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Sunday, June 13, 2010

पुरानी दीवारें और नया कवि


हर माह यूनिप्रतियोगिता के माध्यम से हिंद-युग्म से कई नये कवि भी जुड़ते हैं। प्रतियोगिता की पाँचवी कविता भी एक नये कवि की है। रचनाकार प्रदीप शुक्ला की यह हिंद-युग्म पर प्रथम कविता ही है। 10 अगस्त 1978 को जन्मे प्रदीप जी मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। गणित से स्नातक करने के बाद प्रदीप ने एम बी ए भी किया है तथा सम्प्रति जबलपुर मे निवास कर रहे हैं।

पता: C/O वाई पी पाठक,
मकान सं.- 249, संजीवनी नगर,
जबलपुर (म.प्र.)

पुरस्कृत कविता

पुरानी दीवारो पर पुते हुए
नये पेंट के रंग उखड़ गये है
दीवार के पुराने दिन
कहीं इनसे झाँकते से लगते लगते हैं
तुम्हारी उंगलियों से उकेरे हुए फूल अब भी मुस्कुराते हैं
इन्हीं दीवारो पर
इन्हे वक्त का कोई निशाँ मुरझा ना सका
मेरे नाम की स्याही
पुराने दिनों की दीवार पर अब भी गहरी है ...
कोई सिलवट तक नही आई उन लम्हो पर,
जिन्हे तुमने अपने होंठो से छू लिया था
इन दीवारो को तुम्हारी खुश्बू भी याद है
इन्हे तुम्हारे पैरों की आहटें भी पता हैं …..
इन्हे यकीन है
तुम फिर इन पे टिक कर
देर तक मुझे देखोगी
 मुझसे बात करोगी
ये दीवारे किसी रिश्ते से कम नही लगती
ये दीवारे किसी कंधे से कम नही लगती
इन्ही से लिपट तुम्हारी याद के फूल बोते थे
  इन्ही से टिक के तुम्हारी उंगलिया छूते थे
इन्हे तुम्हारे खत के हर हरफ़ याद हैं
ये दीवारे नही मेरी रूह की किताब हैं
तुम आना कभी
और छू के इनको मेरे सारे गुज़रे दिन पढ़ लेना
________________________________________________
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

शुक्ला जी की कविता बहुत ही अच्छी लगी।
इन्हीं दीवारो पर
इन्हे वक्त का कोई निशाँ मुरझा ना सका
मेरे नाम की स्याही --- दिल को गहरे तक छू गये कविता के भाव । शुक्ला जी को बधाई

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

इन्हे तुम्हारे खत के हर हरफ़ याद हैं
ये दीवारे नही मेरी रूह की किताब हैं
तुम आना कभी
और छू के इनको मेरे सारे गुज़रे दिन पढ़ लेना
अच्छी भावपूर्ण कविता है, जो वर्तमान भौतिक्वादी युग में गुजरे जमाने की बात हो गई है और आदमी लौटने की इच्छा रखते हुए भी लौट नहीं पा रहा.

M VERMA का कहना है कि -

ये दीवारे किसी रिश्ते से कम नही लगती
ये दीवारे किसी कंधे से कम नही लगती
वाकई ये दीवारे तो थाम लेती है जब हम लड़खड़ाते है
सुन्दर कविता

Anonymous का कहना है कि -

तुम फिर इन पे टिक कर
देर तक मुझे देखोगी
बहुत ही खूबसूरत भाव हैं..बहुत-बहुत बधाई शुक्ला जी!

vandana gupta का कहना है कि -

वाह्……………रूह मे उतर गयी ………………्कल के चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट होगी।

Akhilesh का कहना है कि -

pradeep ka swagat hai yugm par.

wo nayee kavitao ke saath har maah aaye , aasha hai.

Akhilesh का कहना है कि -

pradeep ka swagat hai yugm par.

wo nayee kavitao ke saath har maah aaye , aasha hai.

दिपाली "आब" का कहना है कि -

beautiful... Har misra khoobsurat laga..har alfaaz mein sundar saleeka..

Mujhe is tarah ki kavitaayein khaas bhaati hain, mera hi style hai na ;)
Likhte rahiye. Badhai

Aruna Kapoor का कहना है कि -

एक सुंदर और भावयुक्त कविता का साक्षात्कार हुआ है.... धन्यवाद!

अमिताभ मीत का कहना है कि -

वाह ! बहुत सुन्दर !!

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

mujhe lagta hai ..posting ke waqt kuch mistake ho gayi hai ... pradeep shukla ji aur rajendra swarnkar ji ..dono ki kavitaon ko paanche sthan pe prakshit kiya gaya hai ...jabki kram soochi kuch aur kahti hai ..


baharhaal ye kavita mujhe bahut bahut bahut bahut jyada pasand aayi hai ...
har misre me tazgi hai ...

Pradeep Shukla का कहना है कि -

Nirmala ji ,
Vinamra Dhanywad ....

Unknown का कहना है कि -

grate mr. shukla i love u r thinking keep it up ............can i suggesh u plz do marri i'll see u r choice n she is very lucky who marri with u ......

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