प्रतियोगिता की 16वीं कविता पर भी एक नयी कलम है। यद्यपि कवयित्री शील निगम 2 और बार प्रतियोगिता में भाग ले चुकी हैं। 6 दिसम्बर 1952 को आगरा में जन्मी शील ने बी॰ए॰, बी॰एड॰ तक की शिक्षा हासिल की है। 25 सालों तक स्कूल में पढ़ाया और पढ़वाया है। अनेक लोक नृत्यों व नाटकों में अभिनय किया है और बच्चों के लिए नाटकों का लेखन और निर्देशन भी किया है। जीटीवी के लिए कहानियाँ लिख चुकीं शील परदेश घूम चुकी हैं। इनकी स्क्रिप्ट पर ऑस्ट्रेलिया में, अंग्रेज़ी में फिल्म भी बन रही है। पत्र-पत्रिकाओं में भी खूब चुकी हैं, आजकल यह सिलसिला नेटपत्रिकाओं पर चल रहा है।
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पुरस्कृत कविता: चांदनी का आँचल
रात भर चाँद से रूठी
पौ फटते ही जा बैठी
चाँदनी, उषा के पास.
उसे क्या पता था कि
उसकी यह हरकत नहीं
आएगी सूरज को रास.
सूरज की तपती धूप ने
जला डाला चाँदनी का
चमचमाता, खूबसूरत
सितारों से भरा आँचल.
लाख चाहा उषा ने कि,
सँवारे चाँदनी का आँचल,
बादलों से भी लिए उधार
कुछ पैबंद, कि काम आयें
सुधारने, चाँदनी का आँचल.
पर बादल थे कुछ, मनमौजी,
इधर-उधर उड़ते हवा के संग,
उन्हें क्या पड़ी थी कि देखें,
रूठी थी चाँदनी अपने चाँद से
या रागिनी अपने प्यारे राग से.
वो तो मस्ती में राग अलापते
उड़े जा रहे थे हवा के संग-संग.
दिन भर झुलसती दोनों सखियाँ
आखिर थक-हार कर पहुँची
शाम को, संध्या के पास .
खूब रोई चाँदनी जार-जार
अपने जले हुए आँचल पर.
संध्या ने कंधा दिया उसे
चुप कराया , उड़ाया अपना
आँचल, सितारे टाँक कर.
ओढ़ कर नया आँचल पहुँची
चाँदनी अपने साजन के पास.
नए आँचल के घूँघट में चाँद ने
नहीं पहचाना, अपनी चाँदनी को.
घूँघट के आँसू जब शबनम क़ी
बूंदों से मिले तो हुआ अहसास
चाँद को, कीमती आँसुओं का,
लगाया गले चाँद ने चाँदनी को,
तब से रोज़ चाँदनी संध्या से
गले मिल कर चाँद से मिलती है,
और पौ फटते ही उषा को अपने
गले लगा कर विदा होती है.
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4 कविताप्रेमियों का कहना है :
तब से रोज़ चाँदनी संध्या से
गले मिल कर चाँद से मिलती है,
और पौ फटते ही उषा को अपने
गले लगा कर विदा होती है.
चलो इसी तरह यह सिलसिला चलता रहे
चाँद चादनी से सन्ध्या बेला में मिलता रहे
खूबसूरत ताने बाने की दास्तान है यह रचना .. सुन्दर
खूब रोई चाँदनी जार-जार
अपने जले हुए आँचल पर.
संध्या ने कंधा दिया उसे
चुप कराया , उड़ाया अपना
आँचल, सितारे टाँक कर.
ओढ़ कर नया आँचल पहुँची
चाँदनी अपने साजन के पास.
बहुत सुन्दर तरीके से प्रेम की अभिव्यक्ति को बयां करती प्यारी रचना के लिए शील निगम जी को बहुत-बहुत हार्दिक बधाईयां!!
संध्या ने कंधा दिया उसे
चुप कराया , उड़ाया अपना
आँचल, सितारे टाँक कर.
कल्पनाशीलता की गहराई स्पष्ट दिखाई दे रही है। बधाई।
प्रमोद ताम्बट
भोपाल
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खूब रोई चाँदनी जार-जार
अपने जले हुए आँचल पर.
संध्या ने कंधा दिया उसे
चुप कराया , उड़ाया अपना
आँचल, सितारे टाँक कर.
सुन्दर शब्द रचना ।
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