प्रतियोगिता में ग्यारहवें स्थान की कविता के रचयिता देवेश पांडेय की हिंद-युग्म पर प्रथम कविता है। 30 जनवरी 1984 को जन्मे देवेश इलाहाबाद के रहने वाले हैं तथा वर्तमान में चीन में एम. बी. बी. एस. की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। देवेश अभी हिंदी टाइपिंग सीख रहे हैं।
पुरस्कृत कविता- मै कुँवारी हूँ
मै कुँवारी हूँ!
अपने माँ-बाप के सर पर
एक बोझ भारी हूँ
मै कुँवारी हूँ
दुल्हा खरीद ना पायी जो
मै वो अभागन नारी हूँ
मै कुँवारी हूँ
प्रदर्शनी के लिये लगी
कोई चीज प्यारी हूँ
मै कुँवारी हूँ
आते है लडके वाले
मुझे देखने अक्सर
पर वो देखते है
मेरा घर, मेरे बाप की हैसियत
वो कहते है,
घर वालो से पूछकर बतायेंगे
दो चार रोज बाद आयेंगे
पर मै जानती हूँ
वो नही आने वाले है
क्योंकि, उन्होने देखा है
मेरे चौखट पर
नही खडी है कार
मेरे ड्राईंग रूम मे
सोफे नही,
कुर्सियाँ पडी है दो-चार
जब मै छोटी थी
तो सोचती थी
लोग क्यों कहते है
लक्ष्मी ,बहू को
लेकिन,
अब समझ आ गया है
सचमुच बहु लक्ष्मी होती है
और जिसके घर लक्ष्मी नही होती
वो बहु नही बन सकती
वो बहु नही बन सकती।
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
जिसके घर लक्ष्मी नही होती
वो बहु नही बन सकती
नयी पीढ़ी अगर ऐसा सोचती है तो बहुत अच्छा शुभकामनाएं. अच्छे भाव और दहेज़ प्रथा पर सटीक व्यंग.
एक लड़की के मन का सुंदर चरित्र चित्रण ..आज के समाज और बेटियों के मनोभाव को नज़र में रख कर लिखी गई एक बेहतरीन रचना..धन्यवाद देवेश जी!!
sunder..
बहुत बढ़िया व्यंग धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
Devesh pandey ji..
bahut achcha likha hai aapne..
samvednao se bharpoor.. jhakjhorati rachana..
by being a doctor you've written so nicely that its a taunt for todays dowary system and our advance society.....thanks
ashutosh----by being a doctor you've written so nicely and beautifully that its a taunt for todays dowary system and our advance society.....thanks-------
from all doctors of jxutcm
excellent.
Hi Friends,
Devesh ki taraf se main aap sab ko Dhanyavaad karti hoon. Jaisa ki aap janty hain Devesh China main hai to wahan se blog par post send nahi hoti...Devesh ki badi behan hone ke naaty usne mujhy aap sab ko Dhanyavaad kehny ka Haq diya hai...Devesh ki sabhi rachnayen behadd sunder hain aur dil chhone wali hain...
Aap sab ko Hardik Dhanyavaad !!!
These R Devesh Words to u all...
"सबसे पहले तो लेट replay के लिये माफ़ी चाहता हु.असल में मुझे ध्यान नही आया की कमेंट्स भी मिलते है . तो मैंने कभी पलट कर नही देखा .
मुझे खुशी है की आपको कविता अच्छी लगी . अपने समानुभुती रखने वालो से मिल कर खुशी तो होनी ही थी. इसके लिये हिंदी युग्म को धन्यवाद .
भारत की एक ज्वलन्त सामाजिक समस्या पर लिखी सुन्दर कविता बधाई योग्य है}शुभकामनाएं॒!
ऊंचे कहलाने वाले समाज में लडकियों को कोख में ही कत्ल करने की कुचेष्टा के चलते अब स्थिति में परिवर्तन आ रहा है । बोलिया जैसे छोटे से गांव में ३०-४० जैन समाज के लडके शादी की उम्र पार कर चुके हैं ,लडकी वाले २-३ लाख के आफ़र को भी ठुकरा रहे हैं। निराश होकर कुछ लडकों ने बेतुल से अन्य समाज की ही सही ,लडकियां लाकर गृहस्थी बसा ली है। मुझे तो लगता है अब लडकियों का ही जमाना आ गया है।
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