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Friday, January 02, 2009

मौत का एहसास


मौत का एहसास पलपल
देह में अनुनाद कलकल

धमनियां फैली शीरा में
काल की गुर्राहटें भी
देह बुनता लाल चादर
राख में हैं सलवटें भी
फिर दिखी फूलों की माला
डालती सांसों पे ताला

फिसलने लगी जीजिविषा
लो चरमराती हड्डियों पर
मौत का एहसास पलपल
देह में अनुनाद कलकल

फलसफा अपना बनाकर
भीड़ को सौंपे जो नारे
सृष्टि अपनी ही रची
मैंने बनाये चाँद तारे
ढह गई फिर से दीवारें
हिल उठे वे खंडहर भी
धमाके से स्वर्ग आई
जल चुकी जो लाश चलकर
मौत का एहसास पलपल
देह में अनुनाद कलकल

-हरिहर झा

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

अच्छी कविता..
फिसलने लगी जीजिविषा
लो चरमराती हड्डियों पर
मौत का एहसास पलपल
देह में अनुनाद कलकल

दिगम्बर नासवा का कहना है कि -

सुंदर कविता,
पढ़ कर अच्छा लगा

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

सुंदर रचना |

अवनीश तिवारी

रंजना का कहना है कि -

वाह ! वाह ! वाह ! atisundar adwiteey रचना.पढ़कर मन vibhor mantramugdh हो गया.aapkee lekhni को नमन.

Manuj Mehta का कहना है कि -

bahut khoob, nayi nayi upmaoon ka pryog aacha laga.

धमनियां फैली शीरा में
काल की गुर्राहटें भी
देह बुनता लाल चादर
राख में हैं सलवटें भी
फिर दिखी फूलों की माला
डालती सांसों पे ताला

wah

Anonymous का कहना है कि -

फलसफा अपना बनाकर
भीड़ को सौंपे जो नारे
सृष्टि अपनी ही रची
मैंने बनाये चाँद तारे
ढह गई फिर से दीवारें
हिल उठे वे खंडहर भी
धमाके से स्वर्ग आई
जल चुकी जो लाश चलकर
मौत का एहसास पलपल
देह में अनुनाद कलकल
बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ
सादर
रचना

neelam का कहना है कि -

सृष्टि अपनी ही रची
मैंने बनाये चाँद तारे
ढह गई फिर से दीवारें
हिल उठे वे खंडहर भी
धमाके से स्वर्ग आई
जल चुकी जो लाश चलकर
मौत का एहसास पलपल
देह में अनुनाद कलकल

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

फिर दिखी फूलों की माला
डालती सांसों पे ताला

फिसलने लगी जीजिविषा
लो चरमराती हड्डियों पर

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