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Monday, October 25, 2010

और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर


रोज-रोज यूँ बुतख़ाने न जाया कर,
कभी-कभी तो मेरे घर भी आया कर।

तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।

औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।

लोग देखकर मुंह फेरेंगे झिड़केंगे,
सरेआम ग़म का बोझा न ढोया कर।

वक़्त लौट कर चला गया दरवाजे से,
ऐसी बेख़बरी  से अब न सोया कर।

मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।

नीचे भी तो झांक जरा ऐ ऊपर वाले,
अपनी करनी पर तो कुछ पछताया कर।

रात-रात भर तारे गिनते रहते हो,
चैन मिलेगा मेरी ग़ज़लें गाया कर।

यूनिकवि: महेंद्र वर्मा

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17 कविताप्रेमियों का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
वाह बहुत खूब।बहुत अच्छी लगी गज़ल। वर्मा जी को बधाई।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति का कहना है कि -

sundar gazal.. Mahendr ji badhai..

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar का कहना है कि -

किस-किस शे’र को सराहा जाय...यहाँ तो हर शे’र एक-से-बढ़कर-एक है...वाह.. वर्मा जी, वाह!

रंजना का कहना है कि -

वाह ...बहुत सुन्दर ग़ज़ल !!!

सभी के सभी शेर खूबसूरत !!!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' का कहना है कि -

वक़्त लौट कर चला गया दरवाजे से,
ऐसी बेख़बरी से अब न सोया कर।
वाह...बहुत उम्दा.
मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।
खूबसूरत शेर है...बधाई.

स्वप्निल तिवारी का कहना है कि -

achhi ghazal hai ....kuch sher samanya hain ...aur kuch kafi achhe ban pade hain

महेन्‍द्र वर्मा का कहना है कि -

आदरणीय आतिश जी, शाहिद जी, जौहर जी, रंजना जी, डॉ. नीति जी और कपिला जी- आप सबके प्रति हृदय से आभार।

Anonymous का कहना है कि -

rachna mein khyaal beshaq bahut umda hain.... Shubhkamnayen

gazal ke hisab se do ashar kafiya se alag kahe aapne ..

maine tumse kuchh ummiden paal rakhi hain.....yahan gazal behar se kuchh hat ti hui malum de rahi hai

Pun: shubhkamnayen

Unknown का कहना है कि -

mahendra ji,

kavita hriday sparshi hai........
aaj ki is duniya mey sabkuchh hai
par vaastvik muskuraahat ki hee kami hai.........


MAITRAYEE

Unknown का कहना है कि -

गजल अच्छी है।
गजल का मतला देखा जाए, तो जाया और आया शब्द होने से काफिया ाया बनता है,
गजल के ३, ४ और ५ शे'र में काफिया बिगडा है,
गजल पढकर अच्छा लगा

Unknown का कहना है कि -

गजल अच्छी है।
गजल का मतला देखा जाए, तो जाया और आया शब्द होने से काफिया ाया बनता है,
गजल के ३, ४ और ५ शे'र में काफिया बिगडा है,
गजल पढकर अच्छा लगा

Unknown का कहना है कि -

सुमित भारद्वाज

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -

“तू ही एक नहीं है दुनिया में आलिम,
अपने फ़न पर न इतना इतराया कर।
रात-रात भर तारे गिनते रहते हो,
चैन मिलेगा मेरी ग़ज़लें गाया कर।“ वर्मा जी आपने आगाज़ तो बहुत अच्छा किया है. आपने लिखे हैं जो अशा’र वो गुन्गुनायेगे ...गर ग़ज़लों से भी न मिला चैन तो किधर जायेंगे ! अश्विनी कुमार रॉय

सदा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

..वाकई गज़ल इतनी शानदार है कि बिना तारीफ किए चैन नहीं होता।

औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
..बहुद खूब।

M VERMA का कहना है कि -

वक़्त लौट कर चला गया दरवाजे से,
ऐसी बेख़बरी से अब न सोया कर।

बहुत सुन्दर ... ऐसी बेखबरी भली नहीं

rachana का कहना है कि -

मैंने तुमसे कुछ उम्मीदें पाल रखी हैं,
और नहीं तो थोड़ा सा मुसकाया कर।
bahut pyara sher
औरों के चिथड़े दामन पर नज़रें क्यूं,
पहले अपनी मैली चादर धोया कर।
sach kaha aap ne
badhai
rachana

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