प्रतियोगिता की दसवें स्थान की कविता शील निगम की है। पिछले कुछ महीनों से प्रतियोगिता की नियमित प्रतिभागी रही शील जी की पिछली कविता जून माह की प्रतियोगिता के अंतर्गत प्रकाशित हो चुकी है।
पुरस्कृत कविता: इन्द्रधनुषी सपने
अवसादों के घने साए में,
जब खो जाती हैं आशाएं,
शाम के सुरमई अंधेरों में,
जब मन देता है सदायें,
तो चन्द्र-किरणों के रथ पर हो सवार,
लिए झिल-मिल तारों की सौगात,
रुपहली-सुनहरी यादों के सिरहाने बैठ,
आँखों के कोरों से बहते टप-टप,
आँसुओं से भीगी चादर हटा कर,
अपनी प्रेम ऊष्मा से आलिंगन कर,
मन में छिपे किसी अतीत की याद में,
अल्हड़ स्मृतियों में चंचलता भर कर,
आकांक्षाओं का संसार सजा जाते हैं,
ये सपने, इन्द्रधनुषी सपने.
धुंधली राहों में जब खो जाते हैं अपने,
तो स्वप्निल नयनों में अश्रुकण झलकाते,
कभी अंतस के गहन अवचेतन में,
आशाओं के दीप जलाते,
मन के उजले आँगन में,
रंग-बिरंगे रंग सजाते...
ये सपने...ये इन्द्रधनुषी सपने.
कुछ मूक प्रश्न, कुछ अनुत्तरित प्रश्न,
बसे अन्तस्तल में खोजते उत्तर,
बंद पलकों में, मौन नयनों के भीतर,
चित्रलिपि की भाषा में शब्द बाँचते,
अनसुलझी पहेलियाँ सुलझाते और...
कभी भविष्यवेत्ता बन कर और भी
रहस्यमय बन जाते...
ये सपने...ये इन्द्रधनुषी सपने.
अंतस के तम को हरते,
कभी हँसाते,कभी रुलाते,
कभी जिज्ञासु मन के कौतूहल पर,
मंद-मंद मुस्काते ...ये सपने.
सत्य-असत्य की सीमारेखा पर,
छोड़ जाते अवाक मन...
ये सपने...ये इन्द्रधनुषी सपने.
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :
ऐसी कविताएँ तब बुन जाती हैं, जब कवि/कवयित्री अपने ऐकान्तिक चिंतन-पलों में स्वयं से संवाद करता हुआ काफी दूर तक चला जाता है...सृजन के अद्भुत लोक तक!...है न शील निगम जी?
भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति !!!!
सुन्दर अभियक्ति, जौहर जी से पूर्णतया सहमत हूँ। कवियत्री को बधाई।
इन्द्रधनुषी सपनों को बरकरार रखना होगा.
सुन्दर रचना.. भावपूर्ण
अंतस के तम को हरते,
कभी हँसाते,कभी रुलाते,
सुन्दर भावमय प्रस्तुति ।
ये सपने...ये इन्द्रधनुषी सपने.
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sundar!!!
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है ......…
के ज़िन्दगी तेरी जुल्फों की नर्म छाओं में ........
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी .......
ये तीरगी जो मेरी जीस्त का मुक़द्दर है .......
तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी ...........
मगर ये हो न सका और अब ये आलम है ........
के तू नहीं , तेरा गम , तेरी जुस्तजू भी नहीं ............
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे ...........
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं ...........
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है ..........
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है..............
कुछ मूक प्रश्न, कुछ अनुत्तरित प्रश्न,
बसे अन्तस्तल में खोजते उत्तर,
बंद पलकों में, मौन नयनों के भीतर,
चित्रलिपि की भाषा में शब्द बाँचते,
अनसुलझी पहेलियाँ सुलझाते और...
कभी भविष्यवेत्ता बन कर और भी
रहस्यमय बन जाते...
ये सपने...ये इन्द्रधनुषी सपने.
bahut sunder bhav
badhai
rachana
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