यूनिप्रतियोगिता की चौथे स्थान की कविता के द्वारा एक नये कवि हिंद-युग्म के मंच से जुड़ रहे हैं। कविता के रचनाकार वसीम अकरम की हिंद-युग्म पर यह पहली कविता है। उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद से तअल्लुक रखने वाले वसीम वर्तमान मे दिल्ली मे स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर रहे हैं। वसीम को कविता लिखने का शौक 15 वर्ष की आयु से ही है और इन्होने गज़ल, कविता, नज़्म जैसी तमाम विधाओं मे हाथ अजमाया है। इनकी कई कविताएं, ग़ज़लें और लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुके हैं।
प्रस्तुत सामयिक कविता हमारे समय के एक ज्वलंत विषय को उठाते हुए खाप पंचायत के पहरुओं से कुछ तीखे सवाल करती है।
पुरस्कृत कविता: खाप सरपंच
कानून और संविधान को
ठेंगे पर रखकर
फैसला सुनाते हो तुम
मानो किसी की जिंदगी
तुम्हारे ही हाथ में हो जैसे।
नये हो तुम
मगर तुम्हारे लिबास
बर्बर परंपराओं के
रूढ़ धागों से बने हैं,
तुम इन्हें नहीं उतारते
कहीं तुम आदमी न बन जाओ
तुम इन्हें नहीं फेंकते
कहीं तुम आधुनिक न हो जाओ
वो इसलिए कि फिर
पुरातनपंथी और रुढ़ियों की
बंजर हो रही तुम्हारी दुकान
कौन चलायेगा तुम्हारे बाद।
सगोत्र विवाह की सज़ा के नाम पर
उस लड़की के साथ
सामूहिक बलात्कार करते हो तुम
और ये भूल जाते हो
कि वो तुम्हारे ही गांव की
तुम्हारे ही गोत्र की
तुम्हारी ही बहन है।
यह कैसी ठेकेदारी है
परंपरा की और धर्म की
जहां किसी ग़लती की सज़ा
सामूहिक बलात्कार के बाद
सरे आम मौत है।
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पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
वासिम जी,
शायद यहाँ आप किसी किस्से को उजागर करना चाहते थे, माफ़ कीजियेगा इस वाकये से मैं वाकिफ नहीं हूँ, सो कविता की गहराई को समझने में असमर्थ हूँ, शायद इसी लिए आपकी कविता मन मस्तिष्क पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पायी...इस विषय पर काफी कुछ और कहा जा सकता था, जिसकी कमी खल रही है.
लिखते रहिये.
ek ghatna ki tarah kah diya gaya hai ..kavyatam lehza gayab hai ..thoda aur taraasha ja sakta tha... waqya to hai dardnaak....khaap panchayat ..hitler wale faisle de rahi hai ...khair mau (nath bhanjan ) se pehli baar kisi kavi ko dekh raha hun ...shubhkaamnaayen aap ko
यह कैसी ठेकेदारी है
परंपरा की और धर्म की
जहां किसी ग़लती की सज़ा
सामूहिक बलात्कार के बाद
सरे आम मौत है।
ज्वलन्त मुद्दा सीधी,सरल व सहज भाषा में अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर है.
आलोचनाओं पर ध्यान ना दें ..इसी तेवर में लिखते रहें..अच्छे, बहुत अच्छे तेवर हैं आपके. आपसे और अच्छा पढ़ने को मिलेगा, ऐसी उम्मीद जाग गई है.
kavita ke vishay ka chunav....aur baat kahne ki spashtata prabhavit karne wali hai....
apne desh mein bahut kuch aisa ho raha hai dharm aur parampara k naam par jo sharminda kar deta hai.....ab virodh jaroori ho gaya hai....yahan kavita k bhav aur vishay kavitatmakata se jyada mahatvpoorna ho hi jaate hain......
सगोत्र विवाह की सज़ा के नाम पर
उस लड़की के साथ
सामूहिक बलात्कार करते हो तुम
समाज का वीभत्स रूप है ये
अच्छी रचना
मऊ के किसी युवा ने बगैर किसी पुराने विषय को दोहराते हुए खाप पर कुछ लिखने की कोशिश की है, सराहनीय है...पश्चिमी उत्तरप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा की सबसे बड़ी समस्या ये समाज के ठेकेदार ही हैं....
विषय ऐसे हों तो कविता लिखने का अंदाज़ सुधारने की गुंजाइश छोड़ी जा सकती है....आप हिंदयुग्म की बैठक पर भी क्यों नहीं लिखते, इन्हीं विषयों पर....आपका स्वागत है....
bina kisi laag lapet ke samaj ke ek ghinone chehre ko dikhane ka prayas sarahniy hai...
तुम इन्हें नहीं उतारते
कहीं तुम आदमी न बन जाओ
वसीम जी बहुत-बहुत बधाई..इस रचना को तो प्रथम आना चाहिए था..आज की सच्चाई को दर्शाती हुई कविता है. साफ़ और सरल शब्दों मे लिखी गई सुन्दर कविता है वसीम जी आलोचनाओ से घबरायें नहीं.ऐसी ही रचनाओं की आगे भी उम्मीद रहेगी .
saraahaniyeprayaas hai akhabaar aur T .V. kee surakhiyoM se is ghaTanaa ke prati kavi ke man kaa aakrosh saaf jhalak rahaa hai| acchaa prayaas hai badhaaI
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