हिन्द-युग्म के पाठक अविनाश मिश्र से परिचित हैं। अविनाश मिश्र की एक कविता मार्च 2010 की प्रतियोगिता से प्रकाशित करने के लिए चुनी गई थी। जून माह की प्रतियोगिता में इनकी एक कविता तेरहवें स्थान पर रही।
पुरस्कृत कविता: अंतिम दो
इस वर्ष फरवरी उनतीस की है
सत्ताईस दिन गुज़र चुके हैं
अभी दो दिन और हैं
और दो दिन और भी हो सकते थे
इन गुज़र गए सत्ताईस दिनो में
मैं प्रेम में बहता रहा हूँ
और इस अवधि मे मैने अविश्वसनीय हो चुके संवादों
और मृतप्राय संगीत को एक बार पुनः रचा है
और आवेग में वह सब कुछ भी किया है
जो प्रेम में युगों से होता आया है
इस माह में प्रदर्शित हुई फ़िल्में
मेरे प्रेम की दर्शक रही हैं
मैंने उन्हें बार-बार देखा है
बार-बार प्रेम करते हुए
हालाँकि मुझे अब उनके नाम याद नहीं
क्योंकि मैं बस देखता और प्रेम करता हूँ
बगैर इसे कोई नाम दिए हुए
एक नितांत शीर्षकहीन और विरल स्थानीयता मैं ध्वस्त होते हुए
मैं पाता हूँ- दखल इधर काफी बढ़ा है मेरे अन्तरंग में
वे अब हर उस जगह मौजूद हैं
जहाँ मैं प्रेम कर सकता हूँ
इसलिए मैं गुलाबों से बचता हूँ
कहीं घेर न लिया जाऊँ
एक अजीब-सी पोशाक में
इन्तहाई सख्त और गर्म रास्तों पर लगातार चलते हुए
मैं उसे याद करता हूँ
और मुसव्विर मुझे उकेरा करते हैं
और वह मुझे देखती और प्रेम करती है
बगैर इसे कोई नाम दिए हुए
देखने और प्रेम करने की संभावनाएँ
धीरे-धीरे समानार्थी शीर्षकों के व्यापक में
विलीन होती जा रही है
वे अब हर उस जगह मौजूद हैं
जहाँ वह मुझे पुकार सकती है
अभी रास्ते और सख्त और गर्म होगें
सूर्य की अनंत यातनाएँ सहते-सहते
बारिशें अतीत की तरह हो जाएँगी
और मैं उन्हें छोड़ आऊँगा
सँकरी गलियों से होकर
पार्को की तरफ खुलने वाले रास्तों पर
जहाँ वे अपने बाद भी बची रहती हैं
एक हरे और उजलेपन में
मेरे पीछे लगातार कुछ बरसता रहा है
फ़िलहाल यह फरवरी है
और यह कविताएँ लिखने के लिए एक आदर्श महीना है
और मैं धीरे-धीरे रच रहा हूँ
अभी दो दिन और फरवरी है
अभी दो दिन और कविताएँ हैं
अभी दो दिन और प्रेम है.......
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
badhiya kavita hai :)
भावपूर्ण रचना
achchhi hai...
ho sakta hai ki bhaavpooran bhi ho...
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
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