हम हर माह के तीन सोमवारों को उस माह के यूनिकवि की रचनाएँ प्रकाशित करते रहे हैं। उसी परम्परा मे प्रस्तुत है हमारे मई माह के यूनिकवि मृत्युंजय ’साधक’ का यह मधुर गीत, जो प्रेम-गीतों की वासंती-बगिया के एक मनोहर पुष्प सी मोहकता लिये है।
तुम्हारे प्यार की खुशबू, जेहन में तैरती मेरे;
सुबह हो शाम हो दिन हो, सदा रहती मुझे घेरे॥
तुम्हारी याद में खोया रहा मैं, क्यों यहाँ अक्सर
मिले जो खत मुझे तुमसे, निकलता हूँ उन्हें पढ़कर
तुम्हारी राह तकता हूँ, मुझे भी तक रही है वह
बनाऊँ किस तरह उन पर, तुम्हारे ख्वाब के डेरे
तुम्हारे प्यार की खुशबू, जेहन में तैरती मेरे...॥
बहुत बेचैन होता हूँ, अगर तुमको ना देखूँ तो
ये फूलों का मुकद्दर है, तुम्हारे पास फेंकूँ तो
उमंगों की कली, खिलकर मचलती है यहां अक्सर
तुम्हारे बिन सबेरे भी सताते हैं नजर फेरे
तुम्हारे प्यार की खुशबू, जेहन में तैरती मेरे ..॥
तुम्हें अब हो गई फुरसत, ह्रदय में छा रहे हो तुम
हिमालय से बही गंगा, बहाये जा रहे हो तुम
चलो अब सीपियाँ ढूढ़ें, चलो मोती कहीं चुन लें
तुम्हारे साथ चलकर हम, उतर जायें कहीं गहरे
तुम्हारे प्यार की खुशबू, जेहन में तैरती मेरे...॥
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
तुम्हारी याद में खोया रहा मैं, क्यों यहाँ अक्सर
मिले जो खत मुझे तुमसे, निकलता हूँ उन्हें पढ़कर
तुम्हारी राह तकता हूँ, मुझे भी तक रही है वह
बनाऊँ किस तरह उन पर, तुम्हारे ख्वाब के डेरे
तुम्हारे प्यार की खुशबू, जेहन में तैरती मेरे...॥
सुंदर भावपूर्ण कविता...साधक जी बढ़िया गीत के लिए हार्दिक बधाई.
याद की सुन्दर खुश्बू ... जी हाँ यहाँ तक आ रही है.
बहुत सुन्दर
चलो अब सीपियाँ ढूढ़ें, चलो मोती कहीं चुन लें
तुम्हारे साथ चलकर हम, उतर जायें कहीं गहरे...
तुम्हारे प्यार की खुशबू उतर गयी यूँ गहरे ...
सुन्दर मीठा गीत ...!!
achha geet ban pada hai .. :)
pyaara geet hai sadhak ji. Badhai
तुम्हारी याद में खोया रहा मैं, क्यों यहाँ अक्सर
मिले जो खत मुझे तुमसे, निकलता हूँ उन्हें पढ़कर
भाई, प्यार की तो बात ही और है,
यह प्यार की मार्केटिंग का दौर है,
सच्चे प्यार करने वालों का कोई दूसरा ही ठोर है.
गीत अच्छा है, लेकिन प्यार दुर्लभ है.
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