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Thursday, October 28, 2010

तुम किस परत में मिलोगे


प्रतियोगिता के छठी कविता की रचनाकार के रूप मे एक नया नाम हिंद-युग्म से जुड़ा है। जया पाठक श्रीनिवासन की यह हिंद-युग्म पर प्रथम कविता है। जया का जन्म 1977 मे मुम्बई मे हुआ। पुने के सिम्बिओसिस संस्थान से प्रबंधन मे परास्नातक जया वर्तमान मे गुड़गाँव मे मार्केटिंग क्षेत्र मे कार्यरत हैं। पढ़ने-लिखने के अतिरिक्त चित्रकला मे अभिरुचि रखने वाली जया का काम कई प्रदर्शनियों मे भी प्रदर्शित हुआ है।
प्रस्तुत है उनकी कविता जो एक भावनात्मक धरातल पर मानवीय संबंधों की पहचान के स्तरों की पड़ताल करने की कोशिश करती है।

पुरस्कृत कविता: तुम किस परत में मिलोगे

तुम किस परत में मिलोगे-
वह परत बताएगी
कि तुम कब थे
और कब तक थे
बताएगी
तुम्हारे साथ और क्या था
कब तक था
हाँ वही परत बताएगी
तुम कौन थे
कैसे थे
तुम्हारा नाम क्या था
कितना था
पर बस...
इतना ही हो तुम केवल??
वह जो ह्रदय
धड़कता है तुम्हारे में
उसकी धड़क
वह जो धौंकनी सी चलती है
संघर्षरत तुम्हारे में
उसकी धधक
और वह जो कविता बुनते हो तुम
रोज़ रोज़
उसकी खनक
उसका क्या होगा...
मिटटी कैसे संजो कर रख सकेगी
इतना सब अपनी परतों में
और वह,
जो निकालेगा एक दिन तुम्हे
कुरेद कर उन परतों में से
उसकी अंगुलियाँ
कैसे समझ सकेंगी
इतना सब...
वह तो टटोलेंगी
बस तुम्हारी अस्थियाँ
तुम्हारी चीज़ें-बर्तन-सामान कुछ
और कुछ महल मंदिर
क्या तुम्हारी शिनाख्त इनसे हो जाएगी
पूरी की पूरी?
____________________________________________________________
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24 कविताप्रेमियों का कहना है :

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

..सत्य की खोज में लगे ज्ञानियों ने, परत के भीतर झांकने की कोशिश की है। यह कविता भी उसी मानसिक दशा को बताती है।
..इस बार की प्रतियोगिता में एक से बढ़कर एक कविताएँ आईं, ऐसा लगता है।
..वाह!

मनोज जोशी का कहना है कि -

जया जी की रचना एक कवि के मनोभावों को दर्शाती हुई ..उनकी रचनाशीलता की परिचायक है....बधाई एक अच्छी रचना के लिए...

अपर्णा का कहना है कि -

बहुत सुन्दर रचना .. परत के नीचे परत और उसमें झाँकने का साहस केवल कवि कर सकता है .. जया ने ये कार्य बखूबी किया है ... बहुत बहुत बधाई जया !

Travel Trade Service का कहना है कि -

जो निकालेगा एक दिन तुम्हे
कुरेद कर उन परतों में से
उसकी अंगुलियाँ
कैसे समझ सकेंगी
इतना सब...
वह तो टटोलेंगी
बस तुम्हारी अस्थियाँ
तुम्हारी चीज़ें-बर्तन-सामान कुछ
और कुछ महल मंदिर
क्या तुम्हारी शिनाख्त इनसे हो जाएगी
पूरी की पूरी?आप को शुभ कम्नाये जया जी ...आप ...वेसे भी चित्रों को उकेरती है तो ..कलम भी आप के साथ रिधय को साथ लेकर चलती है ...एक रिय्न्गम रचना जी आप की ...मानव तो झकझोर ने पर विवास करती ....पुनः आप को ढेर साडी शुभ कामनाओ सहित बधाई !!!!!!!!!nirml paneri

Travel Trade Service का कहना है कि -

जो निकालेगा एक दिन तुम्हे
कुरेद कर उन परतों में से
उसकी अंगुलियाँ
कैसे समझ सकेंगी
इतना सब...
वह तो टटोलेंगी
बस तुम्हारी अस्थियाँ
तुम्हारी चीज़ें-बर्तन-सामान कुछ
और कुछ महल मंदिर
क्या तुम्हारी शिनाख्त इनसे हो जाएगी
पूरी की पूरी?आप को शुभ कम्नाये जया जी ...आप ...वेसे भी चित्रों को उकेरती है तो ..कलम भी आप के साथ रिधय को साथ लेकर चलती है ...एक रिय्न्गम रचना जी आप की ...मानव तो झकझोर ने पर विवास करती ....पुनः आप को ढेर साडी शुभ कामनाओ सहित बधाई !!!!!!!!!nirml paneri

प्रवीण पाण्डेय का कहना है कि -

परत दर परत, व्यक्तित्वों के अन्दर, न जाने कितने भाव छिपे हैं।

अनुपमा पाठक का कहना है कि -

sundar rachna!
shubhkamnayen!

