हर माह यूनिप्रतियोगिता के माध्यम से हिंद-युग्म से कई नये कवि भी जुड़ते हैं। प्रतियोगिता की पाँचवी कविता भी एक नये कवि की है। रचनाकार प्रदीप शुक्ला की यह हिंद-युग्म पर प्रथम कविता ही है। 10 अगस्त 1978 को जन्मे प्रदीप जी मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। गणित से स्नातक करने के बाद प्रदीप ने एम बी ए भी किया है तथा सम्प्रति जबलपुर मे निवास कर रहे हैं।
पता: C/O वाई पी पाठक,
मकान सं.- 249, संजीवनी नगर,
जबलपुर (म.प्र.)
पुरस्कृत कविता
पुरानी दीवारो पर पुते हुए
नये पेंट के रंग उखड़ गये है
दीवार के पुराने दिन
कहीं इनसे झाँकते से लगते लगते हैं
तुम्हारी उंगलियों से उकेरे हुए फूल अब भी मुस्कुराते हैं
इन्हीं दीवारो पर
इन्हे वक्त का कोई निशाँ मुरझा ना सका
मेरे नाम की स्याही
पुराने दिनों की दीवार पर अब भी गहरी है ...
कोई सिलवट तक नही आई उन लम्हो पर,
जिन्हे तुमने अपने होंठो से छू लिया था
इन दीवारो को तुम्हारी खुश्बू भी याद है
इन्हे तुम्हारे पैरों की आहटें भी पता हैं …..
इन्हे यकीन है
तुम फिर इन पे टिक कर
देर तक मुझे देखोगी
मुझसे बात करोगी
ये दीवारे किसी रिश्ते से कम नही लगती
ये दीवारे किसी कंधे से कम नही लगती
इन्ही से लिपट तुम्हारी याद के फूल बोते थे
इन्ही से टिक के तुम्हारी उंगलिया छूते थे
इन्हे तुम्हारे खत के हर हरफ़ याद हैं
ये दीवारे नही मेरी रूह की किताब हैं
तुम आना कभी
और छू के इनको मेरे सारे गुज़रे दिन पढ़ लेना
________________________________________________
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
13 कविताप्रेमियों का कहना है :
शुक्ला जी की कविता बहुत ही अच्छी लगी।
इन्हीं दीवारो पर
इन्हे वक्त का कोई निशाँ मुरझा ना सका
मेरे नाम की स्याही --- दिल को गहरे तक छू गये कविता के भाव । शुक्ला जी को बधाई
इन्हे तुम्हारे खत के हर हरफ़ याद हैं
ये दीवारे नही मेरी रूह की किताब हैं
तुम आना कभी
और छू के इनको मेरे सारे गुज़रे दिन पढ़ लेना
अच्छी भावपूर्ण कविता है, जो वर्तमान भौतिक्वादी युग में गुजरे जमाने की बात हो गई है और आदमी लौटने की इच्छा रखते हुए भी लौट नहीं पा रहा.
ये दीवारे किसी रिश्ते से कम नही लगती
ये दीवारे किसी कंधे से कम नही लगती
वाकई ये दीवारे तो थाम लेती है जब हम लड़खड़ाते है
सुन्दर कविता
तुम फिर इन पे टिक कर
देर तक मुझे देखोगी
बहुत ही खूबसूरत भाव हैं..बहुत-बहुत बधाई शुक्ला जी!
वाह्……………रूह मे उतर गयी ………………्कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।
pradeep ka swagat hai yugm par.
wo nayee kavitao ke saath har maah aaye , aasha hai.
pradeep ka swagat hai yugm par.
wo nayee kavitao ke saath har maah aaye , aasha hai.
beautiful... Har misra khoobsurat laga..har alfaaz mein sundar saleeka..
Mujhe is tarah ki kavitaayein khaas bhaati hain, mera hi style hai na ;)
Likhte rahiye. Badhai
एक सुंदर और भावयुक्त कविता का साक्षात्कार हुआ है.... धन्यवाद!
वाह ! बहुत सुन्दर !!
mujhe lagta hai ..posting ke waqt kuch mistake ho gayi hai ... pradeep shukla ji aur rajendra swarnkar ji ..dono ki kavitaon ko paanche sthan pe prakshit kiya gaya hai ...jabki kram soochi kuch aur kahti hai ..
baharhaal ye kavita mujhe bahut bahut bahut bahut jyada pasand aayi hai ...
har misre me tazgi hai ...
Nirmala ji ,
Vinamra Dhanywad ....
grate mr. shukla i love u r thinking keep it up ............can i suggesh u plz do marri i'll see u r choice n she is very lucky who marri with u ......
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)