प्रतियोगिता की बारहवीं और अंतिम कविता शील निगम की है। पिछले कुछ महीनो से इनकी कविताएं प्रतियोगिता का नियमित हिस्सा रही हैं। अक्टूबर माह मे इनकी एक कविता दसवें स्थान पर रही थी।
कविता: तलाश आँसुओं के ढेर में...
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ ,
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
कोई तो जाने कि इस अनजाने से शहर में, मैं
घने सायों के बीच मुठ्ठी भर आसमान ढूँढता हूँ.
बहुत कुछ खोया मैंने अपना सब कुछ लुटा कर,
खुशियाँ भी खोयीं, उसे बस एक बार अपना कर.
अपनों को खोया, उन परायों के शहर में जा कर.
अब अपने कदमों के तले, जमीं पर, अनजाना सा,
जो अपना सा लगे, एक प्यारा इंसान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
ये अंगार मेरे आँसुओं को सुखाने के काम आयेंगे.
बीती अच्छी-बुरी यादों को जलाने के काम आयेंगे,
इन अंगारों को भी दिल में सहेज कर रख लूँगा,
मन के अंधेरों में रौशनी दिखाने के काम आयेंगे.
अब तो समझो, कि क्यों इन पत्थर के इंसानों में ,
अनजाना सा, अपना सा, प्यारा मेहमान ढूँढता हूँ.
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
या फिर आँसुओं की धार में कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
आँसुओं के ढेर में-------कुछ अंगार ढूँढता हूँ.
samaj ka har vyakti aaj inhi sawalo me khoya hua hai..bahot badhai apko.
कोई तो जाने कि इस अनजाने से शहर में, मैं
घने सायों के बीच मुठ्ठी भर आसमान ढूँढता हूँ.
bahut khoob achchha likha hai
badhai
rachana
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ...।
आँसुओं के ढेर में एक मीठी मुस्कान ढूँढता हूँ.
सुन्दर जज़्बा
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