देवेश पाण्डेय जनवरी 2010 से हिन्द-युग्म पर सक्रिय हैं। यह इनकी तीसरी रचना है जिसने मई 2010 की यूनिकवि प्रतियोगिता में सातवाँ स्थान बनाया है।
पुरस्कृत कविताः माँ
1-
माँ क्या है?
एक शब्द
एक भाव
एक खुश्बू
एक ध्वनि
एक दृश्य !
क्या है माँ .....?
जब पैदा हुआ तो
स्पर्श से पहचानता था
दो माह का हुआ तो
आहट से जानता था
पहले छः माह दूध जैसी लगती थी
बाद में उसे रोटी से जान लेता था
महक जो उठती थी रसोई से,घर के चौरे से,
उसे नथुनों में भर के पहचान लेता था
बस एक माँ ही है स्वर्ग दुनिया में
जब-जब आँख खोली मै जान लेता था
अलग-अलग समय पर ही सही
पर शायद एक माँ ही वो अहसास है
जिसका स्वाद हमारी पाँचो इन्द्रियाँ जानती है
2-
आँगन में सब बैठे थे
बच्चे बूढ़े और जवान
खेल कूदकर थककर आया
मै माँ की गोद में लेट गया
चढ़ी धूप तो छाँव की खातिर
माँ का आँचल खीच लिया
गैरो के आगे बेपर्दा माँ
वात्सल्य से ढक जाती है
3-
जून की चिलचिलाती धूप में
काम पे जा रही माँ के पीछे-पीछे
एक अबोध आँगन तक चला आया
बच्चे का पाँव झुलसकर रह गया
दोनों रो रहे थे
बच्चे की आँख और माँ का दिल!
4-
हम बेसुध खेला करते थे
माँ हमें खिलाने आती थी
“पापा से कह दूँगी “
“ना” कहने पर यूँ डराती थी
हमें खिलाकर ताज़ा खाना
माँ बासी रोटी खाती थी
5-
नदी की कलरव में तुम हो
पंछी की कोलाहल में तुम हो
बहती हुई हवा में तुम हो
पेडों की छाया में तुम हो
तुम्हे भूल जाऊँ मैं कैसे
माँ मेरी हर धडकन में तुम हो !!
पुरस्कार: विचार और संस्कृति की पत्रिका ’समयांतर’ की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
अति उत्तम समय मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी पधारिएगा
मां मगर वो सुख नहीं है, जो तुम्हारे प्यार में है..
मां को समर्पित कविता गहरे भाव लिए है।
maa par likhi rachna par kya bolun sab badhiya...
हमें खिलाकर ताज़ा खाना
माँ बासी रोटी खाती थी...
आज भी माँ ऐसा करती है ...पता नहीं क्यों
माँ क्या है?
एक शब्द
एक भाव
एक खुश्बू
एक ध्वनि
एक दृश्य !
क्या है माँ .....?
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माँ एक शब्द नहीं
एहसास है
एक अटूट रिश्ता;
एक विश्वास है
माँ को नमन
नदी की कलरव में तुम हो
पंछी की कोलाहल में तुम हो
बहती हुई हवा में तुम हो
पेडों की छाया में तुम हो
तुम्हे भूल जाऊँ मैं कैसे
माँ मेरी हर धडकन में तुम हो !!
काश! हम मां को हर जगह महसूस कर पाते महिलाओं पर होने वाले अनाचार रुक जाते.
अलग-अलग समय पर ही सही
पर शायद एक माँ ही वो अहसास है
जिसका स्वाद हमारी पाँचो इन्द्रियाँ जानती है
sशायद माँ के लिये इस से अच्छी परिभाशा और नही हो सकती। बहुत अच्छी लगी कविता --बधाई
maa ke liye kahi gayi in baaton me har harf poojne yogya hai ... mujhe jo baat sabse jyada pasand aayi wo hai in kavitaon ki sarlta..seedhi sadi hote hue bhi ye dil me gahre tak utarti hain ..sach much ..maa mamtamayi hai ..maa kavitamayi hai .. :)
माँ क्या है?
एक शब्द
एक भाव
एक खुश्बू
एक ध्वनि
एक दृश्य !
क्या है माँ .....?
maa ke liye kaha gaya har shabd poojniya hota hai.. is duniya mein sabse khoobsurat kriti ishwar ki 'maa' hi hai.. maa se badhkar to koi bhi nahi hai, kehte hain ishwar har jagah nahi ho sakta isi liye usne Maa banai..
maa ko samarpit yeh chhoti chhoti kavitaayein acchi lagi.
agar kavita ko kavita ke nazariye se dekha jaye to repetition jyada hai, upar quote ki gai kuch lines ke alawa, kavita ki shaili missing hai, aur naye pan ki thodi kami khalti hai.
likhte rahiye.
badhai
गैरो के आगे बेपर्दा माँ
वात्सल्य से ढक जाती है
...................
वाह देवेश जी वाह
बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत खूब
दिल निकाल के रख देने वाली बात कह दी आपने
ढेर सारी बधाईयाँ ....जारी रखिये
आलोक उपाध्याय "नज़र"
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