों में तेरे अट्टहास की आवाज़
गुंजने लगती है .
उस दिन मेरा बिस्तर मुझे
मेरी आंखों के नीचे गीला हुआ मिलता है
फिर मैं अपने आपको पूछ बैठता हूँ

तुम कब आओगी ?

वाह, क्या खूब लिखा है…बधाइ

Sajeev का कहना है कि -

कल मैं काफ़ी उदास था पर आज प्रतियोगिता की इतनी सुंदर रचनावो को पढ़ कर युग्म के उज्जवल भविष्य की आशाएं मन में फ़िर जाग उठी है, निरंतर बढती प्रतियोगियों की संख्या भी प्रसन्नता का विषय है.
राहुल जी अक्सर कवितायेँ कवि के व्यक्तिगत भावनाओं के आप पास घूमती है पर कभी कभी कवि जब इस तरह के सामाजिक विषय चुनता है वह उपदेश की भाषा का इस्तेमाल करता है, मगर आप ने जो चित्र गडा है मैं उस का कायल हो गया हूँ कविता का अन्त सचमुच रुला देने वाला है -
माँ को प्रणाम
पिता को प्रणाम
जिन्होने छः माह का जीवन दिया
माँ केवल आपकी
प्यारी बिटिया

एक अमर रचना है ये, और भी सभी कवितायें बेहद अच्छी बन पड़ी है. विनय जी , विजय जी और रविकांत जी आप सब को बधाई और ढेरों शुभकामनायें , शोभा जी आपको मेरी तरफ़ से विशेष बधाई ,

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

सर्वप्रथम मैं पेंटर अजय कुमार व सिद्धार्थ सारथी का धन्यवाद करना चाहूँगा जिनकी उपस्थिति ने 'यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' को फ़िर से सजा-धजा दिया। दोनों की पेंटिंग बहुत खूबसूरत है, मैं उम्मीद करता हूँ कि युग्म की कविताएँ अब इनकी पेंटिंग से अलंकृत हुआ करेंगी।

विपुल जी से पता चला कि यूनिकवि राहुल पाठक ने लिखना एक तरह से त्याग दिया था, लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि हिन्द-युग्म का यह परिणाम उनमें नई ऊर्जा भरेगा और वो कालजयी कविताएँ लिखेंगे। उनकी वर्तमान कविता इस बात का प्रमाण भी है। वो वर्तनी की गलतियाँ बहुत करते हैं। इसपर ध्यान देना बहुत आवश्यक है।

शोभा महेन्द्रू का केवल गुणगान किया जा सकता है और कुछ नहीं। बाकी सभी पाठकों का मैं हृदय से स्वागत करता हूँ जो कि युग्म की कविताओं पर बेबाक टिप्पणियाँ करके यहाँ के स्थाई/अस्थाई लेखकों की रचनाओं का स्तर सुधार रहे हैं। जब तक आप जैसे पाठक होंगे, लेखक सतर्क रहेगा।

रविकांत जी की कविता 'कविता' पर अनूठी टिप्पणी करती है। ऐसा तो नहीं है कि झकझोरती है , लेकिन हाँ, 'कविता' को देखने की सम्पूर्ण दृष्टि देती है।

विनय मघु उम्मीद के सूरज हैं। अकविता को बहुत अच्छी तरह से इन्होंने पकड़ा है। कम से कम कविता में चमत्कार तो होना ही चाहिए। आपने जिन बिम्बों का प्रयोग किया है, वो सराहनीय है। आगे हम आपसे और बढ़िया कविता की उम्मीद करते हैं।

विजय जी की कविता जिस प्रकार वियोग शृंगार रस में डूबी है, वो भाव की अतिशयता का उदाहरण है। इस कवि में भी बहुत सम्भावनाएँ हैं।

सभी विजेताओं को बधाई और अन्य प्रतिभागियों को अगली बार के लिए शुभकामनाएँ।

pankaj ramendu का कहना है कि -

sabse pahle main sabhi vijetaon ko badhai dena chahta hun, aur pratibhagiyon ko yahi kahna chahta hun ki lagatar prayas karte rahen, kyonki koshish karne walon ki haar nahi hoti, aur me kisi ke kavita par comment dene ke liye abhi khud ko behtar nahi manta,meri nazar me judge ka nirnya sirodharya hai.

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

इस बार प्रस्तुत प्रत्येक कविता प्रथम स्थान का दावा रखती है। सभी विजेताओं को बधाई। शोभाजी को युनिपाठिका होने पर हार्दिक बधाई, अपेक्षा है कि वे एसे ही हिन्द युग्म का मार्गदर्शन करती रहेंगी।

