मनोज सिंह भावुक की एक रचना अभी कुछ दिन पहले ही हमने यहाँ साझा की थी। भोजपुरी साहित्य के ख्यातिप्राप्त रचनाकार भावुक की प्रस्तुत भोजपुरी ग़ज़ल प्रतियोगिता मे पाँचवें स्थान पर रही है, और प्रतियोगिता को आँचलिक रंग दे रही है।
पुरस्कृत ग़ज़ल: बात पर बात होता बात ओराते नइखे
बात पर बात होता बात ओराते नइखे
कवनो दिक्कत के समाधान भेंटाते नइखे
भोर के आस में जे बूढ़ भइल, सोचत बा
मर गइल का बा सुरुज रात ई जाते नइखे
लोग सिखले बा बजावे के सिरिफ ताली का
सामने जुल्म के अब मुठ्ठी बन्हाते नइखे
कान में खोंट भरल बा तबे तऽ केहू के
कवनो अलचार के आवाज़ सुनाते नइखे
ओद काठी बा, हवा तेज बा,किस्मत देखीं
तेल भरले बा, दिया-बाती बराते नइखे
मन के धृतराष्ट्र के आँखिन से सभे देखत बा
भीम असली ह कि लोहा के, चिन्हाते नइखे
बर्फ हऽ, भाप हऽ, पानी हऽ कि कुछुओ ना हऽ
जिन्दगी का हवे, ई राज बुझाते नइखे
दफ्न बा दिल में तजुर्बा त बहुत, ए ‘भावुक’
छंद के बंध में सब काहें समाते नइखे
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
बर्फ हऽ, भाप हऽ, पानी हऽ कि कुछुओ ना हऽ
जिन्दगी का हवे, ई राज बुझाते नइखे
....बहु आयामी जिंदगी के दर्द को अभिव्यक्त करती लाजवाब और कालजयी इस गज़ल की जितनी भी तारीफ की जाय कम है।
निर्णायक क्षमा करें...
संभवतज्ः भोजपुरी के अल्पज्ञान या इस भाषा की उपेक्षा ने इसे पाँचवा स्थान दिलाया...मैं तो प्रथम ही दुंगा।
संभवतः
manoj apne anubhavo ko jis tarah gajalo mein dhaal rahe wah gajal ko rawayt jo se bahar nikal kar use kaita ka sarvoch samayik shikar bana date hai.hindi mein jo kaam dushyant ne kiya wahi bhojpuri mein manoj karte nazar aate hai par gajal ke vyakaran mein wo peeche chute jate hai ho sakta hai yah dohri jimmedari ke karan ho raha ho,bhojpuri gajlo ka vyakaran par madhukar se aage manoj hi baat bada sakte hai.
bhadhayee
भाई देवेन्द्र पाण्डेय जी की उपर्युक्त टिप्पणी को केन्द्र में रखते हुए, ‘हियु’ के तमाम पाठकों की सुविधा के लिए मैं यह श्रम कर रहा हूँ ताकि मनोज भाई की ग़ज़ल को ग़ैर-भोजपुरी समुदायों में सम्यक् रूप से समझा जा सके व उसे उचित प्यार-आदर मिल सके:
बर्फ हs, भाप हs, पानी हs कि कुछुओ ना हs
जिन्दगी का हवे, ई राज बुझाते नइखे
उक्त संदर्भित शे’र का पदच्छेद व अन्वयपूर्ण शब्दार्थ / भावार्थ निम्नवत है :
बर्फ हs =बर्फ है
भाप हs =भाप है
पानी हs = पानी है
कि कुछुओ ना हs = या फिर कुछ भी नहीं है;
जिन्दगी का हवे =ज़िन्दगी क्या है ?
ई राज =यह रहस्य/यह राज़
बुझाते नइखे =समझ में ही नहीं आता है।
...इस प्रकार ग़ज़लकार यहाँ पदार्थ की तीनों अवस्थाओं (ठोस-द्रव-गैस) के अलावा ’कुछ भी नहीं’ (कुछुओ न) के बीच ज़िन्दगी के असली चेहरे की शिनाख़्त करने की एक आदमक़द कोशिश कर रहा है।
वस्तुतः वह जानना चाहता है कि जीवन आख़िर है क्या ? इस प्रश्न के उत्तर की खोज में वह दर्शन के धरातल पर जा पहुँचा है। अंततः वह स्वयं को निष्कर्षविहीन ही पाता है, यह कहता हुआ कि- ’ई राज बुझाते नइखे’।
ग़म की स्याह रातों को लम्बे समय तक ओढ़कर जीवन बिताने वाला इंसान ख़ुशी के उजाले की प्रतीक्षा करते-करते एक दिन आख़िर ऊब ही जाता है। ऐसे में, उसकी यह झुँझलाहट अनुचित नहीं, बल्कि स्वाभाविक है-
भोर के आस में जे बूढ़ भइल, सोचत बा
मर गइल का बा सुरुज रात ई जाते नइखे
बुराई के खिलाफ़ आवाज़ उठा सकने की हिम्मत का ह्रास चारों ओर दिख रहा है। ऐसे में, यह शे’र हमारे समय का एक चित्र बनकर उभरा है-
लोग सिखले बा बजावे के सिरिफ ताली का
सामने जुल्म के अब मुठ्ठी बन्हाते नइखे
यदि उक्त विवेचन में मुझसे कोई ग़लती हुई हो तो विद्वत्-जन मुझे क्षमा करें... क्योंकि मुझे भोजपुरी का समुचित ज्ञान नहीं है।
jitnaa bhi samjh sake..laajwaab rahaa...
bahut badhiyaa manoj bhaai...
jitnaa bhi samjh sake..laajwaab rahaa...
bahut badhiyaa likhe ho manoj bhai
बर्फ हऽ, भाप हऽ, पानी हऽ कि कुछुओ ना हऽ
जिन्दगी का हवे, ई राज बुझाते नइखे
मनोज भावुक की यह रचना दिल को छू गयी. भोजपुरी गज़ल और विसंगतियों का इतना सुन्दर चित्रण कमाल का है.
बेहतरीन रचना
bhavuk jee kee ek kitaab shailesh jee ke saujnya se mili hai mujhe ....inki ghazlen bhojpuri ke liye sanjeevni sabit ho rahi hain ..yah ghazal bhi achhi hai
“बर्फ हऽ, भाप हऽ, पानी हऽ कि कुछुओ ना हऽ
जिन्दगी का हवे, ई राज बुझाते नइखे” मनोज भावुक जी मैं तो अब तक आपका नाम ही भावुक समझता था. मगर आप तो फितरत से भी मुकम्मल भावुक ही निकले. आपने तो इस कविता में भावना का सैलाब ही ला दिया है. इस में चिंतन बा, दर्शन बा और जीवन का यथार्थ बा. कौनो छंद अइसन ना बा जो काबिलेतारीफ ना हुई. सब का सब लज़्ज़त और जायका से भरपूर बा. हमारा बहुत बहुत बधाई स्वीकार करी भावुक जी. अश्विनी कुमार रॉय
लोग सिखले बा बजावे के सिरिफ ताली का
सामने जुल्म के अब मुठ्ठी बन्हाते नइखे
सुन्दर एवं सशक्त प्रस्तुति ।
jindgi vigyapan ha ki sanch bujhate naikhe.sanch ke aanch kum ho gail ba jhooth ke aanch kahan le avata ee bujhate naikhe.
anil Kr. Mishra
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