प्रतियोगिता की नवीं कविता एक गज़ल है, जिसे लिखा है हिन्द-युग्म से बहुत लम्बे समय से जुड़ीं युवा कवयित्री अनुराधा शर्मा ने।
पुरुस्कृत कविता: ग़ज़ल
जिस्म से रूह को ले कर निकला....
याद का जब भी कबूतर निकला.....
मुझको तोड़ा गया सच कहने पर,
आईने जैसा मुक़द्दर निकला....
झील के जैसा लगा, था मुझको,
छू के देखा तो समंदर निकला.....
उन निगाहों मे नशा कितना है,
हर दफ़ा पहले से बढ़कर निकला.....
इश्क़ का शहर अजब है मौला,
जो मिला हमको वो बेघर निकला,....
हमला करता था अंधेरे में,
धूप मे आँख चुरा कर निकला....
ताजपोशी में, कुंवर से कहना,
बीरबल से ही था, अकबर निकला....
हाथ फिर वो ना आ पाया, मेरे,
ख्वाब चादर से जो बाहर निकला....
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पुरस्कार- विचार और संस्कृति की मासिक पत्रिका 'समयांतर' की ओर से पुस्तक/पुस्तकें।
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11 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल ,भाव की दृष्टि से अनूठी
दाद के काबिल गज़ल बधाई
जिस्म से रूह को ले कर निकला....
याद का जब भी कबूतर निकला.....
झील के जैसा लगा, था मुझको,
छू के देखा तो समंदर निकला.....
प्रत्येक शेर बेजोड़ हर द्रष्टि से काबिले तारीफ़ ग़ज़ल.
झील के जैसा लगा, था मुझको,
छू के देखा तो समंदर निकला.....
behtreen hai ..
badhayee...
हमला करता था अंधेरे में,magar
धूप मे आँख चुरा कर निकला....
बहुत सुंदर ग़ज़ल.
हाथ फिर वो n mere aa payaa..
ख्वाब चादर से जो बाहर निकला....
ताजपोशी में, कुंवर से कहना,
बीरबल से ही था, अकबर निकला....
bahut khoob
झील के जैसा लगा, था मुझको,
छू के देखा तो समंदर निकला.....
sunder
aap ki puri gazal bahut achhhi hai
badhai
rachana
kyaa khoobsoorat matla'a hai'saarii ghazal hi khoobsoorat hai
हमला करता था jo अंधेरे में,
धूप मे आँख चुरा कर निकला
ek hi baat hai
kabilegaur hai ye gazal.... khoobsoorati se panne pe ukeri gayi..
Jai Hind...
मनु जी
एक ही बात नहीं है।
"जो" नहीं होने से बह्र ग़लत हो जाती है। शायद टाइपिंग की ग़लती है।
ग़ज़ल बहुत ही ख़ूबसूरत है। अनु जी दाद क़ुबूलें।
अनमोल
beautiful..shaandar gazal..
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