*** राजीव रंजन प्रसाद

anuradha srivastav का कहना है कि -

राहुल बहुत ही ह्दय स्पर्शी रचना । एक-एक पंक्ति दिल को छू लेने वाली है । लगता है नश्तर के घाव मुझे कुरेद रहे हैं। एक नारी की विवशता और पीडा को इतनी गहराई से महसूस करने ऒर शब्द देने के लिये धन्यवाद ।
कवि ऒर प्रसव पीडा बहुत सही विवेचना करी है रविकान्त जी । वाकई रचनाकार उस पीडा से गुजरता है ।
विनय जी और विजय जी आपकी कविता भी प्रभावी और सुन्दर है ।
शोभा जी आपकि विवेचना और टिप्पणियाँ बहुत सटीक व सार्थक हैं उन्हें पढना अच्छा लगता है ।

aziz का कहना है कि -

राहुल,
आपको बहुत-बहुत बधाई...कविता समसामयिक भी है और लयबद्ध ही.....लेकिन कुछ शब्द मेरी समझ ही नहीं आये....हो सकता है कि ये शैलेश जीं के कहे अनुसार आपकी वर्तनी की अशुद्धियों की वजह से हो....इस पर ध्यान दें...यूनिकवि को शिक़ायत के लिए कोई जगह नहीं देनी चाहिए....
लेकिन भाई, कविता का अंत तो इतना प्रभावी है कि मन भींग जाता है....
बहरहाल, अजय जीं और सिद्धार्थ ने काफी बढ़िया चित्रांकन भी किया है....उनको भी बधाई....मैं तो कहूँगा कि उन्हें भी प्रोत्साहन के अलावा "कुछ" और भी देना चाहिए...
शोभा जीं के विषय में क्या कहना...उनकी टिप्पणियों को "मुझसे" बेहतर कौन समझ सकता है (शोभा जीं, इसका मर्म समझें}...हिंदी की संकल्पित शिक्षिका को मेरा प्रणाम

रविकांत को भी बधाई, मगर कवता के भाव मैं पूरी तरह से ढूँढ ना पाया .....विनय जीं, आपका शब्द-संयोजन भी बेहतरीन रहा......
हिंदी जिंदाबाद......

निखिल

Anonymous का कहना है कि -

Vinay ji
bahoot bahoot badhai apko bahut hi sunder kavita hai apki sab se alag.
sonaam.
From Delhi

Anonymous का कहना है कि -

राहुल जी,
कविता समसामायिक और संवेदनशील है मगर
मुझे "जल्लाद तैयार क्रुवर डील" का मतलब समझ में नहीं आया ।

राहुल पाठक का कहना है कि -

बहुत बहुत धन्यवाद आप सभी का इतने अनुभवी कवियों के समक्ष मेरी कविता को प्रशंशा मिली वह निश्चित ही मेरे लिए बड़ी बात है इससे मुझे नयी ऊर्जा मिलेगी लिखने की | अपनी टायपिंग संबंधी आशुद्धियो के लिए क्षमा चाहूँगा और हां वो शब्द "जल्लाद तैयार क्रुवर डील" नाहीएं था बल्कि ""जल्लाद तैयार क्रूर दिल" था जो डाक्टर के लिए लिखा गया था
अंत में फिर से बहुत बहुत धन्यवाद हिंद युग्म को

Rajesh का कहना है कि -

Shobhaji,
namaskar. UNIPATHIKA chuni jaane per aap ko hamari aur se hardik badhai.
Dear Vijay ji,
"Tum Kab Aaogi........ Tum Aogi ya nahi" bahot hi achhe se akelepan ki vedna ko aapne saakar kiya hai. aapko hardik shubh kamnayen. Actually I am a Gujarati from Vadodara and I saw your poem on this blog and I was delighted that some guju is also writing such good poem, in hindi, in particular, because most of the poems I have found here on this blog is from Hindi-bhashi poets. So I was really very happy to read your poem.

विश्व दीपक का कहना है कि -

सभी प्रतियोगियों को बधाई। विजेतागण को विशेष बधाई।

शुभकामनाओं के साथ-
विश्व दीपक 'तन्हा'

anand gupta का कहना है कि -

राहुल जी ..कविता का अंत आपने बड़े ही मार्मिक और प्रभावकारी ढ़ंग से किया है...पूरि कविता यथार्थ का बड़े सजीव ढ़ंग से चित्रण करती है.

anand gupta का कहना है कि -

रविकान्त जी क़ी प्रस्तुति उनकी कल्पनाशीलता कि परिचायक है...ये पंक्तियाँ बहुत असरदार हैं
और कभी लाँघ जाती है कविता
इस देहरी को
और बन जाती है
समयातीत।

विनय जी क़ी कविता और विजय दवे क़ी तीनों लघु कविताएँ भी बहुत अच्छी लगीं...

Mohamed Abdellatif का कहना है कि -

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هو منع حدوث التّبادل الحراريّ بين الحجرات التّي تتباين في درجة حرارتها، وتتمّ هذه الطّريقة باستخدام مواد عازلة للحرارة، كالصّوف الصّخري، وهو شائع الاستخدام، ويكون على شكل ألواحٍ يتم إلصاقها بالسّطح، أو باستخدام المزايكو، والذّي يوضع فيه الصّوف الصّخري على شكل لفائف، تفرد على سطح المنزل، ثمّ يصبّ فوقها الإسمنت، ومن المواد الأخرى المستخدمة في العزل الحراري، هي مادّة البيرلايت، ويتم فردها على السطح، وهي مادّةٌ عاكسةً للحرارة.

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