परिचित सांझ...
कितने सांझ...
अभी आंसू है?
कितने सांझ हैं...
सिर्फ सिसकियां अभी?
क्यों कोई याद रखे...
क्या कोई भूल जाए...
हर सांस करवटें लेकर
जब सांझ तक ठहर जाए!
सांझ आततायी है
ठिठकती है छिटकने से...
......देहरी पर
.....उतरने से आंगन में
सांझ सहमती है
मिलने से भी खुद से
देखा नहीं
उसे स्याह में घुलते हुए!
अपरिचित सांझ
कितने सांझ....
यूं ही थककर दिन
खामोश होता रह जाएगा ?
कितने सांझ....
सजी-झूमती हुई रात
जीत के जश्न मनाएगी?
कितने सांझ....
राह तकती आंखों को
एक और बार ठहरना होगा?
कितने सांझ....
कोई सिर्फ उम्मीद लगाए
हौसलों से जी पाएगा?
कितने सांझ....
उजाले को लीलते हुई
सांझ स्याह में घुल जाएगी?
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
क्यों कोई याद रखे...
क्या कोई भूल जाए...
हर सांस करवटें लेकर
जब सांझ तक ठहर जाए!
वाह अभिषेक , बिल्कुल अपने अंदाज़ की कविता....तारीफ के लिए शब्द नही हैं, बहुत बढ़िया ....बधाई
राह तकती आंखों को
एक और बार ठहरना होगा?
कितने सांझ....
शाब्बाश अभिषेक जी !
"परिचित सांझ अपरिचित सांझ "
शीर्षक पढ़ कर तो मैं इसे सौन्दर्य की कविता समझने की भूल कर रहा था किंतु नए बिम्बों का सृजन करते हुए आप ने जिस सुन्दरता से मानवीय संवेदना को उकेरा है वो काबिल-ऐ-तारीफ़ है !
सांझ सहमती है
मिलने से भी खुद से
देखा नहीं
उसे स्याह में घुलते हुए!
बहुत ही अच्छी लाइन
एक शब्द में पूरी कविता के लिए कह सकते है वाह
मानववीय भावनाओ को बहुत ही संजीदगी से उकेरा है आपने
बहुत ही अच्छा अभिषेक जी
बहुत ही सुंदर रचना.
bahut hi acha likha hai apne saanjh ke madhyam se jeevan ke gamon ko pradarshit karne ka prayaash kiya hai aapne
अभिषेक जी की कलम का कमाल और एक और बाउंड्री............
बढिया अभिषेक भाई!
All lines in the poem are very beautiful and touching but about
कितने सांझ....
कोई सिर्फ उम्मीद लगाए
हौसलों से जी पाएगा?
कितने सांझ....
उजाले को लीलते हुई
सांझ स्याह में घुल जाएगी?
I would like to say....shayad ye hi zindagi hai.....naseeb ke agae toh hum kuch kar nahin sakte....toot kar bikharae huae khud ko agar hum nahin jod paeynge toh zamana toh aur bhi zyada tod dega. Isliye one should fight fight till one succeeds.
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