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Thursday, January 01, 2009

****देखो पुराने ये क्लैंडर


हम भी कभी तो थे, कलैंडर आपकी दीवार के
बदरंग ब्यौरे भर हुए हम आज हैं तिथिवार के

हंसिये हथौड़े की व्यथा अब क्या सुनायें तुमको भला
इनके मसीहा खुद मुसाहिब बन गये बाजार के

है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल
आते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार के

गिरमिटिये बनकर तब गये थे सात सागर पार हम
पर हैं बने हम बंधुआ अब अपनी ही सरकार के

हर पल बहाने ढूंढ़ते रहते हो तुम तकरार के
ये क्या तरीके हैं बसाने को `सखा' घर बार के

ग़ज़ल की शिक्षार्थियों हेतु


देखो पुराने ये कलेंडर कह रहे दीवार के
बदरंग ब्यौरे होगये हम दोस्तों तिथिवार के

हम भी कभी तो थे, कलैंडर आपकी दीवार के
बदरंग ब्यौरे भर हुए हम आज हैं तिथिवार के

, अब इस पहले शे`र को देखें तो ठीक लगेगा , मगर ध्यान से देखें तो कलेंडर से पहले आए `ये; को हटा दे तब भी अर्थ स्पष्ट है। अत : `ये' फालतू याने भरती का शब्द कहलायेगा और ग़ज़ल में दोष माना जाएगा। इसी तरह ,कह रहे दीवार के अटपटा है, दीवार से होता तो ठीक होता सो हमें कलेंडर और दीवार के बीच कह रहे हटाना पड़ेगा और कह रहे वजन का शब्द लाना होगा। आपकी शब्द दीवार का विशेषण होने से चलेगा पुराने ये कलेंडर कह रहे दीवार के ,
हम भी कभी तो थे, कलैंडर आपकी दीवार के,हम भी कभी थे आने से कह रहे का भावः ख़ुद ब ख़ुद समाहित हो गया है।
यह मिस्र ऐसे भी हुआ था
हम भी कभी थे हाँ कलेंडर तेरी इस दीवार के
मगर इसमे दो दोष थे : १ ’तेरी’ के बाद ’इस’ की जरूरत नहीं बनती याने भरती का शब्द हो जाता है ,२. तेरी में री की मात्र भी गिरती है, मात्रा गिरना कोई दोष नहीं है मगर ,अगर हम मात्रा गिराए बिना शे`र कहें तो बेहतर माना जाता है` आपकी' इन दोनों दोषों को ठीक कर देता है।

इसमे भी कलेंडर से पहले ’हाँ’ भरती का हो जाने से ठीक नहीं माना जायेगा ,काम चल जायेगा
हम भी कभी तो थे, कलैंडर आपकी दीवार के
यहाँ ’तो थे’ असर को बढ़ा रहा है इसलिये भरती का न माना जायेगा उल्टे खूबसूरती देगा।

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14 कविताप्रेमियों का कहना है :

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

सच्ची बात कही श्याम जी,

है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल
आते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार के ...

अब मजे वाली बात नहीं रही...

निर्मला कपिला का कहना है कि -

bahut khUb likha hai sabhi panktiyaan acchi lagi nayaa saal mubarak

Anonymous का कहना है कि -

मुस्तफइलुन मुस्तफइलुन मुस्तफइलुन मुस्तफइलुन
श्यामसखा

Straight Bend का कहना है कि -

है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल
आते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार के

गिरमिटिये बनकर तब गये थे सात सागर पार हम
पर हैं बने हम बंधुआ अब अपनी ही सरकार के

हर पल बहाने ढूंढ़ते रहते हो तुम तकरार के
ये क्या तरीके हैं बसाने को `सखा' घर बार के

Waah!

Anonymous का कहना है कि -

saaheb ji yaa to gin ke mat likhieagar likhie to fir sahi tarike se mere ko to baaad me likhi aapki baaton se gajal me doubt pad hai gaya ha ji | kuch bhi o dekho or smjh ke sahi arrr lo

Anonymous का कहना है कि -

मेरे अनाम दोस्त ,जहां तक गिनती की बात है मुझे तो जाँच कर भी सही लगी अगर फ़िर भी कोई कमी है तो बताएं दुरुस्त कर लूँगा ,हाँ कल जैसे ही पुराने कलेंडर को दीवार से उतारा ग़ज़ल हो गयी और मैंने युग्म पर लगा दी ,ये जानते हुए भी की अभी शे`रों में ग़ज़ल के दुरूह पैमाने पर कुछ कचांध है और मैं चाहता हूँ गजल सीखने वाले भी इन त्रुटियों को पहचान लें | जैसे
मतले में काफिये दीवार ,तिथीवार आने पर हर अगले शे`र में भी ऐसा होना मतलब वार शब्द आना जरूरी होता है .इसे हम अन्तिम शे`र को मतला व् इस मतले को हुस्ने मतला बनाकर ठीक क्र लेंगे यह मैंने जानबूझकर किया था|
दूसरी गलती है सही शब्दों में दूरी होने की पहले मिसरे मेंक्लैंदर और दीवार के बीच में कह रहे आने से गड़बड़ हो रही है जो कल मैं ठीक नहीं कर पाया उतावली थी ग़ज़ल पोस्ट करने की '
अब लगाहूँ इसे भी ठीककरने में जैसे ही हो जाएगा पोस्ट करूँगा

Unknown का कहना है कि -

है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल
आते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार के

गिरमिटिये बनकर तब गये थे सात सागर पार हम
पर हैं बने हम बंधुआ अब अपनी ही सरकार के

हर पल बहाने ढूंढ़ते रहते हो तुम तकरार के
ये क्या तरीके हैं बसाने को `सखा' घर बार के

बहुत ही अच्छी ग़ज़ल
सुमित भारद्वाज

Unknown का कहना है कि -

ये तीन शेर बहुत ही अच्छे लगे

Harihar का कहना है कि -

गिरमिटिये बनकर तब गये थे सात सागर पार हम
पर हैं बने हम बंधुआ अब अपनी ही सरकार के

बहुत बढ़िया श्यामजी !

Anonymous का कहना है कि -

है वक्त की कोई शरारत या गई फ़िर उम्र ढ़ल
आते नहीं पहले सरीखे अब मजे त्यौहार के
सुंदर ग़ज़ल
सादर
रचना

हरकीरत ' हीर' का कहना है कि -

हर पल बहाने ढूंढ़ते रहते हो तुम तकरार के
ये क्या तरीके हैं बसाने को `सखा' घर बार के

sach kha aapne...ye ghar khan hote hain...!

Anonymous का कहना है कि -

zindgi kabhi u tanha na thi,
tanhai mein u fariyan na thi,
fariyad bhi ab hum unse kya kare,
jo fariyad k kabil na thi.

Unknown का कहना है कि -

gazal bahut achhi lagi ....mujhe bhi do sher zyada pasand aaye--"hai waqt ki koi shararat..."aur "har pal bahane dhundhte...".
lekin aap ki ghazal ko likhne ke dauran jo aapne naye gazalkaron ke liye kuchh vichar add kiye the mujhe wo bhi achhe lage.

विभा रानी श्रीवास्तव का कहना है कि -


आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 02 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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