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Sunday, October 17, 2010

एह दशहरा में कवनो पुतला ना,मन के रावण के तन जरावे के


सभी पाठकों को विजयादशमी की शुभकामनाएँ। इस बार दशहरा हम कुछ आंचलिक रंग मे मना रहे हैं। इस अवसर पर हम पाठकों के लिये ख्यात साहित्यकार मनोज सिंह ’भावुक’ की यह भोजपुरी ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहे हैं।
 जनवरी 1976 को सीवान (बिहार) में जन्मे और रेणुकूट (उत्तर प्रदेश ) में पले- बढ़े मनोज भावुक भोजपुरी के सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार हैं। पिछले 15 सालों से देश और देश के बाहर (अफ्रीका और यूके में) भोजपुरी भाषा, साहित्य और संस्कृति के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भावुक भोजपुरी सिनेमा, नाटक आदि के इतिहास पर किये गये अपने समग्र शोध के लिए भी पहचाने जाते हैं। अभिनय, एंकरिंग एवं पटकथा लेखन आदि विधाओं में गहरी रुचि रखने वाले मनोज दुनिया भर के भोजपुरी भाषा को समर्पित संस्थाओं के संस्थापक, सलाहकार और सदस्य हैं। तस्वीर जिंदगी के( ग़ज़ल-संग्रह) एवं चलनी में पानी ( गीत- संग्रह) मनोज की चर्चित पुस्तके हैं। ‘तस्वीर जिन्दगी के’ तो इतना लोकप्रिय हुआ कि इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित किया जा चुका है और इस पुस्तक को वर्ष 2006 के भारतीय भाषा परिषद सम्मान से नवाज़ा जा चुका है। एक भोजपुरी पुस्तक को पहली बार यह सम्मान दिया गया है।
सम्प्रति: क्रियेटिव हेड, हमार टीवी, नोएडा
सम्पर्क:  09958963981


गज़ल  
फूल के अस्मिता बचावे के
कांट चारो तरफ उगावे के

ए जी ! बाटे बहार गुलशन में
आईं सहरा में गुल खिलावे के

ऊ जे तूफान के बुझा देवे
एगो अइसन दिया जरावे के

एह दशहरा में कवनो पुतला ना
मन के रावण के तन जरावे के

तय कइल ई बहुत जरूरी बा
माथ कहवां ले बा झुकावे के

आईं हियरा के झील में अपना
प्यार के इक कमल खिलावे के

काम अइसन करे के जवना से
पीठ पीछे भी मान पावे के

जिस्म जर जाई एक दिन ‘भावुक’
रूह के रूह से मिलावे के

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

12 कविताप्रेमियों का कहना है :

महेन्‍द्र वर्मा का कहना है कि -

उ जे तूफान के बुझा देवे,
एगो अइसन दिया जरावे के।

बहुत ही सुंदर और प्रभावशाली रचना।
...दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं।

अश्विनी कुमार रॉय Ashwani Kumar Roy का कहना है कि -

“काम अइसन करे के जवना से
पीठ पीछे भी मान पावे के
जिस्म जर जाई एक दिन ‘भावुक’
रूह के रूह से मिलावे के” मनोज सिंह जी मैं भोजपुरी तो नहीं जानता मगर हिन्दी ज़रूर समझता हूँ. यह हिन्दी की विलक्षणता ही कही जायेगी कि इसमें प्रादेशिक भाषाएँ भी ऐसे घुल मिल जाती हैं जैसे कि वे भी स्वयं हिन्दी ही हों. आपके सभी छंद मजेदार बा लेकिन इन दो तो का वजन कुछ ज्यादा ही बा. कविता अइसन लिखी जाइ कि सब खुशी पावे जवना पढ़े पढावे के.इस खूबसूरत कृति के लिए बहुत बहुत साधुवाद. अश्विनी कुमार रॉय

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar का कहना है कि -

एह दशहरा में कवनो पुतला ना
मन के रावण के तन जरावे के


जिस्म जर जाई एक दिन ‘भावुक’
रूह के रूह से मिलावे के

ए मनोज भाई, ज़रा अपना हाथ आगे बढ़ाइए... चूम लूँ। इतने सुन्दर शे’र लिखे हैं...भाई! ऊपर पहला शे’र पढ़कर मुझे मेरी कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं। आपके लिए एवं ‘हियु’ के पाठकों के लिए लिख रहा हूँ-

दिल में छिपा है उस रावण को मारिए तो
आप भी स्वयं श्रीराम बन जाएँगे।
निज तात-मात में निहारिए ब्रह्म-रूप,
घर में पुनीत चार धाम मिल जाएँगे।

Manoj Bhawuk का कहना है कि -

shukria.
punah dashahare ki hardik shubhkamna.
www.manojbhawuk.com

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार का कहना है कि -

मनोज सिंह ’भावुक’ जी और
हिन्द-युग्म की पूरी टीम को विजयदशमी की मंगलकामनाएं ! शुभकामनाएं !
मनोजजी , आप मेल न करते तो शायद मैं इतनी ख़ूबसूरत ग़ज़ल से वंचित रह सकता था , यद्यपि मैं प्रायः हिन्द-युग्म पर आता रहता हूं ।
बहुत अच्छी और मुकम्मल ग़ज़ल कही है आपने । तमाम अश्'आर दिलो-दिमाग पर छा जाने की सामर्थ्य रखते हैं ।

ऊ जे तूफान के बुझा देवे
एगो अइसन दिया जरावे के

कहने को उलटबांसी - सा लगता है , लेकिन बात बहुत जीवंतता के साथ अछूते ढंग से कही है , बधाई !

आईं हियरा के झील में अपना
प्यार के इक कमल खिलावे के

क्या बात है , बहुत मा'सूम और प्यारा शे'र है ।

एह दशहरा में कवनो पुतला ना
मन के रावण के तन जरावे के

आत्मशुद्धि की बात करता यह दार्शनिक अंदाज़ में कहा गया शे'र मैं अपने साथ लिए जा रहा हूं …

आज दशहरे के अवसर पर आप सहित हिन्द-युग्म के सभी मित्रों को समर्पित है मेरा यह दोहा …
थोथे पुतले फूंक कर करें न झूठा दम्भ !
जीवित रावण फूंकना आज करें आरम्भ !!

शुभाकांक्षी
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार का कहना है कि -

हां , हिन्द-युग्म के प्रति श्रेष्ठ रचना को स्थान देने के लिए आभार !

- राजेन्द्र स्वर्णकार

M VERMA का कहना है कि -

काम अइसन करे के जवना से
पीठ पीछे भी मान पावे के

सुन्दर और गहरे अर्थ लिये मनोज जी की यह रचना ... वाह

रवीन्द्र प्रभात का कहना है कि -

फूल के अस्मिता बचावे के
कांट चारो तरफ उगावे के

उ जे तूफान के बुझा देवे,
एगो अइसन दिया जरावे के।


मनोज भाई,राउर ग़ज़ल पढ़ के मन क पोर-पोर सिहर गईल, एक दम सांच बात कहानी ह रौआ आपन गजल में, बधाई स्वीकार करीं !

सदा का कहना है कि -

काम अइसन करे के जवना से
पीठ पीछे भी मान पावे के

जिस्म जर जाई एक दिन ‘भावुक’
रूह के रूह से मिलावे के

बहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

विश्व दीपक का कहना है कि -

भावुक जी, आपने तो हमें भावनाओं में बहा दिया।

बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक

manu का कहना है कि -

achchhaa likhaa hai aapne...


koi 2 raay nahin...

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

वाह !....तबियत मस्त हो गइल.

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