Amrendra Nath Tripathi का कहना है कि -

कविता में एक अस्मिता - विषयक प्रश्न अहमियत के साथ रखा गया है ! क्या अस्मिता उन परतों में है ? , पर वे तो निहायत अपूर्ण हैं उसे बता सकने में ! इस दृष्टि से एक व्यक्ति-जाति-समाज की अस्मिता का प्रश्न पूरी मानव-जाति की अस्मिता से जुड़ जाता है !

जया जी कविता की एक ख़ास विशेषता इनमें स्त्री-स्वर वर्तमान की नारेबाजी से अलग संवेदनशीलता की शक्ति को प्राथमिक तौर पर 'एड्रेस' करता है ! ऐसा मैंने जया जी की इस एक कविता को पढ़कर नहीं बल्कि अन्य कविताओं से गुजर कर अनुभव किया है |

बधाई !

Manoj Bhawuk का कहना है कि -

जया आपने अच्छी कविता बुनी है. खुदा करें आप परत दर परत और गहरी उतरें .

www.manojbhawuk.com

ज्योत्स्ना पाण्डेय का कहना है कि -

बहुत ही सधे हुए प्रश्न करती है कविता....परतों में कैसे ढूंढा जा सकेगा अस्तित्व ...कवी की सोच ही पंहुच सकती है वहाँ...


बधाई हो जया!

Triyambak Nath Vaachaspati (Batuknath) का कहना है कि -

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है ......…

के ज़िन्दगी तेरी जुल्फों की नर्म छाओं में ........
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी .......
ये तीरगी जो मेरी जीस्त का मुक़द्दर है .......
तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी ...........

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है ........
के तू नहीं , तेरा गम , तेरी जुस्तजू भी नहीं ............
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे ...........
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं ...........

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है ..........
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है..............

Triyambak Nath Vaachaspati (Batuknath) का कहना है कि -

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है ......…

के ज़िन्दगी तेरी जुल्फों की नर्म छाओं में ........
गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी .......
ये तीरगी जो मेरी जीस्त का मुक़द्दर है .......
तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी ...........

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है ........
के तू नहीं , तेरा गम , तेरी जुस्तजू भी नहीं ............
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे ...........
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं ...........

कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है ..........
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है..............

Vinay Kumar Vaidya का कहना है कि -

जयाजी,
बहुत-बहुत बधाई पुरस्कार और वाकई पुरस्कार-योग्य कविता के लिये भी !!
सचमुच यह पड़ताल का विषय है कि मानव क्या है ?!
संवेदना, संवेदनशीलता का अद्भुत्‌ तत्त्व क्या है ?
जब संवेदनशीलता अपने ही प्रति संवेदनशील हो जाती है, तो क्या किसी अमूर्त्त संवेदनशीलता का ही आविष्कार नहीं होता ?
क्या इसे ही दूसरे शब्दों में चैतन्य या चेतना नहीं कह सकते ?
क्या यह विचार या शब्द-संयोजन में समाहित हो सकता है ?
"सत्य की खोज करनेवाले ज्ञानियों........ "
ने उसे कहने की कोशिश भी की है,
इसीलिये ईश्वर का एक नाम "कवि" भी है ।
सादर,

रंजना का कहना है कि -

गंभीर चिंतन....

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...वाह !!!

निर्मला कपिला का कहना है कि -

ये केवल कोरी कल्पना नही बल्कि गम्भीर चिन्तन से दिल की परतों से उठते कुछ सवाल है। कवि मन कल्पना मे आकाश की ऊँची उडान भरता है तो चि8न्तन से दिल की सागर जैसी गहराई मे कुछ मोटी ढूँढ लाता है। यही वो मोती हैं। जया जी को बधाई।

ममता पंडित का कहना है कि -

बहुत बहुत बधाई जया...हिन्दयुग्म पर तुम्हे पढ़कर अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव कर रही हूँ.....
गहराई में उतरती हुई एक उत्कृष्ट रचना ..लिखती रहो..

mridula pradhan का कहना है कि -

behad khoobsurti se likhi hai.wah.

सदा का कहना है कि -

जो निकालेगा एक दिन तुम्हे
कुरेद कर उन परतों में से
उसकी अंगुलियाँ
कैसे समझ सकेंगी
इतना सब...
वह तो टटोलेंगी
बस तुम्हारी अस्थियाँ


बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar का कहना है कि -

जया जी,
इस सुन्दर रचना के लिए... बधाई!

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति का कहना है कि -

जया जी को इस सुन्दर कविता के लिए बधाई ..

विजेंद्र एस विज का कहना है कि -

अच्छी कविता लिखी जया..मुबारक हो..अभी नजर पडी..

Anonymous का कहना है कि -

aap sabka abhaar!

Anonymous का कहना है कि -

aap sabka abhaar!!
jaya

M VERMA का कहना है कि -

क्या तुम्हारी शिनाख्त इनसे हो जाएगी
शिनाख्त की ही जद्दोजहद है जिन्दगी...

सुन्दर रचना

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