रोज-रोज यूँ बुतख़ाने न जाया कर,
कभी-कभी तो मेरे घर भी आया कर।
तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
लोग देखकर मुंह फेरेंगे झिड़केंगे,
सरेआम ग़म का बोझा न ढोया कर।
वक़्त लौट कर चला गया दरवाजे से,
ऐसी बेख़बरी से अब न सोया कर।
मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।
नीचे भी तो झांक जरा ऐ ऊपर वाले,
अपनी करनी पर तो कुछ पछताया कर।
रात-रात भर तारे गिनते रहते हो,
चैन मिलेगा मेरी ग़ज़लें गाया कर।
यूनिकवि: महेंद्र वर्मा
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
17 कविताप्रेमियों का कहना है :
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
वाह बहुत खूब।बहुत अच्छी लगी गज़ल। वर्मा जी को बधाई।
sundar gazal.. Mahendr ji badhai..
किस-किस शे’र को सराहा जाय...यहाँ तो हर शे’र एक-से-बढ़कर-एक है...वाह.. वर्मा जी, वाह!
वाह ...बहुत सुन्दर ग़ज़ल !!!
सभी के सभी शेर खूबसूरत !!!
वक़्त लौट कर चला गया दरवाजे से,
ऐसी बेख़बरी से अब न सोया कर।
वाह...बहुत उम्दा.
मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।
खूबसूरत शेर है...बधाई.
achhi ghazal hai ....kuch sher samanya hain ...aur kuch kafi achhe ban pade hain
आदरणीय आतिश जी, शाहिद जी, जौहर जी, रंजना जी, डॉ. नीति जी और कपिला जी- आप सबके प्रति हृदय से आभार।
rachna mein khyaal beshaq bahut umda hain.... Shubhkamnayen
gazal ke hisab se do ashar kafiya se alag kahe aapne ..
maine tumse kuchh ummiden paal rakhi hain.....yahan gazal behar se kuchh hat ti hui malum de rahi hai
Pun: shubhkamnayen
mahendra ji,
kavita hriday sparshi hai........
aaj ki is duniya mey sabkuchh hai
par vaastvik muskuraahat ki hee kami hai.........
MAITRAYEE
गजल अच्छी है।
गजल का मतला देखा जाए, तो जाया और आया शब्द होने से काफिया ाया बनता है,
गजल के ३, ४ और ५ शे'र में काफिया बिगडा है,
गजल पढकर अच्छा लगा
गजल अच्छी है।
गजल का मतला देखा जाए, तो जाया और आया शब्द होने से काफिया ाया बनता है,
गजल के ३, ४ और ५ शे'र में काफिया बिगडा है,
गजल पढकर अच्छा लगा
सुमित भारद्वाज
“तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।
रात-रात भर तारे गिनते रहते हो,
चैन मिलेगा मेरी ग़ज़लें गाया कर।“ वर्मा जी आपने आगाज़ तो बहुत अच्छा किया है. आपने लिखे हैं जो अशा’र वो गुन्गुनायेगे ...गर ग़ज़लों से भी न मिला चैन तो किधर जायेंगे ! अश्विनी कुमार रॉय
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
..वाकई गज़ल इतनी शानदार है कि बिना तारीफ किए चैन नहीं होता।
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
..बहुद खूब।
वक़्त लौट कर चला गया दरवाजे से,
ऐसी बेख़बरी से अब न सोया कर।
बहुत सुन्दर ... ऐसी बेखबरी भली नहीं
मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।
bahut pyara sher
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
sach kaha aap ne
badhai
rachana
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)